दुर्लभतम में से दुर्लभ जांच को चाहिए समाज की मंजूरी : न्यायालय, Rarest of rare test needs society`s approval: SC

दुर्लभतम में से दुर्लभ जांच को चाहिए समाज की मंजूरी : न्यायालय

दुर्लभतम में से दुर्लभ जांच को चाहिए समाज की मंजूरी : न्यायालयनई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ‘दुर्लभतम में से दुर्लभ’ जांच न्यायाधीश केंद्रित नहीं है बल्कि यह समाज की धारणा पर निर्भर करती है कि क्या वह खास तरह के अपराधों में दोषी पाए गए लोगों को मौत की सजा को मंजूरी देता है।

न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘अदालतें मौत की सजा देती हैं क्योंकि स्थिति की ऐसी ही मांग होती है, संवैधानिक बाध्यता होती है, यह जनता की इच्छा द्वारा प्रतिबिंबित होता है, न कि यह न्यायाधीश केंद्रित है।’

पीठ ने कहा, ‘मौत की सजा देने के लिए भड़काने वाली परिस्थितियों (अपराध जांच) को पूरी तरह संतुष्ट किया जाना चाहिए और आरोपी के पक्ष में गंभीरता कम करने वाली परिस्थितियां (अपराधी परीक्षण) नहीं होनी चाहिए।’ पीठ ने कहा, ‘अगर आरोपी के खिलाफ दोनों जांच संतुष्ट करने लायक होती हैं तो भी अदालत को अंतत: दुर्लभतम में दुर्लभ मामले वाली जांच को लागू करना होता है, जो समाज की धारणा पर निर्भर करती है और न्यायाधीश केंद्रित नहीं है, कि क्या किसी खास तरह के अपराध में मौत की सजा को समाज मंजूरी देगा।’

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी दो लोगों को सुनाई गई मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील करते हुए की। इन दोनों को पंजाब में संपत्ति विवाद में अगस्त 2000 में एक परिवार के चार सदस्यों की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था।

शीर्ष अदालत ने उनकी सजा में संशोधन करते हुए इसे 30 साल के आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया। न्यायालय ने कहा, ‘जहां तक इस मामले का सवाल है तो मौत की सजा की जरूरत नहीं है।’

गुरवैल और सतनाम सिंह को निचली अदालत ने 2000 में मौत की सजा सुनाई थी। इसे पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 2005 में बरकरार रखा था। (एजेंसी)

First Published: Sunday, February 10, 2013, 13:31

comments powered by Disqus