जीवन में जो सक्रिय सत्ता होती है, जीवन को बदलने का जो सक्रिय आंदोलन होता है, जीवन को चलाने और निर्मित करने की जो व्यवस्था होती है, उस सबका नाम ही राजनीति है और कुछ इसी तरह की राजनीति को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जीते हैं। किसी जमाने में अपने बड़े भाई के साथ चाय की दुकान चलाने वाले नरेन्द्र मोदी का जन्म दामोदरदास मूलचन्द मोदी व उनकी पत्नी हीराबेन मोदी के बेहद साधारण परिवार में उत्तरी गुजरात के मेहसाणा जिले के गांव वड़नगर में 17 सितंबर, 1950 को हुआ था। अपने माता-पिता की कुल छह सन्तानों में तीसरे नरेंद्र दामोदर दास मोदी खानपान से विशुद्ध शाकाहारी हैं। आजीवन शादी न करने का व्रत लेने वाले नरेंद्र मोदी ने अपना पूरा जीवन समाज और देश को समर्पित कर रखा है।
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्हॉने एक किशोर स्वयंसेवक के रूप में रेलवे स्टेशनों पर सैनिकों की खूब आवभगत की। युवावस्था में ही वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की भ्रष्टाचार विरोधी अभियान में सक्रिय भूमिका निभाई और तत्पश्चात वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने। बाद में उन्हें संगठन की दृष्टि से भारतीय जनता पार्टी में संघ के प्रतिनिधि के रूप में भेजा गया। वड़नगर से स्कूली शिक्षा लेने के बाद गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। नरेन्द्र जब विश्वविद्यालय के छात्र थे तभी से वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित रूप से जाने लगे थे। इस प्रकार उनका जीवन संघ के एक निष्ठावान प्रचारक के रूप में शुरू हुआ। गुजरात में शंकर सिंह वघेला का जनाधार मजबूत बनाने में नरेन्द्र मोदी की रणनीति को आज भी सराहा जाता है।
अप्रैल 1990 में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लाई और गुजरात में 1995 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान दो राष्ट्रीय घटनाएं इस देश में घटीं। पहली घटना थी सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक की रथ यात्रा जिसमें आडवाणी जी के प्रमुख सारथी की भूमिका में नरेन्द्र मोदी का मुख्य सहयोग रहा। इसी प्रकार की दूसरी रथ यात्रा कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इन दोनों यात्राओं ने मोदी का राजनीतिक कद काफी ऊंचा कर दिया जिससे चिढ़कर शंकर सिंह वघेला ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। तब केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमन्त्री बनाया गया और नरेन्द्र मोदी को दिल्ली बुलाकर भाजपा संगठन केन्द्रीय मन्त्री का दायित्व सौंपा गया।
1995 में राष्ट्रीय मन्त्री के नाते उन्हें पांच प्रमुख राज्यों में पार्टी संगठन का काम दिया गया जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1998 में उन्हें पदोन्नत कर राष्ट्रीय महामन्त्री (संगठन) का उत्तरदायित्व सौंपा गया। इस पद पर वे अक्तूबर 2001 तक काम करते रहे। भाजपा ने अक्तूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मुख्यमन्त्री पद की कमान नरेन्द्र मोदी को सौंप दी। नरेन्द्र मोदी अपनी विशिष्ट जीवन शैली के लिए राजनीतिक हलकों में जाने जाते हैं। उनके व्यक्तिगत स्टाफ में केवल तीन ही लोग रहते हैं। कोई भारी भरकम अमला नहीं होता। नरेंद्र मोदी एक लोकप्रिय वक्ता हैं जिन्हें सुनने के लिए बहुत भारी संख्या में श्रोता आज भी पहुंचते हैं। धोती कुर्ता और सदरी के अतिरिक्त वे कभी कभार सूट भी पहन लेते हैं। गुजराती उनकी मातृभाषा है और इसके अतिरिक्त वे हिन्दी में ही बोलते हैं। अब तो उन्होंने अंग्रेजी में भी धाराप्रवाह बोलने की कला सीख ली है।
गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी ने पार्टी और अपने राज्य में बहुत लोकप्रियता हासिल कर ली। उन्हें एक प्रगतिशील नेता के रूप में पहचान भी मिली। जिस समय नरेंद्र मोदी को गुजरात का प्रभार सौंपा गया था, उस समय गुजरात आर्थिक और सामाजिक दोनों ही क्षेत्र में बहुत पिछड़ा हुआ था। नरेंद्र मोदी के प्रयासों से गुजरात ने उनके पहले कार्यकाल के दौरान ही सकल घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी दर्ज की जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। गुजरात के एकीकृत विकास के लिए नरेंद्र मोदी ने कई योजनाएं लागू की जिसमें पंचामृत योजना सबसे प्रमुख है।
जल संसाधनों का एक ग्रिड बनाने के लिए नरेंद्र मोदी ने `सुजलाम सुफलाम` नामक योजना का भी संचालन किया जो जल संरक्षण के क्षेत्र में बहुत प्रभावी सिद्ध हुई है। कृषि महोत्सव, बेटी बचाओ योजना, ज्योतिग्राम योजना, कर्मयोगी अभियान, चिरंजीवी योजना जैसी विभिन्न योजनाओं को भी नरेंद्र मोदी ने लागू किया। 2009 में एफडीआई पत्रिका ने सभी एशियाई देशों में से नरेंद्र मोदी को एफडीआई पर्सनैलिटी का खिताब प्रदान किया। वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल समिट के दौरान अनिल अंबानी ने नरेंद्र मोदी को भारत के अगले नेता के रूप में संबोधित किया। गुजरात में आए भूकंप में राहत कार्य और आपदा प्रबंधन के सफल प्रयासों के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा नरेंद्र मोदी को योग्यता पत्र प्रदान किया गया।
नरेंद्र मोदी पर गुजरात दंगों में शामिल होने का आरोप है। जब तब उन्हें हिंदू-मुस्लिमों की आपसी भावनाओं को भड़काने और दंगों में प्रभावी कदम ना उठाने जैसे कई आरोपों का सामना करना पड़ता है। 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात वापस लौट कर आ रहे हिन्दू तीर्थयात्रियों को गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में मुस्लिमों द्वारा आग लगाकर जिन्दा जला दिया गया। इस हादसे में 59 स्वयंसेवक भी मारे गये। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। मरने वाले लोगों में अधिकांश संख्या मुस्लिमों की थी। इसके लिए न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया था। कांग्रेस सहित अनेक विपक्षी दलों ने नरेन्द्र मोदी के इस्तीफे की मांग की। मोदी ने गुजरात की 10वीं विधान सभा भंग करने की संस्तुति करते हुए राज्यपाल को अपना त्यागपत्र सौंप दिया। राज्य में दोबारा चुनाव हुए जिसमें भाजपा ने मोदी के नेतृत्व में विधान सभा की कुल 182 सीटों में से 127 सीटों पर जीत हासिल की। 2007 में सोनिया के मौत के सौदागर वाले बयान को गुजरात की अस्मिता का सवाल बनाकर नरेंद्र मोदी ने वोटों की अच्छी फसल काटी और 49 प्रतिशत वोटों के साथ 117 सीटों पर जीत दर्ज कर एक बार फिर गुजरात में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई।
अप्रैल 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने विशेष जांच दल भेजकर यह जानना चाहा कि कहीं गुजरात के दंगों में नरेन्द्र मोदी की साजिश तो नहीं। यह विशेष जांच दल दंगे में मारे गए कांग्रेसी सांसद ऐहसान ज़ाफ़री की विधवा जकिया जाफरी की शिकायत पर भेजा गया था। दिसम्बर 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी की रिपोर्ट पर यह फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है। आज नरेंद्र मोदी गुजरात में अपनी सत्ता का हैट्रिक बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं। दिसंबर-2012 में गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं।
इस बार के गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद के लिए अपने किसी नेता को आगे नहीं किया है लेकिन प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन मोढवाडिया राज्य में कांग्रेस का बड़ा चेहरा माने जाते हैं।
अर्जुन मोढवाडिया गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति (जीपीसीसी) के 27वें अध्यक्ष हैं। मोढवाडिया को इस पद पर मार्च 2011 में नियुक्त किया गया। मोढवाडिया वर्ष 2004 में गुजरात विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका भी निभा चुके हैं।
मोढवाडिया का जन्म 17 फरवरी 1957 को पोरबंदर के समीप स्थित गांव मोढवाडिया में हुआ।
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के पाठशाला में हुई और मोरवी स्थित लुखधीरजी इंजीनियरिंग कॉलेज से इन्होंने इंजीनियरिंग में स्नातक किया। मोढवाडिया 1982 में सौराष्ट्र विश्वविद्यालय के सीनेट के सदस्य बनाए गए और 1988 में इन्हें विश्वविद्यालय के कार्यकारी परिषद का सदस्य बनाया गया। इसके अलावा मोढवाडिया ने गुजरात मैरीटाइम बोर्ड के लिए बतौर असिस्टेंट इंजीनियर 10 वर्षों तक कार्य किया।
मोढवाडिया चाहते तो वह मैरीटाइम बोर्ड से जुड़ा रहकर अपना शानदार जीवन बीताते लेकिन इन्होंने अपने जीवन के लिए कुछ और भूमिका चुन रखी थी। वर्ष 1993 में इन्होंने मैरीटाइम बोर्ड की नौकरी छोड़ दी और स्वयं को पूरी तरह सार्वजनिक जीवन के लिए समर्पित कर दिया।
मोढवाडिया औपचारिक रूप से 1997 में इंडियन नेशनल कांग्रेस (आईएनसी) के सदस्य बने। अपने समर्पित प्रयासों और असाधारण जन सेवा के चलते वह 2002 में पोरबंदर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए। इस दौरान मोढवाडिया ने अपनी भाषण की कला और राजनीतिक दूरदर्शिता से लोगों को प्रभावित किया। इस योग्यता को देखते हुए 2004 एवं 2007 के दौरान इन्हें विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया गया। नेता प्रतिपक्ष के रूप में इनके द्वारा किए गए कार्यों और नेतृत्व को लोगों ने काफी सराहा। यही नहीं लोगों ने 2007 के चुनावों में इन्हें दोबारा चुनकर विधानसभा भेजा।
लोगों के प्रति गहरा लगाव रखने वाले मोढवाडिया ने अपने जीवन को जनता के हित के लिए समर्पित किया है। वह शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सार्वजनिक क्षेत्र में काफी सक्रिय रहे हैं। मोढवाडिया डॉक्टर विराम गोढानिया महिला आर्टस, कामर्स, होम साइंस एंड कम्प्यूटर साइंस कॉलेज और मालदेवजी ओदेद्रा स्मारक ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी एवं संस्थापक हैं। इसके अलावा वह कई शैक्षिक संस्थाओं के अध्यक्ष हैं।
वर्ष 2002 में ही मोढवाडिया (संसदीय एवं विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र) गुजरात के लिए बनी ‘डिलिमिटेशन कमीशन आफ इंडिया’ के सदस्य नियुक्त हुए। वह 2008-09 से मीडिया समिति के अध्यक्ष एवं जीपीसीसी के मुख्य प्रवक्ता हैं।
केशुभाई पटेल के बिना गुजरात की राजनीति पर चर्चा नहीं की जा सकती है। 84 वर्षीय इस लेहुआ पटेल नेता ने इस विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को सत्ता से बेदखल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। शायद वे अपने जीवन का आखिरी संग्राम भी लड़ रहे हों। जीवन के इस पड़ाव में जहां लोग संन्यास की बात करते हैं वही केशुभाई ने कमर कसकर पूरे प्रदेश में परिवर्तन यात्रा कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस विधानसभा में मोदी को हटाकर एक बार फिर प्रदेश की सत्ता पर काबिज होंगे।
भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता केशुभाई पटेल ने हाल ही में भाजपा छोड़कर गुजरात परिवर्तन पार्टी का गठन किया। वे लंबे समय से प्रदेश नेतृत्व से असंतुष्ट चल रहे थे। गुजरात के पहले भाजपा मुख्यमंत्री केशुभाई को भाजपा से रहते दुख इस बात की थी कि नरेंद्र मोदी ने उन्हें वो सम्मान नहीं दिया जिस पर उनका हक था और उन्हें कदम-कदम पर अपमानित किया।
केशुभाई पटेल का जन्म 24 जुलाई 1928 को हुआ था। उन्होंने राजनीतिज्ञ के रुप में देश की सेवा की। वे मार्च 1995 से अक्टूबर 1995 और मार्च 1998 से अक्टूबर 2001 तक भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। वे चार अगस्त 2012 को भाजपा छोड़ने तक प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सीनियर नेता थे। उन्होंने भाजपा छोड़ने के बाद ‘ गुजरात परिवर्तन पार्टी’ नाम की नई पार्टी बनाई। वे अपनी इस पार्टी से गुजरात विधानसभा 2012 चुनाव में नरेंद्र मोदी को चुनौती देंगे। वे पटेल समुदाय से आते हैं जो गुजरात की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 2001 में भाजपा को उनके दो प्रमुख क्षेत्र में उप चुनाव में हार का समाना करना पड़ा। फलस्वरुप नरेंद्र मोदी का गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप पदार्पण हुआ। तब से वे भाजपा और मोदी नाराज चल रहे थे, तब से ही उनका विद्रोह जारी था।
2007 के विधानसभा चुनाव में, केशुभाई ने अपने पटेल समुदाय से प्रदेश में बदलाव के लिए वोट करने की अपील की। उन्होंने अपने समुदाय से कांग्रेस पार्टी को वोट करने को कहा। परन्तु उनकी अपील को ठुकराते हुए लोगों के नरेंद्र मोदी को वोट किया। यहां तक कि पटेल समुदाय की बहुलता वाले इलाके सौराष्ट्र में मोदी को जबरदस्त सफलता मिली। केशुभाई को अपने ही वोटरों के बीच उन्हें करारी मात खानी पड़ी। भाजपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा। 21 सितंबर 2006 को उनके साथ दुखद घटना घटी। उनके अहमदाबाद स्थित घर के व्यायामशाला में शॉर्ट सर्किट से आग लगने के कारण उनकी पत्नी लीला बेन पटेल की घर में ही जलकर मौत हो गई।
भाजपा में रहते हुए केशुभाई पटेल ना सिर्फ प्रदेश की राजनीति में सक्रिय थे बल्कि केंद्र की राजनीति में भी अहम भूमिका निभाते रहे। वे राज्यसभा सदस्य भी रहे हैं।