‘संबंधों की आदी महिलाओं को गरिमा बचाने का अधिकार’

‘संबंधों की आदी महिलाओं को गरिमा बचाने का अधिकार’


नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भले ही कोई महिला अनेक लोगों से शारीरिक संबंध बनाने की आदी हो लेकिन केवल इस आधार पर उसके साथ दुष्कर्म को जायज नहीं ठहराया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों की जिम्मेदारी यह पता लगाना है कि अपराध हुआ या नहीं।

अदालत ने कहा कि भले ही ऐसे मामले हों जहां किसी सामग्री से यह बात दिखाई देती है कि पीड़ित शारीरिक संबंध बनाने की आदी है लेकिन इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि वह कमजोर आचरण वाली या कमजोर नैतिक चरित्र वाली महिला है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस तरह की महिला को अपनी गरिमा बचाने का अधिकार है और केवल उक्त कारण से उसके साथ दुष्कर्म नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि उसे किसी के साथ और सबके साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना करने का अधिकार है क्योंकि वह किसी के या सभी के यौन उत्पीड़न के लिहाज से कोई कमजोर वस्तु नहीं है। न्यायमूर्ति बीएस चौहान और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने कथित तौर पर एक गृहिणी के साथ दुष्कर्म करने के दोषी उसके पड़ोसी शख्स नरेंद्र कुमार को बरी करते हुए यह फैसला सुनाया।

हालांकि शीर्ष अदालत ने निचली अदालत तथा दिल्ली उच्च न्यायालय के निष्कर्षों को रद्द कर दिया जिसने कुमार को 1999 में चिराग दिल्ली में कथित अपराध के लिए सात साल कैद की सजा सुनाई थी। पीठ ने मौजूदा मामले में कहा कि पीड़ित के बयान में कई खामियां है इसलिए दोषी को बरी किया जाना चाहिए। हालांकि शीर्ष अदालत ने कुमार की इस दलील को खारिज कर दिया कि पीड़ित महिला चरित्रहीन थी और उसके कई लोगों के साथ संबंध थे।(एजेंसी)

First Published: Saturday, May 26, 2012, 00:13

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