भगत सिंह के बिना अधूरी रहती आजादी की कहानी

भगत सिंह के बिना अधूरी रहती आजादी की कहानी

भगत सिंह के बिना अधूरी रहती आजादी की कहानीनई दिल्ली : भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में शहीद-ए-आजम भगत सिंह एक ऐसा नाम हैं जिनके बिना शायद आजादी की कहानी अधूरी रहती। वह सिर्फ युवाओं ही नहीं, बल्कि बुजुर्गों और बच्चों के भी आदर्श हैं। लाहौर सेंट्रल जेल में उनके द्वारा लिखी गई 400 पृष्ठ की डायरी उनके विहंगम व्यक्तिव की कहानी बयां करती है। वह लेखकों, रचनाकारों, इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों सबके लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं।

भगत सिंह को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर चमनलाल क्रांतिवीर मानने के साथ ही वैचारिक क्रांति का पुरोधा भी मानते हैं। उनका कहना है कि मात्र 23 साल की उम्र में शहीद हो जाने वाले इस युवा के बिना शायद आजादी की कहानी अधूरी कहलाती।

चमनलाल ने अपनी पुस्तक ‘क्रांतिवीर भगत सिंह : अभ्युदय और भविष्य’ में शहीद-ए-आजम के विहंगम व्यक्तित्व, कृतित्व और उनकी लोकप्रियता का व्यापक वर्णन किया है।

उनका कहना है कि यदि भगत सिंह न होते तो आज देश के लिए शायद कोई ऐसा आदर्श न होता जिसने वैचारिक क्रांति के दम पर ऐसे शासन की नींव हिला दी जिसका साम्राज्य दुनियाभर में फैला था।

उन्होंने बताया कि 23 मार्च 1931 को भगत सिंह की फांसी के बाद भारत का पत्रकारिता जगत उनसे संबंधित खबरों से अटा पड़ा रहता था। शहीद-ए-आजम की जीवनी लिखने के लिए जितेंद्रनाथ सान्याल को गोरी हुकूमत ने दो साल कैद की सजा सुनाई थी।

चमनलाल के अनुसार भगत सिंह ने जहां क्रांतिवीर के रूप में दुनिया के मानसपटल पर अपनी छाप छोड़ी, वहीं पत्रकार के रूप में भी उन्होंने अपनी भूमिका बखूबी निभाई। उन्होंने कहा कि अलीगढ़ के शादीपुर गांव में स्थित स्कूल आज भी इस बात का गवाह है कि देश के लिए मर मिटने वाला यह नौजवान एक कुशल शिक्षक भी था।

समाजशास्त्री स्वर्ण सहगल के अनुसार भगत सिंह के लिए क्रांति का मतलब हिंसा से नहीं, बल्कि वैचारिक परिवर्तन से था । बहरों को सुनाने के लिए सेंट्रल असेंबली में धमाका कर वह दुश्मन को उसी की भाषा में जवाब देने वाले योद्धा के रूप में नजर आते हैं। लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए सांडर्स को गोली से उड़ा देना भी उनके इसी जज्बे का प्रतीक था।

शहीए-ए-आजम के पोते (भतीजे बाबर सिंह संधु के पुत्र) यादविंदर सिंह ने कहा कि उनके दादा द्वारा लाहौर सेंट्रल जेल में लिखी गई डायरी इस बात की गवाह है कि उनके बिना भारत का स्वाधीनता संग्राम संभवत: अधूरा कहलाता।

उन्होंने कहा कि भगत सिंह की इस डायरी में जहां वैचारिक तूफान दिखाई देता है, वहीं उनके द्वारा लिखे गए गणित और राजनीति के सूत्र उनके व्यक्तित्व की विशालता को दर्शाते हैं।

यादविंदर के अनुसार उनके दादा द्वारा जेल में की गई लंबी भूख हड़ताल उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक थी जो युवाओं को देश के लिए अपने भीतर संकल्प शक्ति पैदा करने की सीख देती है। (एजेंसी)

First Published: Saturday, March 23, 2013, 14:30

comments powered by Disqus