Last Updated: Tuesday, December 27, 2011, 17:04

नई दिल्ली : लोकपाल विधेयक को कमजोर और अपर्याप्त बताते हुए मुख्य विपक्षी दल भाजपा सहित कई पार्टियों ने इसे वापस लिए जाने की मांग की हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाने की विपक्ष की मांग को नकारते हुए दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विधेयक पारित कराने की अपील की। लोकपाल बिल को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच मंगलवार को लोकसभा में जमकर तकरार हुई। विपक्षी दलों में किसी ने इस विधेयक में खामियां निकाली तो किसी ने इसे वापस लेने की मांग की जबकि कांग्रेस और सत्ताधारी गठबंधन के नेताओं ने विधेयक का बचाव किया। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोकपाल विधेयक में कई खामियां बताईं। पार्टी का कहना है कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत व प्रभावी कानून होना चाहिए लेकिन सरकार की ओर से पेश विधेयक में ऐसा कुछ भी नहीं है।
विधेयक पर विरोध की अगुवाई करते हुए लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने लोकसभा में लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कहा कि विधेयक को और प्रभावशाली और मजबूत बनाने के उद्देश्य से संसद की स्थायी समिति के पास वापस भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार या तो हमारे संशोधन माने या फिर विधेयक वापस ले। यह असंवैधानिक विधेयक है, जिसे विपक्ष बर्दाश्त नहीं करेगा। विरोध करने वालों में संप्रग के घटक और सहयोगी दल भी शामिल थे। वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता यशवंत सिन्हा ने मंगलवार को कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने लोकपाल विधेयक के बदले 'नैतिक रूप से दिवालिया' एक 'ब्रोकपाल' लाया है। तृणमूल और द्रमुक के साथ साथ राजद एवं सपा ने कहा कि केन्द्रीय कानून के जरिए लोकायुक्त बनाने का प्रावधान राज्यों के अधिकारों का हनन होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अन्ना हजारे के आंदोलन के दबाव में आकर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।
इन दलों के साथ साथ बीजद और तेदेपा ने भी कहा कि विधेयक पर्याप्त नहीं है। इस पर और गहन विचार होना चाहिए। राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने यह कहते हुए विधेयक वापस लेने की मांग की कि इसे जल्दबाजी में पेश किया गया है। चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार के कैंसर से निपटने के लिए समग्र नजरिये की जरूरत है लेकिन सीबीआई को लोकपाल के दायरे में लाने की विपक्ष की मांग ठुकरा दी। उन्होंने आगाह किया कि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बनानी चाहिए जो संविधान के ढांचे के अनुरूप न हो। राज्यों में लोकायुक्त बनाने के प्रावधान के विरोध को भी नकारते हुए सिंह ने कहा कि संघवाद को भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में बाधा नहीं बनना चाहिए क्योंकि राज्यों की आवश्यक सेवाएं भ्रष्टाचार की शिकार हैं।
वहीं, जनता दल (युनाइटेड) के शरद यादव ने कहा कि अन्ना हजारे के नेतृत्व में सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन का असली रूप सामने आ गया है। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन में दलित या पिछड़ा वर्ग का एक भी व्यक्ति शामिल नहीं है। उन्होंने प्रत्येक सांसद को भ्रष्ट बताए जाने के प्रयास का भी विरोध किया। समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने सरकार से लोकपाल विधेयक को प्रभावी बनाने के लिए विपक्षी पार्टियों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकार करने की अपील की। मुलायम ने सरकार द्वारा पेश विधेयक को कमजोर बताया। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार को कैसे खत्म किया जाए, इस बारे में पूरा देश सोच रहा है और उसे उम्मीद है कि यह विधेयक भ्रष्टाचार को समाप्त कर देगा। लेकिन अब केवल एक ही रास्ता है और वह है कि जो संशोधन लाए जा रहे हैं उन्हें स्वीकार किया जाए। लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक ने लोगों को निराश किया है। उन्होंने कहा कि यदि आप संशोधनों को स्वीकार नहीं करेंगे तो आप पर सीबीआई को अपने नियंत्रण में रखने का जो आरोप लगता है, वही आरोप लोकपाल के बारे में भी लगेगा। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लालू प्रसाद ने केंद्र सरकार से इस विधेयक को वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि विधेयक को ठीक तरीके से तैयार नहीं किया गया है और उसे वापस स्थायी समिति के पास भेज देना चाहिए।
उधर, वामपंथी दलों ने लोकपाल विधेयक को लेकर केन्द्र सरकार पर निशाना साधते हुए आज कहा कि वह एक कमजोर लोकपाल विधेयक पेश कर अपने गुप्त एजेंडे को साधने में लगी है। वाम दलों ने कहा कि सरकार पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर देश की जनता को संदेश देना चाहती है कि सरकार तो गंभीर है लेकिन विपक्ष उसका साथ नहीं दे रहा और इसीलिए चुनाव में उसे ही वोट दें। कम्युनिस्ट नेता गुरुदास दासगुप्ता ने लोकसभा में विधेयक पर हुई चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि आज राष्ट्रीय व्यवस्था का हर अंग भ्रष्टाचार की बीमारी से सड़ रहा है और उसे बचाने के लिए कास्मेटिक सर्जरी के बजाय ‘बड़े आपरेशन’ की जरूरत है।
दासगुप्ता का कहना था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ आजादी के बाद से ही लड़ाई जारी रही है , इसलिए प्रधानमंत्री द्वारा जन आंदोलन का जिक्र करना शोभा नहीं देता। इससे यह संदेश जाता है कि सरकार दबाव में है।
जल्दबाजी में नहीं लाया गया लोकपाल विधेयक : प्रणब केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि लोकपाल विधेयक को जल्दबादी में पेश नहीं किया गया। विधेयक पर चर्चा के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए मुखर्जी ने कहा कि सर्वदलीय बैठक के जरिए सरकार ने विधेयक पर आम सहमति बनाने की कोशिश की। ज्ञात हो कि विधेयक पर चर्चा करते हुए कई राजनीतिक पार्टियों ने सरकार पर विधेयक जल्दबाजी में लाने का आरोप लगाया। इसका जवाब देते हुए सदन के नेता प्रणब मुखर्जी ने कहा कि विधेयक जल्दबाजी में पेश नहीं किया गया। गत अप्रैल महीने से इस विधेयक पर संसद के भीतर और बाहर चर्चा की गई। विधेयक का मौसदा तैयार करने के लिए संयुक्त समति गठित हुई जिसमें केंद्रीय मंत्रियों के साथ सामाजिक संगठन के सदस्य शामिल हुए।
मुखर्जी ने 'सदन की भावना' का अपमान करने के विपक्ष के आरोपों को भी खारिज किया। उन्होंने कहा कि 27 अगस्त को लोकसभा में लोकपाल विधेयक में जिन तीन बिंदुओं- लोकपाल एवं लोकायुक्त संस्थाओं की एक कानून से स्थापना, सिटिजन चार्टर और निचली नौकरशाही को एक उपयुक्त तंत्र के जरिए लोकपाल के अधीन लाने पर जो सैद्धांतिक सहमति बनी। उन्हें संसद की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में शामिल किया। मुखर्जी ने कहा कि सामाजिक संगठन के अलावा स्थायी समिति को कई संगठनों और संस्थाओं से सुझाव मिले और इन सुझावों को विधेयक में शामिल किया गया। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, December 28, 2011, 11:38