शिक्षा अधिकार कानून नर्सरी दाखिले पर लागू नहीं: हाईकोर्ट

शिक्षा अधिकार कानून नर्सरी दाखिले पर लागू नहीं: हाईकोर्ट

शिक्षा अधिकार कानून नर्सरी दाखिले पर लागू नहीं: हाईकोर्टनई दिल्ली : अपने एक ऐतिहासिक फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज व्यवस्था दी कि शिक्षा का अधिकार कानून एवं तत्पश्चात जारी सरकारी अधिसूचनाएं गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में नर्सरी में दाखिले पर लागू नहीं होतीं।

राष्ट्रीय राजधानी में नर्सरी प्रवेश प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करने वाले इस फैसले में हालांकि स्पष्ट किया गया है कि आरटीई कानून नर्सरी समेत प्रारंभिक कक्षाओं में दाखिले में कमजोर तबकों के बच्चों के आरक्षण से जुड़ी चीजें देखेगा।

मुख्य न्यायाधीश डी मुरुगसेन और न्यायमूर्ति वी के जैन की पीठ ने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 21-ए (शिक्षा का अधिकार) के प्रावधानों तथा बच्चो को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार काननू की योजना के मद्देनजर इस निष्कर्ष से बचा नहीं जा सकता कि जहां तक निजी गैर सहायता प्राप्त विद्यालयों के बारे में शिक्षा का अधिकार कानून का संबंध है तो कक्षा में 25 फीसदी तक सीटे कमजोर तबकों के बच्चों के दाखिले के लिये सुरक्षित रखने के अलावा उसके प्रावधान (कानून के प्रावधान) ऐसे विद्यालयों में (स्कूल पूर्व एवं प्रारंभिक) कक्षाओं में दाखिले पर लागू नहीं होंगे।’’ गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सोशल ज्यूरिस्ट और दिल्ली बाल अधिकार रक्षा आयोग की जनहित याचिकाओं का निबटारा करते हुये न्यायालय ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय और शिक्षा निदेशालय की अधिसूचनाएं रद्द करने से इनकार कर दिया और कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून की तरह ही वे भी नर्सरी दाखिले पर लागू नहीं होती हैं।

तैंतीस पृष्ठ के अपने फैसले में अदालत ने केंद्र सरकार की यह दलील मंजूर कर ली कि बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीआई कानून) 6 साल से 14 साल की आयुवर्ग के बच्चों पर लागू है और राज्य सरकार नर्सरी में प्रवेश के बारे में नीतियां बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।

हालांकि पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि नर्सरी शिक्षा को भी शामिल करने के लिए वह कानून में संशोधन करने पर विचार करे। न्यायालय ने कहा कि विद्यालयों को अध्ययन की दुकानें चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती क्योंकि यह बच्चों को समान अवसर प्रदान करने में घातक होगा। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि अगर नर्सरी प्रवेश के विषय को इस कानून में शामिल नहीं किया जाता तो यह कानून को निर्थक बना देगा।

गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) सोशल ज्यूरिस्ट और दिल्ली बाल अधिकार रक्षा आयोग ने जनहित याचिकाएं दाखिल कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय और दिल्ली सरकार की दो अधिसूचनाओं को चुनौती दी थी।

एनजीओ का कहना था कि मंत्रालय ने 23 नवंबर, 2010 को आरटीई कानून के तहत दिशानिर्देश जारी किये थे जिसमें स्कूलों को अपने प्रवेश मानक बनाने की अनुमति दी गयी थी। संगठन के अनुसार दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय ने भी बाद में इसी तरह के दिशानिर्देश जारी किये।

एनजीओ ने याचिका में आरोप लगाया था कि अधिसूचनाओं ने आरटीई कानून को निर्थक कर दिया क्योंकि गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को नर्सरी प्रवेश के लिए अपने खुद के मानक तय करने की अनुमति दी गयी।

याचिका में आरोप लगाया था कि अधिसूचनाओं में सभी गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को बच्चों के वर्गीकरण के आधार पर अपने खुद के नर्सरी प्रवेश मानक बनाने की पूरी तरह स्वतंत्रता दी गयी है।

संगठन ने कहा कि लेकिन आरटीई कानून में प्रवेश में बच्चों के वर्गीकरण पर विशेष रूप से पाबंदी है। संगठन का कहना है कि कुछ स्कूल अब भी धर्म, पूर्व छात्र या भाई.बहन के मानकों के आधार पर प्रवेश में तरजीह देते हैं।

हालांकि निजी स्कूलों के एक संघ ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि निजी स्कूलों को प्रवेश प्रक्रिया के संबंध में आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। (एजेंसी)

First Published: Tuesday, February 19, 2013, 18:50

comments powered by Disqus