घिसीपिटी कहानी और फूहड़ता का पिटारा है ‘ग्रैंड मस्ती’| ‘Grand Masti’

घिसीपिटी कहानी और फूहड़ता का पिटारा है ‘ग्रैंड मस्ती’

घिसीपिटी कहानी और फूहड़ता का पिटारा है ‘ग्रैंड मस्ती’ज़ी मीडिया ब्यूरो

नई दिल्ली : फिल्मकार इंद्र कुमार की फिल्म ‘ग्रैंड मस्ती’ शुक्रवार को रुपहले पर्दे पर अवतरित हुई। यह फिल्म 2004 में आई ‘मस्ती’ की सीक्वल है। ‘ग्रैंड मस्ती’ की कहानी भी वही है जो ‘मस्ती’ की थी। ‘सेक्स कॉमेडी’ की चासनी में तैयार की गई फिल्म कहीं से नएपन का अहसास नहीं कराती। फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसकी प्रशंसा की जा सके। घिसी-पिटी कहानी, औसत एवं अश्लील संवाद फिल्म को उबाऊ बनाते हैं।

दुनिया में महिला अस्मिता को लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, वहीं यह फिल्म औरत को केवल एक प्रोडक्ट के रूप में पेश करती है। फिल्म में महिलाओं के कामुक अंगों को कैमरे के अलग-अलग एंगल से उभारा गया है। कुछ संवाद तो ऐसे हैं जिन्हें सुनकर हैरानी होती है।

फिल्म की कहानी भी ‘मस्ती’ के ट्रैक पर है। फिल्म के किरदार अमर (रितेश), प्रेम (आफताब) और मीत (विवेक ओबेरॉय) की शादी-शुदा हैं लेकिन ये तीनों अपनी पत्नियों से ऊब चुके हैं। फिल्म में तोहमत पत्नियों पर डाली गई है कि वह अपने पतियों को रिझा नहीं पाती। इस कमी को पूरा करने के लिए अमर, प्रेम और मीत तीन लड़कियों जिनका नाम मेरी, रोज और मारलो है, आकर्षित होते हैं।

ब्रूना अब्दुल्ला, कायनात अरोड़ा और एम. जकारिया ने लुभाने वाली महिलाओं की भूमिका की है जबकि करिश्मा तन्ना, मंजरी फणनिस एवं सोनाली कुलकर्णी गृहणियां बनी हैं। अभिनय के लिहाज से रितेश, आफताब और विवेक ने ठीक-ठाक अभिनय किया है। इनके बीच कुछ एक जगह संवाद की अच्छी टाइमिंग भी बन पड़ी है। लेकिन फिल्म के संवाद इतने उबाऊ हैं कि फिल्म कहीं से बांध नहीं पाती।

सेक्स कॉमेडी को आधार बनाकर बनाई गई यह फिल्म निराश करती है। कुल मिलाकर यही कहना है कि यह फिल्म औरतों की एक खराब तस्वीर पेश करती है। आज के समय में इस तरह की फिल्में समाज के लिए अहितकर हैं।

First Published: Friday, September 13, 2013, 23:09

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