Last Updated: Sunday, September 11, 2011, 06:42
एजेंसी.अब नियंत्रक और महालेखा परीक्षक यानी कैग ने केए-31 हेलीकॉप्टर के कलपुर्जों की खरीद जैसे कुछ मामलों में देरी या उचित प्रक्रिया नहीं अपनाने के चलते नौसेना की खिंचाई की है.
सीएजी ने हाल ही में संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारतीय नौसेना ने रूस से अगस्त 1999 के एक अनुबंध और फिर फरवरी 2001 में एक पूरक समझौते के तहत नौ केए-31 हेलीकॉप्टर हासिल किये. फिर इस्तेमाल के दौरान नौसेना ने पाया कि हेलीकॉप्टर के साथ मिले कलपुर्जे परिचालन संबंधी जरूरतों को पूरा करने लायक नहीं हैं. इसके बाद नौसेना वायु सामग्री निदेशालय ने नवंबर 2005 में स्टॉक, मरम्मत योग्य पुर्जों, खपत के रुझान और मदों की कीमत का विश्लेषण करने के बाद 150 नये कलपुर्जों की जरूरत को अंतिम रूप दे दिया.
निदेशालय ने इन 150 कलपुर्जों के लिये रूसी कंपनी मेसर्स रोसबोरोन एक्सपोर्ट को 54.57 करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया, जिसकी सैद्धांतिक मंजूरी नवंबर 2005 में दी गयी. फिर सात महीने के भीतर भी नया अनुरोध पत्र जारी नहीं होने के कारण मूल प्रस्ताव की वैधता समाप्त हो गयी.
ऑडिट में पाया गया कि अनुबंध के अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने तक खरीद के हर एक चरण में देरी के चलते कंपनी ने 150 कलपुर्जों की लागत को बढ़ाकर 65.58 करोड़ रुपए कर दिया. कैग ने अपनी सख्त टिप्पणी में कहा कि खरीद में विलंब होने के चलते 10.71 करोड़ रुपए का टाला जा सकने वाला अतिरिक्त खर्च हुआ और नौसेना की परिचालन इकाइयों को भी कलपुर्जों की उपलब्धता में देरी हुई. अपनी रिपोर्ट में कैग ने ऐसे एक और मामले का जिक्र किया है, जिसमें नौसेना ने अतिरिक्त खर्च किया.
रिपोर्ट के अनुसार, कुछ बदलाव होने के कारण अंतर-परिवर्तन संबंधी प्रमाण पत्र देना जरूरी था. लेकिन कंपनियों ने इस तरह का कोई प्रमाण पत्र नहीं दिया. इसके चलते फरवरी 2006 में दोबारा निविदाएं आमंत्रित की गयीं. इसके बाद में ऊंची दरों और सामग्री का स्वदेशीकरण होने की संभावना के चलते जरूरत को छह विंच रील हाइड्रॉलिक से घटाकर दो कर दिया गया. प्राथमिक स्तर पर ही देरी दिखाने के कारण सामग्री हासिल करने में 9.73 करोड़ रुपए का अतिरिक्त व्यय हुआ.
First Published: Sunday, September 11, 2011, 12:12