Last Updated: Wednesday, March 28, 2012, 16:56
कोलकाता : पश्चिम बंगाल सरकार ने नया विवाद छेड़ते हुए सरकार से मदद प्राप्त पुस्तकालयों में अंग्रेजी और अधिक प्रसार संख्या वाले बंगाली अखबारों पर प्रतिबंध लगा दिया। अब इन पुस्तकालयों में केवल आठ चुने हुए अखबार ही उपलब्ध रहेंगे।
ममता बनर्जी सरकार की ओर से आधिकारिक परिपत्र के जरिये जारी किए गए इस आदेश की आज तृणमूल कांग्रेस के गठबंधन सहयोगी कांग्रेस तथा विपक्षी वामदलों और बुद्धिजीवियों ने आलोचना की। इन सदस्यों का कहना है कि यह फैसला ‘अलोकतांत्रिक, अवांछित और सेंशरशिप से भी खतरनाक है।’ इस परिपत्र को वापस लेने की भी मांग की गई।
राज्य सरकार ने हालांकि अपने फैसले का बचाव करते हुए परिपत्र को वापस लेने से इनकार कर दिया। सरकार ने यह भी कहा कि यह आदेश नीति के अनुसार जारी किया गया। राज्य के पुस्तकालय मामलों के मंत्री अब्दुल करीम चौधरी ने मुख्यमंत्री के साथ 45 मिनट की बैठक के बाद कहा कि परिपत्र ठीक है। यह परिपत्र सरकार की नीति के अनुसार जारी किया गया है। आदेश के अनुसार, सार्वजनिक पुस्तकालयों में अब केवल संवाद, प्रतिदिन, सकालबेला, खबर 365 दिन, एकदिन, दैनिक स्टेट्समैन (सभी बंगाली), सन्मार्ग (हिन्दी), अखबार-ए-मुशरिक और आजाद हिन्द (दोनों उर्दू) अखबार ही उपलब्ध रहेंगे। आदेश के अनुसार, पश्चिम बंगाल के राज्य प्रायोजित तथा मदद प्राप्त पुस्तकालयों में अब अंग्रेजी या बड़ी प्रसार संख्या वाले बंगाली अखबार उपलब्ध नहीं होंगे।
परिपत्र में कहा गया है कि राज्य के सार्वजनिक पुस्तकालयों में किसी राजनीतिक दल द्वारा छापे जाने वाले अखबारों की खरीद में कोई सरकारी पैसा खर्च नहीं होगा। इसमें कहा गया है कि ऐसा महसूस किया जाता है कि ये आठ अखबार ग्रामीण इलाकों में भाषा के प्रसार के साथ विकास तथा स्वतंत्र विचार में महत्वपूर्ण योगदान देंगे। माकपा के मुखपत्र ‘गणशक्ति’ पर भी प्रतिबंध लगाया गया है। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि यह आदेश सेंशरशिप से भी खतरनाक है और इसमें ‘फासीवाद’ का रंग है। कांग्रेस विधायक असित मित्रा ने कहा कि सरकार का फैसला लोकतांत्रिक संस्थाओं के मूल को नुकसान पहुंचाएगा और यह ‘अलोकतांत्रिक निर्णय’ है।
(एजेंसी)
First Published: Thursday, March 29, 2012, 11:52