गायकों के गले की परख रखते थे एसडी बर्मन

गायकों के गले की परख रखते थे एसडी बर्मन

गायकों के गले की परख रखते थे एसडी बर्मननई दिल्ली: 31 अक्टूबर को जानेमाने संगीतकार एसडी बर्मन की पुण्यतिथि है। संगीत जगत के रत्नों में से एक सचिन देव बर्मन सुबह नियमित सैर से लौटने के बाद उस गायक को फोन करते थे जिसका गीत उन्हें रिकॉर्ड करना होता था। फोन करने का उद्देश्य गायक की आवाज सुन कर उसके गले की परख करना होता था। अगर उन्हें लगता था कि गायक सुर नहीं पकड़ पा रहा है तो वह फोन पर ही उस दिन की रिकॉर्डिंग स्थगित करने की सूचना दे देते थे।

सचिन देव बर्मन पर ‘सचिन के साथ सरगम’ नामक किताब लिख चुकी आयशा जैदी ने कहा ‘वह फोन पर ही समझ जाते थे कि गायक ने रिहर्सल कैसी की है और उनके मानकों पर वह खरा उतरेगा या नहीं। कमी महसूस होने पर बर्मन उसे जाहिर भी कर देते थे। उनकी यह साफगोई कुछ कलाकारों को अच्छी नहीं लगती थी।’

उन्होंने बताया रिकॉर्डिंग के दौरान बर्मन न केवल गायकों के सुरों पर पकड़ बनाए रखते थे बल्कि वाद्य यंत्रों के सुरों में भी कोई चूक वह पसंद नहीं करते थे। एक बार रिकॉर्डिंग के दौरान एक अतिरिक्त वायलिन वादक वाद्ययंत्र बजा रहा था। बर्मन की पारखी नजरों से पकड़ लिया और उन्होंने सवाल भी किया। उन्हें बताया गया कि वह व्यक्ति उनके संगीत दल का हिस्सा है और उसे भुगतान किया जाता है। तब बर्मन ने कहा ‘उसे भुगतान करें और जाने दें। इस गीत में मुझे एक ही वायलिन की धुन चाहिए।’

जाल फिल्म के गीत ‘ये रात ये चांदनी’ की धुन सुन कर साहिर लुधियानवी हंस पड़े थे। जब बर्मन ने कहा कि वह यह गीत हेमंत कुमार से गवाएंगे तो साहिर नाराज हो गए। लेकिन बर्मन अपनी बात पर अड़े रहे। इस गीत की लोकप्रियता आज भी कम नहीं हुई है। बर्मन का आखिरी गीत था फिल्म मिली का ‘बड़ी सूनी सूनी है’ जिसकी रिकॉर्डिंग उन्होंने अस्पताल के बिस्तर में पड़े हुए की थी। रिकॉर्डिंग के दो दिन बाद ही वह कोमा में चले गए। लंबे समय तक कोमा में रहने के बाद उनका निधन हो गया।

त्रिपुरा के राजपरिवार से जुड़े बर्मन ने शुरू में लोक गायक के तौर पर खासी ख्याति अर्जित की थी। वर्ष 1941 में मुंबई आने के बाद फिल्म ‘यहूदी की लड़की’ के लिए उन्हें अभिनय और गायन दोनों का काम मिला। लेकिन आखिरी समय पर उनकी जगह पहाड़ी सान्याल को ले लिया गया।

बर्मन मानते थे कि गाने के लिए गायक का चयन उस गाने के मूड के आधार पर किया जाना चाहिए तब ही गाने में जान आती है। यही वजह थी कि उन्होंने एक ही फिल्म में, एक ही कलाकार के लिए एक से अधिक गायकों की आवाज लेना शुरू किया। फिल्म ‘अभिमान’ में अमिताभ बच्चन के लिए किशोर कुमार, मोहम्मद रफी और मुकेश ने गीत गाए थे और दर्शक इस बदलाव को पकड़ नहीं पाते थे। यही प्रयोग उन्होंने ‘मंजिल’ में देवानंद के लिए किया और रफी, किशोर तथा मन्ना डे से गीत गवाए। एक अक्तूबर 1906 को जन्मे बर्मन ने 31 अक्तूबर 1975 में अंतिम सांस ली।

संगीत की सरगम को अपनी सांसों में बसाए रखने वाला यह कलाकार मनमौजी था। आयशा ने कहा ‘वह अक्सर छुट्टी के दिन मछली पकड़ने के लिए जाते थे और पूरा दिन मछली पकड़ते थे। उन्हें पेंटिंग भी पसंद थी और रंगों से वह कैनवस पर हाथ जरूरत आजमाते थे।’ (एजेंसी)

First Published: Wednesday, October 31, 2012, 14:50

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