बंगाल के छोटे से गांव से राजपथ तक का सफर

बंगाल के छोटे से गांव से राजपथ तक का सफर


नई दिल्ली : बंगाल के एक छोटे से गांव में दीपक की रोशनी से दिल्ली की जगमगाती रोशनी तक की इस यात्रा के दौरान मैंने विशाल और कुछ हद तक अविश्वसनीय बदलाव देखे हैं। देश के 13वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेने के बाद अपने भाषण में ये उदगार प्रणब मुखर्जी ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि उस समय मैं बच्चा था, जब बंगाल में अकाल ने लाखों लोगों को मार डाला था। वह पीड़ा और दुख मैं भूला नहीं हूं। स्कूल जाने के लिए अकसर नदी तैरकर पार करने वाले प्रणब ने जमीन से उठकर कई मुकाम हासिल किए और आज अंतत: देश के सर्वोच्च नागरिक बन गए। वह भारत और भारतीयता के तानेबाने को पूरी तत्परता और तार्किकता से समझने में सक्षम रहे। सत्ता के गलियारों में उन्हें संकटमोचक कहा जाता था। प्रशासक और दलों की सीमा के पार अपनी स्वीकार्यता के लिए वह मशहूर रहे।

वह पहली बार 1969 में राज्यसभा के लिए चुने गए। एक बार राज्यसभा की ओर गए तो कई वर्षों तक जनता के बीच जाकर चुनाव नहीं लड़ा। सियासी जिंदगी में करीब 35 साल बाद उन्होंने लोकसभा का रुख किया। 2004 में वह पहली बार पश्चिम बंगाल के जंगीपुर संसदीय क्षेत्र से चुने गए। 2009 में भी वह लोकसभा पहुंचे। (एजेंसी)

First Published: Wednesday, July 25, 2012, 21:59

comments powered by Disqus