Last Updated: Sunday, March 17, 2013, 16:22

चेन्नई : संप्रग के प्रमुख घटक द्रमुक ने श्रीलंकाई तमिलों के मुद्दे पर केंद्र की ‘‘धीमी’’ प्रतिक्रिया की आलोचना करते हुए आज धमकी दी कि अगर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में अमेरिकी प्रस्ताव पर वह संशोधन पेश करने में नाकाम रहता है तो पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर हो सकती है।
द्रमुक प्रमुख एम करूणानिधि ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘ अगर हमारी मांगें नहीं पूरी की गयीं तो संदेह है कि गठबंधन (संप्रग) के साथ हमारे संबंध जारी रहेंगे...निश्चित है कि यह जारी नहीं रहेंगे।’’ करूणानिधि ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र भी लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि वह महसूस करते हैं कि इस मुद्दे पर वह केंद्र द्वारा ‘‘अपमानित’’ किए गए हैं।
करूणानिधि ने पहले धमकी दी थी कि अगर सरकार श्रीलंका में कथित युद्ध अपराधों और अंतरराष्ट्रीय जांच के बारे में अमेरिकी प्रस्ताव पर कुछ संशोधनों के संबंध में उनकी पार्टी की मांग स्वीकार नहीं करती है तो केंद्रीय मंत्रिपरिषद से पार्टी के मंत्री वापस बुला लिए जाएंगे।
जल्दबाजी में यहां बुलाए गए संवाददाता सम्मेलन में 88 वर्षीय करूणानिधि ने कहा कि भारत द्वारा पेश संशोधनों को अमेरिका स्वीकार करे या नहीं, नयी दिल्ली को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकाय में संशोधन पेश करने चाहिए।
एक सवाल के जवाब में करूणानिधि ने कहा कि सरकार से अलग होने की चेतावनी देने के बाद केंद्र की ओर से किसी ने भी उनसे संपर्क नहीं किया है। द्रमुक 2004 से संप्रग की सहयोगी रही है और अभी लोकसभा में उसके 18 सांसद हैं। पार्टी की ओर से केंद्र में एक कैबिनेट मंत्री और चार कनिष्ठ मंत्री हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे पत्रों में द्रमुक प्रमुख ने जोर दिया है कि यह घोषणा करने के लिए सरकार को संशोधन लाने चाहिए कि श्रीलंका की सेना और प्रशासकों द्वारा तमिलों के खिलाफ युद्ध अपराध और नरसंहार किए गए। इसके साथ ही मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच के लिए विश्वसनीय एवं स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय आयोग गठित किए जाने की भी मांग की जाय।
दोनों नेताओं को ये पत्र कल रात फैक्स से भेजे गए। इन पत्रों में करूणानिधि ने कहा कि राज्य की ‘‘संवेदनशील स्थिति’’ को देखते हुए वह उन्हें पत्र लिखने के लिए विवश हुए हैं। उन्होंने कहा कि तमिल समुदाय के विभिन्न वर्गों विशेष रूप से राज्य के छात्रों द्वारा किए गए अनुरोधों पर भारत सरकार की ‘‘धीमी प्रतिक्रिया’’ के संदर्भ में तमिलों के बीच धारणा है कि उनके साथ ‘‘अन्याय’’ हुआ है। (एजेंसी)
First Published: Sunday, March 17, 2013, 15:41