Last Updated: Friday, March 1, 2013, 18:17

नई दिल्ली : संसद की एक समिति ने दुष्कर्म के दुर्लभ मामलों और पुनरावृत्ति अपराधों के लिए मृत्युदंड के प्रावधान को केंद्र सरकार की अधिसूचना के मुताबिक ही रखा है। शुक्रवार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में समिति ने हालांकि अपनी सिफारिश में दांपत्य दुष्कर्म को अपराध मानने से इनकार किया है।
गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष और भाजपा नेता एम. वेंकैया नायडू ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, `समिति ने घृणित यौन हमलों के दुर्लभतम मामलों और अपराध की पुनरावृत्ति के लिए मत्युदंड की सजा को मंजूरी दी है। कम से कम 54 प्रतिशत मामले पुनरावृत्ति के होते हैं।` शुक्रवार को समिति की रिपोर्ट राज्य सभा में पेश की गई।
नायडू ने बताया कि समिति के दो अन्य सदस्य भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी.राजा और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रशांत चटर्जी ने इस मुद्दे पर असहमति जताई। दिल्ली दुष्कर्म के बाद किशोरों की उम्र सीमा 18 वर्ष से कम कर 16 वर्ष किए जाने के विवादास्पद मुद्दे पर समिति में कोई राय नहीं बन पाई।
पिछले साल दिसंबर महीने में दिल्ली में चलती बस में एक युवती के साथ हुए सामूहिक दुष्कर्म में एक किशोर आरोपी संलिप्तता सामने आने के बाद यह मांग जोरशोर से उठी। दुष्कर्म पीड़िता की मौत सिंगापुर के एक अस्पताल में हो गई।
नायडू ने कहा कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक करीब 64 प्रतिशत अपराध किशोरों द्वारा अंजाम दिए जाते हैं। समिति ने दांपत्य दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाने से यह कहते हुए मना कर दिया कि इससे परिवार टूट सकते हैं। लेकिन समिति ने कहा है कि न्यायिक पृथक्करण के दौरान पति द्वारा पत्नी के साथ किया गया कोई भी यौन हमला संज्ञेय अपराध के दायरे में आना चाहिए।
नायडू ने कहा, `इससे परिवार में संकट पैदा नहीं होगा। यही समिति का नजरिया है।` दुष्कर्म विरोधी कानून को और कड़ा करने के लिए सरकार पहले ही अध्यादेश को संसद की ऊपरी सदन में रख चुकी है। इसके अलावा मौजूदा बजट सत्र के दौरान ही सरकार न्यायमूर्ति वर्मा समति की सिफारिशों और संसद की स्थायी के सुझावों को समाहित करते हुए विधेयक पेश कर सकती है। (एजेंसी)
First Published: Friday, March 1, 2013, 18:15