Last Updated: Sunday, June 24, 2012, 10:57

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि सरकार या उसकी कोई एजेन्सी ढुलमुल रवैये के कारण किसी वाद को कानून में निर्धारित अवधि के बाद आगे बढ़ाना चाहती है तो उसे इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने बंबई हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक भू-स्वामी की याचिका पर यह व्यवस्था दी। हाईकोर्ट ने दीवान वाद की डिक्री होने के सात साल बाद बृहद मुंबई नगर निगम को इसके खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दे दी थी। ऐसे मामलों में कानूनी प्रावधान के तहत फैसले के 90 दिन के भीतर अपील की जा सकती थी।
न्यायाधीशों ने कहा कि शासन या उसकी एजेन्सियों से जुड़े मामले में न्यायालय को यह देखना चाहिए कि उसने निर्णय लेने की प्रक्रिया में कितना समय लिया है। लेकिन ऐसे मामले में यदि शासन या उसकी एजेन्सी के अधिकारी लापरवाही बरतते हैं या ढुलमुल रवैया अपनाते हैं तो उन्हें निश्चित अवधि में अपील दायर करने में हुए विलंब को माफ करने के लिए पेश अर्जी पर कोई रियायत नहीं देनी चाहिए।
इस मामले में मुंबई की निचली अदालत ने दो मई, 2003 को मणिबेन देवराज के पक्ष में डिक्री दी थी। मणिबेन ने मुंबई नगर निगम कानून की धारा 314 के तहत उसकी अचल संपत्ति गिराने संबंधी निगम की नोटिस को चुनौती दी थी। मुंबई नगर निगम ने अदालत की इस डिक्री को 90 दिन के भीतर चुनौती नहीं दी। नगर निगम ने सितंबर, 2010 में हाईकोर्ट में अपील दायर की और इसके साथ ही सात साल और 108 दिन के विलंब को माफ करने के लिए एक अर्जी भी संलग्न की थी। (एजेंसी)
First Published: Sunday, June 24, 2012, 10:57