Last Updated: Saturday, September 24, 2011, 14:14
संयुक्त राष्ट्र : प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मौजूदा परिस्थितियों को बेहतर ढंग से परिलक्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जल्द सुधार और विस्तार किये जाने की जोरदार वकालत की है. उन्होंने दुनिया के देशों से आह्वान किया कि वह वैश्विक आर्थिक मंदी को हरसंभव अपने-अपने तरीके से रोकने की कोशिश करें.
संयुक्त राष्ट्र महासभा को तीन साल के अंतराल के बाद संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई चुनिंदा मोर्चों पर नहीं लड़ी जा सकती है और इसका मुकाबला सभी मोर्चों पर किये जाने की जरूरत है. भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान (समूह चार) देशों की बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार पर जोर दिया गया.
मज़बूत और प्रभावी संयुक्त राष्ट्र की जरूरतप्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया एक मजबूत और प्रभावी संयुक्त राष्ट्र चाहती है. भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनना चाहता है. उन्होंने कहा, ‘हमें एक ऐसे संयुक्त राष्ट्र की जरूरत है जो अमीर, गरीब, बड़े, छोटे सभी की उम्मीदों के प्रति संवेदनशील हो. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र और उसके प्रमुख अंगों महासभा और सुरक्षा परिषद में सुधार एवं फिर से जान फूंकने की जरूरत है.’
मनमोहन सिंह ने अपने 15 मिनट के सम्बोधन में कहा, ‘सुरक्षा परिषद को यदि मौजूदा वास्तविकताओं को परिलक्षित करना है तो उसमें सुधार और उसका विस्तार जरूरी है. इस प्रकार के नतीजे से वैश्विक मुद्दों से निपटने में परिषद की विश्वसीनयता और दक्षता बढ़ जाएगी. सुरक्षा परिषद के शीघ्र विस्तार के लिए नए जोश से काम किये जाने की जरूरत है.’
फिर से अपनाना होगा अंतरराष्ट्रीयवाद और बहुपक्षीयवाद का सिद्धांतप्रधानमंत्री ने कहा कि आतंकवाद का कहर अभी तक जारी है और वह बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की जान ले रहा है. अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नये खतरे उत्पन्न हुए हैं. यदि हम टकराववादी रवैये की जगह सहयोगात्मक रूख अपनाये तो हमें सफलता मिलेगी. उन्होंने कहा, ‘यदि हम एक बार फिर संरा के मूलभूत सिद्धांतों अंतरराष्ट्रीयवाद और बहुपक्षीयवाद को अपनाते हैं तो हमें सफलता मिल सकती है.’ पश्चिम एशिया के अशांत क्षेत्रों में ‘हस्तक्षेप’ के मुद्दे को लेकर जारी विवाद के बीच सिंह ने कहा कि कानून का पालन करना अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि देशों के भीतर.
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘समाजों को बाहर से सैन्य बलों के जरिये व्यवस्थित नहीं किया जा सकता. सभी देशों के लोगों को अपना भाग्य चुनने और अपना भविष्य तय करने का अधिकार है.’ मनमोहन ने कहा कि परिवर्तन की प्रक्रिया में सहायता करने और संस्थानों के निर्माण में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भूमिका निभाना है, लेकिन बाहर से समाधान थोपना खतरों से भरी बात है. उन्होंने कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र के अधिकार के तहत की जानी वाली कार्रवाई को वैयक्तिक देशों की एकता, सीमाई अखंडता, संप्रभुता और स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए.’
आर्थिक नीतियों में तालमेल के प्रभावी तरीके अपनाए जाएंएक अनुभवी अर्थशास्त्री के तौर उन्होंने मौजूदा स्थिति की चर्चा करते हुए कहा कि विश्व की अर्थव्यवस्था संकट में है. उन्होंने कहा, ‘2008 के वित्तीय एवं आर्थिक संकट के बाद सुधार के संकेत अभी तक उभर कर सामने नहीं आये हैं. कई मायनों में तो संकट और गहरा गया है.’ प्रधानमंत्री ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति तय करने वाले देश यूरोप, अमेरिका और जापान विश्व की आर्थिक एवं वित्तीय स्थिरता के स्रोत होते थे, लेकिन वे भी आर्थिक मंदी का सामना कर रहे हैं. इन देशों में मंदी के रूझान से विश्व के वित्तीय एवं पूंजी बाजारों का भरोसा प्रभावित हो रहा है.
उन्होंने कहा कि इन घटनाक्रमों का विकासशील देशों पर असर पड़ना अवश्यंभावी है. उन देशों को मुद्रास्फीति का अतिरिक्त दबाव झेलना पड़ेगा. उन्होंने कहा, ‘वैश्विक मांग और पूंजी की उपलब्धता कम होने, मुक्त व्यापार के लिए बढ़ती अड़चने और बढ़ता ऋण बोझ अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय प्रणाली के लिए खतरा बन रहा है. ब्रेटन वुड्स संस्थानों की दक्षता पर सवाल उठने लगे हैं.’ मनमोहन ने कहा कि विभिन्न देशों को इस बात की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए कि वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण वे लोगों, सेवाओं और पूंजी की गतिविधियों पर अड़चने लगाने या संरक्षणवाद के जरिये अपने चारों ओर दीवार खड़ी करें.
उन्होंने कहा कि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की स्थूल आर्थिक नीतियों में तालमेल के प्रभावी तरीके अपनाये जाने चाहिए. अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों की प्रशासन प्रणाली में सुधार को तेज गति एवं कुशलता के साथ अंजाम दिया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री ने कहा कि विकास एजेंडा को संयुक्त राष्ट्र की प्राथमिकता के केन्द्र में दृढ़ता से लाये जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘हमें संतुलित, समावेशी और स्थिर विकास के लिए ठोस प्रयासों की जरूरत है ताकि मानवता के व्यापक वर्गों का लाभ मिल सके. इस काम में प्रत्येक व्यक्ति योगदान दे सकता है, लेकिन यदि हम भागीदारी में काम करें तो हम कहीं ज्यादा हासिल कर सकते हैं.’
मनमोहन ने कहा, ‘यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अपनी कथनी और करनी से संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र और उद्देश्यों में लोगों का नये सिरे से भरोसा पैदा कर सकें. मुझे विश्वास है कि हम राजनयिक, दूरदृष्टि और सामूहिक प्रयासों के जरिये इस काम को कर सकते हैं. भारत इस अनूठे प्रयास में अपनी भूमिका निभाने को तैयार है.’ उन्होंने कहा, ‘हमें अफ्रीका की ओर विशेष तौर पर ध्यान देना होगा. अफ्रीका की सबसे समृद्ध संसाधन वहां के खनिज नहीं बल्कि लोग हैं. हमें उन्हें अधिकार संपन्न बनाना होगा तथा प्रौद्योगिकी, शिक्षा और दक्षता विकास के क्षेत्र में मानवीय विकास के द्वार खोलने होंगे.’
खाद्य सुरक्षा क्षेत्र में प्रयासों की अगुवाई करे संरामनमोहन ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में किये जाने वाले प्रयासों की अगुवाई करनी चाहिए. हमें कृषि प्रौद्योगिकी, जल संरक्षण और भूमि प्रयोग एवं उत्पादकता तथा जिंस कीमत में स्थिरता में ज्यादा सहयोग की जरूरत है. उन्होंने विकास के लिए शांतिपूर्ण बाहरी परिवेश की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि आतंकवाद के खिलाफ निरंतर लड़ाई की जरूरत है. प्रधानमंत्री ने कहा कि दक्षिण एशिया में सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के उत्साहजनक संकेत हैं. जैसा कि भारत के बांग्लादेश के साथ सहयोग से मिसाल मिलती है. इस प्रकार के सहयोग से दोनों देशों की सुरक्षा में इजाफा हो रहा है.
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दशकों में भारत ने लाखों लोगों को अधम गरीबी से निजात दिलायी है। ‘हम अपनी आबादी को बेहतर तरीके से भोजन देने, बेहतर शिक्षा देने और उनकी आर्थिक पसंद का दायरा बढ़ाने में सक्षम हुए हैं. लेकिन हमें अभी बहुत कुछ करना शेष है.’ प्रधानमंत्री ने तेजी से विकसित हो रहा भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के दायरों को बढ़ा सकता है. बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष भारत विभिन्न देशों के बीच सहिष्णुता और शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में योगदान दे सकता है. प्रधानमंत्री ने कहा कि विकासशील देशों को अपने उत्पादों के लिए निवेश, प्रौद्योगिकी और बाजार तक पहुंच की जरूरत है. उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण और कृषि के क्षेत्रों में सहयोग की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा कि हाल में हुए चौथे संरा अल्प विकसित देशों के सम्मेलन में भारत ने ऐसे देशों के साथ अपनी भागीदारी बढ़ाते हुए उन्हें दिये जाने वाले ऋण में भारी वृद्धि की और पूंजी निर्माण में सहयोग बढ़ा दिया. मनमोहन ने कहा कि आज उन्होंने जिस दृष्टिकोण का खाका खीचा है वह उन मार्गनिर्देशों में शामिल हैं जिनसे सुरक्षा परिषद में भारत के कदम प्रेरित होता है. भारत इस साल जनवरी में परिषद का गैर स्थायी सदस्य बना है. उन्होंने कहा, ‘लाखों लोग गरीबी में रह रहे हैं. उनकी पीड़ा बढ़ गयी है, जिसमें उनकी कोई गलती नहीं है. इसका कारण हाल के वर्षों में आया वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय संकट है. लिहाजा दुनिया भर में सरकारों के कामों की बारीकी से समीक्षा की जा रही है.’
First Published: Saturday, September 24, 2011, 19:59