Last Updated: Friday, August 2, 2013, 16:06

नई दिल्ली: राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे से बाहर रखने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का बचाव करते हुए शुक्रवार को केंद्र सरकार ने कहा कि राजनीतिक पार्टियां निर्वाचन आयोग के प्रति जवाबदेह होती हैं और वे प्राप्त होने वाले अनुदानों का खुलासा आयोग के समक्ष ही करती हैं। केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने यहां संवाददाताओं से कहा कि इस तरह की आम धारणा है कि राजनीतिक पार्टियां जवाबदेह नहीं होती हैं। हमें जनता निर्वाचित करती है। हमें जो भी अनुदान मिलता है, उसका खुलासा हमें निर्वाचन आयोग के समक्ष करना होता है। यदि राजनीतिक दलों को मिलने वाला अनुदान अस्पष्ट होता तो यह संभव नहीं हो पाता।
सिब्बल का यह बयान आरटीआई अधिनियम में संशोधन को मंजूरी देने वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल के गुरुवार के फैसले के बाद आया है, जिसका उद्देश्य राजनीतिक दलों को आरटीआई अधिनियम के दायरे से बाहर रखना है।
सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक दलों को 20,000 रुपये से अधिक का जो भी अनुदान मिलता है, उसके बारे में आयकर विभाग के समक्ष घोषणा करनी पड़ती है। यह सार्वजनिक भी किया जा सकता है। यदि राजनीतिक दल गोपनीयता के दायरे में काम करते तो यह संभव नहीं हो पाता।
उन्होंने कहा कि हम निर्वाचन आयोग को संपत्ति एवं ऋणों तथा अपने खर्च का ब्यौरा देते हैं। इसमें पूरी तरह पारदर्शिता रहती है। राजनीतिक दल न तो कंपनियां हैं और न ही न्यास। ये लोगों के स्वैच्छिक संघ होते हैं।
सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक दलों की नियुक्ति नहीं होती। हम चुनावी प्रक्रिया के तहत लोगों के पास जाते हैं। सरकारी कर्मचारियों से अलग हमारा निर्वाचन होता है। यह मूल अंतर है। (एजेंसी)
First Published: Friday, August 2, 2013, 16:06