Last Updated: Sunday, July 14, 2013, 16:49
नई दिल्ली : निर्वाचन आयोग चुनाव घोषणापत्र में ‘मुफ्त उपहार’ (लुभावनी घोषणाओं) पर प्रस्तावित दिशानिर्देशों के बारे में एक राय बनाने के लिए अगले माह राजनीतिक दलों की एक बैठक बुलाएगा। यह बैठक, इसी सिलसिले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई व्यवस्था की पृष्ठभूमि में बुलाई जाएगी।
बहरहाल, निर्वाचन आयोग इस मुद्दे पर एक पृष्ठभूमि नोट तैयार कर रहा है लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा अपने अपने घोषणापत्रों में की जाने वाली ‘मुफ्त उपहार’ (लुभावनी घोषणाओं) की व्याख्या के बारे में स्पष्ट नीति बनाना उसके लिए मुश्किल हो रहा है। सूत्रों ने बताया कि निर्वाचन आयोग ने इस बारे में विचारविमर्श शुरू कर दिया है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया ‘चुनावी वादों को एक राज्य में भले ही मुफ्त उपहार समझा जाए लेकिन शायद दूसरे राज्य में ऐसी राय न हो।’ उन्होंने कहा कि कुछ सरकारें दावा कर सकती हैं कि यह गरीबों की मदद के लिए एक कल्याणकारी कदम है। राजनीतिक दलों का तर्क है कि राज्यों द्वारा दिया जाने वाला लाभ गरीबों के कल्याण के लिए बहुत जरूरी है।
एक अन्य निर्वाचन अधिकारी ने बताया ‘एक गरीब छात्र को लैपटाप दिया जाना आधुनिक प्रौद्योगिकी तक उसकी पहुंच बनाने के लिए और अच्छी शिक्षा के लिए एक बड़ी सहायता समझा जाता है लेकिन दिल्ली जैसे संपन्न राज्य के लिए यह लुभानेवाली घोषणा हो सकता है।’ आयोग उच्चतम न्यायालय के फैसले की एक प्रति पहले ही मान्यताप्राप्त राजनीतिक दलों को भेज चुका है ताकि वह अपनी राय बना सकें। साथ ही उसने इस विषय पर उपलब्ध नजरिये और अन्य पहलुओं की, विभिन्न देशों के संदर्भ में समीक्षा भी शुरू कर दी है।
उच्चतम न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार द्वारा घोषित ‘मुफ्त उपहार’ (लुभावनी घोषणाओं) को चुनौती देने वाली एक विशेष अनुमति याचिका का 5 जुलाई को निपटारा करते हुए निर्वाचन आयोग से कहा कि वह राजनीतिक दलों द्वारा अपने अपने चुनाव घोषणापत्रों में किए जाने वाले ऐसे वादों के लिए दिशानिर्देश तैयार करे। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 14, 2013, 16:49