Last Updated: Sunday, July 7, 2013, 14:03

जयपुर : देश भर में पानी वाला बाबा के नाम से प्रसिद्ध राजेन्द्र सिंह ने कहा है कि हिमालय में निर्माण कार्य में भारी भरकम मशीनों के उपयोग और भारी मात्रा में बारूद के इस्तेमाल के कारण उत्तराखंड में तबाही मची और अगर सरकार को उत्तराखंड का स्थायी पुर्नवास करना है तो उसकी योजना बनने तक हिमालय में बन रहे बांध के कार्य रोक दिये जाने चाहिए। सिंह ने में उत्तराखंड में आयी तबाई पर चिन्ता जताते हुए कहा कि उत्तराखंड की मौजूदा और पूर्व सरकार ने हमारी और वैज्ञानिकों की राय मानी होती तो यह हालात पैदा नहीं होते। जिन बांधों ने हिमालय और उत्तराखंड को हानि पहुंचायी है उन सभी कम्पनियों को क्षतिपूर्ति करनी चाहिए। सरकार को उत्तराखंड में स्थायी पुर्नवास की योजना बनने तक हिमालय में बनने वाले बांधों के कार्य रोक देने चाहिए।
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित सिंह ने कहा कि हिमालय अभी तरूण ,किशोर है। युवा भी नहीं है। पूरी पर्वत श्रृंखला उपर बढती जा रही है, ऐसे में हाइड्रो पावर बनाने के लिए पहाड़ों में भारी भरकम मशीने काम में ली गईं और बारूद का इस्तेमाल किया किया है । मैं इसे अप्राकृतिक विकास का विशुद्ध तौर पर विनाश मानता हूं। उन्होंने कहा कि हाइड्रो पावर बनाने के लिए बड़ी मशीनों का उपयोग करने और बारूद का इस्तेमाल करने के कारण हिमालय में दोनों ओर दरारें आ गयीं और तेज बहाव में यह अवरोधक बनते चले गये। हाइड्रो प्रोजेक्ट करीब छह सौ मेगावाट का है।
वर्ष 1985 में अलवर जिले में वर्षा के पानी का संरक्षण करने के लिए तरूण भारत संघ के माध्यम से काम शुरू करने वाले जल पुरूष सिंह ने कहा कि विष्णु प्रयाग घाटी से पानी एकत्रित होकर श्रीनगर बांध में पहुंचा और यह बांध पूरा भरने के बाद श्रीनगर आधा डूब गया। श्रीनगर में पांच फुट मिट्टी जमा हो गई। उन्होंने कहा कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए हिमालय में खोदी गई सुंरगों का मलबा वहीं पर डाल देने के कारण उत्तराखंड में यह हालात बने। यदि निर्माण कम्पनियां अपनी शर्तों के अनुसार, मलबे को हटा लेतीं तो संभवत यह हालात नहीं बनते।
अलवर जिले में करीब साढ़े चार सौ से अधिक जोहड़ (पानी को एकत्रित करने का स्थान) विकसित करने वाले सिंह ने कहा कि वह, डॉ भरत झुनझुनवाला और बी डी अग्रवाल समेत अन्य कई वैज्ञानिक इन दुष्परिणामों से सरकार और वहां के निवासियों को आगाह करने के लिए गत 22 जून 2012 को देवी मन्दिर के पास सभा कर रहे थे। ‘उसी दौरान पुलिस, गुंडों और असामाजिक तत्वों ने हमें जबरदस्ती वहां से खदेड़ा और र्दुव्यणवहार किया। गांव वालों ने भी हमारा साथ नहीं देकर असामाजिक तत्वों को सहयोग दिया।’ सिंह ने कहा कि सभी वैज्ञानिक सालों से कह रहे है कि हिमालय में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट गलत बन रहा है लेकिन पूर्व और मौजूदा सरकारें हमारी बात सुनने को तैयार नहीं थीं। ‘और तो और हमें विकास विरोधी बताया गया। अलकनंदा का मलबा बहकर टिहरी बांध से होता हुआ भागीरथी पहुंचा और उत्तरकाशी में जबरदस्त तबाही मच गई।
सिंह ने कहा कि हिमालय में पिछले दिनों उर्जा उत्पादन के नाम पर बहुत विनाश हुआ है। ‘हिमालय में कितनी मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है, उत्पादित बिजली में से कितनी छीजत होगी, इसका आज तक उर्जा मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया है लेकिन मेरी जानकारी के मुताबिक, हिमालय में जितनी बिजली का उत्पादन होगा वह पूरी छीजत में चली जायेगी। हिमालय में इतनी संख्या में बांध बनाना हिमालय और भारत के लिए सुरक्षित नहीं है।’ उन्होंने कहा कि हिमालय में बने बांधों के कारण बादल फटने और भूस्खलन आने पर टिहरी जैसा बड़ा बांध राष्ट्रीय राजधानी नयी दिल्ली को नुकसान पहुंचा सकता है। सिंह ने कहा कि उत्तराखंड में आये प्रलय में करीब ढाई लाख श्रद्धालु प्रभावित हुए हैं और एक अनुमान के अनुसार, करीब पचास हजार श्रद्धालु घायल हुए हैं। (एजेंसी)
First Published: Sunday, July 7, 2013, 14:03