Last Updated: Wednesday, May 15, 2013, 20:17
नई दिल्ली : निचली अदालतों में छोटे-छोटे कारणों को लेकर मुकदमे की सुनवाई के लिए लंबी तारीख देने की प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अधीनस्थ न्यायपालिका से कहा है कि वे इससे बचें और वकीलों के ऐसे आचरण के मूकदर्शक न बनें।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत के न्यायाधीश मुकदमे की सुनवाई स्थगित करने के अनुरोध स्वीकार करके अपनी जिम्मेदारी छोड़ नहीं सकते और अदालती कार्यवाही के चलने के तरीके के वह मूक दर्शक नहीं बन सकते। न्यायाधीशों ने उम्मीद व्यक्त की कि निचली अदालतें कानूनी प्रावधानों और शीर्ष अदालत की व्याख्याओं को ध्यान में रखेंगे और वे न तो अपनी सोच से निर्देशित होंगी और न ही उन्हें संबंधित पक्षों के वकीलों द्वारा अपने हिसाब से अदालती कार्यवाही नियंत्रित करने के मामले में मूक दर्शक बने रहना चाहिए।
न्यायालय ने कहा कि निचली अदालतों को अपनी भूमिका निभानी होगी। उन्हें मुकदमे की निगरानी करनी होगी और वे अपनी जिम्मेदारी छोड नहीं सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्याय व्यवस्था को पक्षकारों या उनके वकीलों की मनमर्जी पर नहीं छोड़ा जा सकता और निचली अदालतों को अनावश्यक स्थगन नहीं देने चाहिए। न्यायालय ने वकीलों से भी कहा कि वे मुकदमों की सुनवाई स्थगित कराने के लिये तरह तरह के तरीके अपनाकर सुनवाई की निष्पक्षता का किसी भी तरह निरादर नहीं करें।
न्यायालय ने पंजाब में आत्महत्या के एक मामले में आरोपी और उसके वकील के अनुरोध पर अनावश्यक रूप से मुकदमे की सुनवाई स्थगित करने के कारण गवाहों से पूछताछ की प्रक्रिया में दो साल से भी अधिक समय लगने के तथ्य के मद्देनजर यह टिप्पणी की। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, May 15, 2013, 20:17