Last Updated: Wednesday, May 22, 2013, 18:18
मुम्बई : बेरोजगार व्यक्ति को राहत प्रदान करने से इंकार करते हुए बम्बई हाईकोर्ट ने आज कहा कि एक पति को अपनी पत्नी और बच्चे की देखरेख के लिए काम करके कमाना चाहिए और वह इस आधार पर इससे बच नहीं सकता कि उसके पास नौकरी नहीं है।
हाईकोर्ट की नागपुर पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम.एल. तहलियानी ने कहा, ‘प्रतिवादी (पति) की यह दलील कि वह भुगतान करने में समर्थ नहीं है, स्वीकार करने योग्य नहीं है।’ अदालत शशि की ओर से दायर उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उसने अपने और अपनी सात माह की बच्ची नीता के लिए गुजारा भत्ता दिलाने का अनुरोध किया था। शशि ने शुरू में अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 (पत्नियों, बच्चों और अभिभावकों की देखरेख का आदेश) के तहत कुटुंब अदालत से सम्पर्क किया था।
कुटुंब अदालत के न्यायाधीश ने सितंबर 2012 में शशि की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए पति महेश को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ते के रूप में प्रतिमाह 1500 रुपए भुगतान करने का निर्देश दिया था। कुटुंब अदालत के न्यायाधीश ने हालांकि उस समय दो महीने की बच्ची नीता के लिए गुजरा भत्ता देने का आदेश देने से इंकार कर दिया था। अदालत ने कहा, ‘जहां तक नाबालिग बच्ची का प्रश्न है, वह महज दो महीने की है। इस पर कोई अतिरिक्त खर्च नहीं आता है। वह अपने बच्चे की देखरेख 1500 रुपये में कर सकती है।’ इस आदेश से व्यथित शशि ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि उसकी बच्ची के देखरेख पर आने वाला खर्च उससे अधिक है।
वहीं, महेश के वकील वर्षा ढोबले ने दलील दी कि वह 1500 रुपये प्रतिमाह का भुगतान करने की स्थिति में भी नहीं हैं क्योंकि वह बेरोजगार हैं। इस दलील को अस्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति तहिलीयानी ने कहा, ‘अगर प्रतिवादी (पति) काम नहीं करता और कमाता नहीं है तो यह याचिकाकर्ता (पत्नी और बच्ची) की गलती नहीं हो सकती। प्रतिवादी को यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि उसे अपनी पत्नी और बच्चे की देखरेख करनी है।’
अदालत ने पति महेश को अपनी शशि के लिए प्रतिमाह 1500 रुपये और बच्ची की देखरेख के लिए अतिरिक्त 1000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने पति को अगस्त 2012 से बकाया राशि का भुगतान करने का निर्देश भी दिया। (एजेंसी)
First Published: Wednesday, May 22, 2013, 18:18