JMM से 28-28 महीने का नहीं हुआ था करार: मुंडा

JMM से 28-28 महीने का नहीं हुआ था करार: मुंडा

JMM से 28-28 महीने का नहीं हुआ था करार: मुंडारांची : झारखंड के वर्तमान राजनीतिक भूचाल के लिए कार्यवाहक मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की उस चिट्ठी ने आग में घी का काम किया जिसमें उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक दल के नेता हेमंत सोरेन और उनके पिता शिबू सोरेन को टका सा जवाब दे दिया था कि 11 सितंबर, 2010 को सरकार गठन के समय भाजपा और झामुमो में 28-28 महीने सरकार का नेतृत्व करने का कोई समझौता नहीं हुआ था। कार्यवाहक मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने झामुमो के नेता हेमंत सोरेन और उनके माध्यम से उनके पिता शिबू सोरेन को भेजे गये अपने तीन जनवरी के जवाब की प्रति देते हुए यह स्पष्ट बताया कि वास्तव में झामुमो की ओर से हेमंत सोरेन द्वारा पत्र में उठाये गये मुद्दे छलावा मात्र थे और समर्थन वापसी के पीछे कुछ और कारण थे। अन्यथा जवाब ठीक नही होने पर यदि कोई समस्या थी तो उसे हल करने के लिए बातचीत की पहल करनी चाहिए थी, न कि राज्य सरकार को गिराने का फैसला करना चाहिए था।

मुख्यमंत्री ने तीन जनवरी के हेमंत सोरेन को संबोधित अपने पत्र में सातवें बिंदु के रूप में स्पष्ट लिखा था, ‘‘पत्र के अंतिम बिंदु के माध्यम से आपने 28-28 माह की बातों का उल्लेख किया है। आपको स्मरण होगा कि मई, 2010 में तत्कालीन सरकार को आगे चलाने विषयक वार्ता के क्रम में 28-28 माह की चर्चा हुई थी, परन्तु उस बिन्दु का पटाक्षेप वहीं हो गया क्योंकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया।’’

मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने हेमंत को लिखे गये अपने पत्र में आगे लिखा था, ‘‘चार माह के राष्ट्रपति शासन के उपरान्त राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था के पुनस्र्थापित करने के उद्देश्य से यह पहल हुई, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों की भूमिका यह रही कि ‘‘राज्य में लोकतंत्र का विकल्प राष्ट्रपति शासन नहीं होगा। क्योंकि जनता ने जनप्रतिनिधियों को चुना है, और विधानसभा भी भंग नहीं हुई है। अत: हम सभी विधायक लोकतंत्र की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए राज्य के विकास एवं जन अपेक्षाओं के अनुकूल आगे काम करेंगे।’’ मुंडा ने आगे अपने पत्र में लिखा था, ‘‘इन्हीं लोकहित के विकास, सुशासन, एवं लोकतंत्र के सुस्थापन के उद्देश्य को ध्यान में रखकर हम सबके द्वारा बिना किसी शर्त के सरकार बनाने की पहल हुई और उसके अनुरूप सबके प्रयास से वर्तमान सरकार का गठन हुआ।’’ पत्र में स्पष्ट उल्लेख है, ‘‘सरकार गठन के प्रसंग में उस समय 28-28 माह की कोई बात नहीं, कोई शर्त नहीं रही और जनहित में सरकार का गठन हुआ।’’ मुंडा ने हेमंत को लिखा था, ‘‘आपने इस दिशा में स्वयं सम्यक पहल की और सम्पूर्ण प्रक्रिया के महत्वपूर्ण सहभागी रहे। आपने राज्यहित में लोकतांत्रिक मूल्यों के आलोक में सरकार गठन एवं इसकी उपादेयता के बारे में झामुमो की प्रतिबद्धता दोहरायी है।’’

मुख्यमंत्री ने अपना उत्तर पूरा करते हुए लिखा था, ‘‘आज हम सबके समक्ष राज्य में सहभागी समेकित विकास का प्रश्न सबसे अहम है। हम सब के लिए श्रेयस्कर यही होगा कि राज्य की प्राथमिकताओं को तय करें और उस दिशा में समेकित प्रयास करें।’’ मुख्यमंत्री के इस पत्र के बारे में प्रतिक्रिया पूछे जाने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सिर्फ यह कहा कि मुख्यमंत्री का पद संवैधानिक मर्यादा का होता है, अत: उनकी बात का महत्व है।

यह पूछे जाने पर कि फिर गुरु जी के उस बयान पर झामुमो का क्या कहना है जिसमें वह पिछले कुछ माह से सरकार गठन के समय भाजपा से 28-28 माह के लिए सरकार का नेतृत्व करने का समझौता होने का राग अलाप रहे थे, पार्टी प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘हमारे लिये गुरुजी की बात का भी उतना ही महत्व है जितना मुख्यमंत्री की बात का है।’’ यह पूछे जाने पर कि आखिर झामुमो के पास इस तरह के समझौते का क्या पुख्ता सबूत है, भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘सबूत तो मीडिया के पास होगा जिसने सितंबर, 2010 में सरकार गठन के दौरान सभी घटनाक्रम का कवरेज किया था।’’ यह कहे जाने पर कि मीडिया को अपने रिकार्ड खंगालने पर ऐसा कोई सबूत नहीं मिला, आप बतायें झामुमो के पास क्या सबूत है, झामुमो प्रवक्ता ने चुप्पी साध ली और कहा कि गुरू जी वक्त आने पर इसका खुलासा करेंगे।

झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक वरिष्ठ नेता और निवर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि वह स्वयं जानते हैं कि ऐसा कोई समझौता सितंबर, 2010 में नयी सरकार के गठन के समय भाजपा और झामुमो के बीच नहीं हुआ था लेकिन कुछ लोगों ने निहित स्वार्थ में गुरू जी से जानबूझकर ऐसे झूठे निराधार बयान दिलवाये जिससे बाद में सरकार संकट में आ जाये। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिनेशानंद गोस्वामी ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा कि वास्तव में झारखंड मुक्ति मोर्चा में कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए मुंडा सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन के मन में मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पैदा कर दी और उसी के परिणामस्वरूप राज्य की जनता आज फिर राष्ट्रपति शासन के एक और दौर के कगार पर खड़ी है।

इस संबंध में पूछे जाने पर झारखंड मुक्ति मोर्चा विधायक दल के नेता हेमंत सोरेन ने कहा कि वह अभी इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं करेंगे और वक्त आने पर सभी सवालों का जवाब देंगे। उन्होंने इतना अवश्य कहा कि मुंडा सरकार में गुरू जी की बातों की अवहेलना और उनका निरादर हो रहा था जिसे वह बिल्कुल सहन नहीं कर सकते हैं।

इस बीच, कांग्रेस विधायक दल के नेता राजेन्द्र सिंह ने मुंडा सरकार के गिरने पर सिर्फ इतना कहा कि यह पूरा अंतर्कलह का मामला था और यदि भाजपा ने झामुमो के साथ 28-28 माह का कोई समझौता किया था तो उसे उसका सम्मान करना चाहिए।

यह पूछे जाने पर कि मुंडा सरकार के गिरने में भाजपा कांग्रेस का हाथ मान रही है, इस पर उनका क्या कहना है, सिंह ने कहा, ‘‘अपने चमन में आग लगने पर भाजपा ऐसे ही अनर्गल आरोप लगाती है।’’ इस बीच, राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि गुरूजी से हेमंत और झामुमो के दिल्ली में सक्रिय कुछ अन्य नेताओं ने जानबूझकर गलत बयान दिलवाया जिससे भाजपा उसका प्रतिवाद करे और मामला सरकार गिरने तक पहुंच जाये क्योंकि झामुमो में कोई भी किसी भी हाल में गुरूजी को झूठा नहीं मान सकता है। (एजेंसी)

First Published: Sunday, January 13, 2013, 15:08

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