नई दिल्ली के रैन बसेरों में बदइंतजामी का आलम

नई दिल्ली के रैन बसेरों में बदइंतजामी का आलम

नई दिल्ली के रैन बसेरों में बदइंतजामी का आलम नई दिल्ली : हाड़ कंपा देने वाले जाड़े से परेशान बेघरों के लिए रैन बसेरों की बहुत अहमियत है, लेकिन इन रैनबसेरों के हालात इस लायक नहीं हैं कि यहां सुरक्षा और आराम से रात गुजारी जा सके। यही वजह है कि बेआसरा होते हुए भी लोग यहां रात बिताना मुनासिब नहीं समझते।

दिल्ली सरकार राजधानी में 150 रैन बसेरे चलाने का दावा करती है, जहां बेघर बेआसरा लोगों को कंबल, दरी, पीने का पानी, बुनियादी स्वास्थ्य सेवा, स्वच्छ शौचालय आदि की सुविधाएं प्रदान करने का दावा किया जाता है। सरकार की 26 नये मॉडल रैन बसेरे बनाने की भी योजना है। रैनबसेरों के हालात का जायजा लेने के लिए समय-समय पर सरकार निगरानी टीमें गठित करती है।

लेकिन जमीनी हकीकत पर नजर डालें तो इन रैनबसेरों में हालात ऐसे हैं कि बहुत से लोग इनमें रात गुजारने की बजाय फुटपाथ, अंडरपास या सरकारी शौचालयों में रात काटना मुनासिब समझते हैं।

झारखंड में गिरिडीह के रहने वाले महबूब आलम अपने इकलौते बेटे की आंख का इलाज एम्स में करवाने आए हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली में रहने का कोई ठिकाना नहीं होने पर वह सरकार द्वारा चलाए जा रहे एक रैन बसेरे में रात गुजारने पहुंचे तो वहां इतनी बदबू और गंदगी थी कि उनका बेटा वहां रहने के लिए तैयार नहीं हुआ और ऐसे में उन्हें अंडरपास को अपनी शरणस्थली बनाना पड़ा।

बंगाल से दिल्ली आकर रिक्शा चलाने वाले देबाशीष ने बताया कि रैन बसेरे में काफी भीड़-भाड़ और गंदगी होने के कारण वह सड़क किनारे बने सरकारी शौचालय में रहने के लिए मजबूर है। देबाशीष के अनुसार रैनबसेरों में रहने वाले लोग कई बार सोए हुए लोगों का सामान चुरा लेते हैं और जेब से पैसे निकाल लेते हैं। पूछताछ करने पर नौबत मार पिटाई तक पहुंच जाती है।

आश्रय अधिकार अभियान के निदेशक परिचालन संजय कुमार का हालांकि कहना है कि रैनबसेरों के हालात इतने बुरे नहीं हैं कि वहां रहा न जा सके। वैसे वह मानते हैं कि इन रैन बसेरों की व्यवस्था में सुधार की गुंजाइश है।

संजय ने बताया कि दिल्ली में साढ़े सात हजार लोग इन रैन बसेरों में रह रहे हैं और बाकी बहुत से बेघर लोग फुटपाथ, अंडरपास, सरकारी शौचालयों और इधर-उधर रहने के लिए मजबूर हैं।

संजय कुमार ने बताया कि इन रैन बसेरों में महिलाएं और बच्चे भी रूकते हैं और इन जगहों पर ठहरने वाले लोगों से इन साढ़े चार महीनों के दौरान कोई किराया नहीं वसूल किया जाता।

इन जगहों पर आपराधिक गतिविधियों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि छोटी-मोटी छीना-झपटी जैसी घटनाओं को छोड़ कर कोई बड़ी घटना देखने को नहीं मिली।

सरकार, गैर सरकारी संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता और कई स्वयंसेवी संगठन ठंड में बेघर लोगों को सुविधा मुहैया कराने के काम में लगे हैं और वे हालात को और बेहतर बनाने के लिए सरकार से ठोस और कारगर कार्रवाई का आश्वासन चाहते हैं। (एजेंसी)

First Published: Sunday, January 6, 2013, 15:35

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