Last Updated: Friday, November 23, 2012, 17:11
नई दिल्ली : राज्यों में लोकायुक्त गठित करने की जिम्मेदारी संबंधित राज्य विधायिकाओं पर छोड़ने की कई राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों की मांग से सहमति जताते हुए राज्यसभा की प्रवर समिति ने मुख्यमंत्रियों को लोकायुक्त के दायरे में लाने सहित प्रदेशों में इसके गठन के लिए कानून का जिम्मा राज्यों पर छोड़ दिया है। हालांकि लोकपाल संबंधी राज्यसभा की प्रवर समिति ने यह सिफारिश भी की है कि यह कानून राज्यों को लोकपाल कानून की अधिसूचना जारी होने के एक साल के अंदर अनिवार्य रूप से बनाना होगा।
कांग्रेस नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी की अध्यक्षता वाली 15 सदस्यीय प्रवर समिति ने राज्यसभा में आज पेश अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश की है। रिपोर्ट में लोकपाल के गठन, सीबीआई को मजबूत करने, लोकायुक्त संबंधी छह महत्वपूर्ण मुद्दों पर सर्वसम्मति से सिफारिश की गई है। चतुर्वेदी ने बाद में संसद परिसर में संवाददाताओं से बातचीत में दावा किया कि अब यह रिपोर्ट सीधे राज्यसभा में चर्चा के लिए जाएगी और यदि सदन चाहेगा तो उसमें आगे भी संशोधन किये जा सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रवर समिति की सिफारिशों को स्थाई समिति के विपरीत सरकार के पास न भेजकर सीधे सदन में भेजा जाता है।
गौरतलब है कि लोकसभा से पारित लोकपाल विधेयक पिछले साल शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में अटक गया था। इसमें प्रावधान था कि इस केंद्रीय कानून के तहत हर राज्य में लोकायुक्त का गठन होना चाहिए। पिछले साल लोकसभा में पारित होने के बाद विधेयक के विभिन्न प्रावधानों को राज्य सभा में विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ा था जिसके बाद इसे प्रवर समिति को भेजा गया था। कई राजनीतिक दलों को इस बात पर गहरी आपत्ति थी कि संसद द्वारा लोकायुक्त के लिए प्रावधान बनाना संघीय ढांचे के साथ छेड़छाड़ होगी।
चतुर्वेदी ने कहा कि प्रवर समिति की सिफारिशों में इस बात का सुझाव दिया गया है कि लोकपाल की चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश के अलावा एक विधि विशेषज्ञ होंगे। विधि विशेषज्ञ की नियुक्ति समिति के अन्य चारों सदस्यों की राय से की जाएगी। मूल विधेयक में यह प्रावधान था कि विधि विशेषज्ञ की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे, जिसे विभिन्न दल चयन समिति में सरकार के ज्यादा दबदबे के रूप में देख रहे थे।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लोकपाल के प्रमुख या सदस्य का निलंबन उच्चतम न्यायालय की सिफारिश या अंतरिम आदेश के माध्यम से राष्ट्रपति करेंगे। समिति की सिफारिशों में कहा गया है कि लोकपाल यदि किसी शिकायत में प्रथम दृष्टया मामला पाता है तो वह सीधे जांच के आदेश दे सकता है। साथ ही प्रारंभिक जांच में लोक सेवक और सक्षम प्राधिकारी का पक्ष जानने के प्रावधान को हटाने की सिफारिश की गयी है।
रिपोर्ट में सीबीआई को मजबूत बनाने और उसमें स्वायत्तता देने के लिए भी कई महत्वपूर्ण सिफारिश की गयी हैं। इनमें जांच एजेंसी में एक अलग अभियोजन निदेशालय होगा जिसके निदेशक की नियुक्ति केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की सिफारिश के आधार पर होगी। लोकपाल द्वारा भेजे गये मामले की जांच करने वाले सीबीआई अधिकारी का तबादला तब तक नहीं किया जाएगा जब तक कि लोकपाल उसे मंजूरी नहीं देता। साथ ही सीबीआई में लोकपाल की सहमति से वकीलों का एक अलग पैनल बनाया जाएगा जो सरकारी वकीलों से अलग होंगे। समिति ने सीबीआई में लोकपाल संबंधी मामलों की जांच करने वाली शाखा का सारा खर्च सरकार द्वारा वहन किये जाने की भी संस्तुति की है।
प्रस्तावित कानून के दायरे में प्रधानमंत्री को लाए जाने की मांग के बावजूद विदेशी मामलों , आंतरिक सुरक्षा, परमणु ऊर्जा, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और लोक व्यवस्था के मुद्दों पर प्रधानमंत्री को बाहर रखा गया है। समिति ने प्रावधान में सुझाया है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक और महिलाओं की श्रेणी से लोकपाल में 50 फीसदी से कम सदस्य नहीं होंगे।
समिति की रिपोर्ट में कहा गया, ‘इन प्रावधानों का मकसद महज लोकपाल संस्था में समाज के विभिन्न तबकों को प्रतिनिधित्व देना है।’ चतुर्वेदी ने राज्यसभा में रिपोर्ट पेश किये जाने के बाद कहा कि लोकपाल जैसे चर्चित और विवादित विधेयक पर रिपोर्ट देना समिति के लिए बहुत मुश्किल था और इस लिहाज से उनके सामने दो प्रमुख चुनौतियां थीं। एक कानूनी पेचीदगियों का समाधान और दूसरा सभी दलों के बीच सामंजस्य के साथ प्रभावी कानून पेश करना। उन्होंने दावा किया कि इस रिपोर्ट पर समिति में सभी दलों के सदस्यों के बीच सहमति है और किसी तरह का मतभेद नहीं है।
चतुर्वेदी के मुताबिक समिति के गठन के बाद से इसकी 19 बैठकें हुईं और कानूनविदों, संविधान विशेषज्ञों समेत 32 लोगों ने अपनी राय विधेयक के संबंध में दी। समिति ने यह सिफारिश भी की है कि जिन गैर सरकारी संगठनों को सरकार से सीधा सहयोग मिल रहा हो केवल उन्हें ही लोकपाल के दायरे में रखा जाए अन्यथा प्रस्तावित संस्थान में शिकायतों का अंबार लग जाएगा। (एजेंसी)
First Published: Friday, November 23, 2012, 17:11