प्रेम कुमार धूमल
हिमाचल प्रदेश में भाजपा को दोबारा सत्ता में पहुंचाने के मकसद से चुनावी समर में कूदे प्रो. प्रेम कुमार धूमल इस प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सूबे के हमीरपुर जिले में एक राजपूत परिवार में 10 अप्रैल, 1944 को इनका जन्म हुआ। धूमल का राजनीतिक जीवन एक लंबी यात्रा के समान रहा है।
राजनीतिक जीवन में आने से पहले धूमल ने एलआईसी में सहायक के तौर पर कार्य किया और बाद में विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षण कार्य से जुड़े। कानून की डिग्री और अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर करने वाले धूमल ने भारतीय जनता पार्टी में एक कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुए और उसके बाद पार्टी और इसकी युवा इकाई में कई पदों पर रहे। वह भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) में 1980-82 तक राज्य सचिव रहे। फिर 1982-85 तक भाजयुमो में उप प्रधान रहे और इसके बाद पार्टी की मुख्य इकाई में शामिल हुए। भाजपा में वह 1985-93 के दौरान महासचिव रहे और 1993 में वह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बने।
68 वर्षीय धूमल हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए तीन बार (1989, 1991 और 2007) चयनित हुए। वह कई संसदीय समिति के सदस्य भी रहे।
धूमल 1998 में हुए हिमाचल विधानसभा चुनाव में पहली बार बमसन से चयनित हुए और पार्टी के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री बने। वह 2003 में उप चुनाव में दोबारा जीते, लेकिन भाजपा सता में नहीं आ सकी।
साल 2007 में धूमल ने हमीरपुर से लोकसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की लेकिन दिसंबर 2007 में विधानसभा चुनाव में भाजपा की फिर वापसी हुई और वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने।
सीएम के तौर पर पहले शासनकाल में ऊर्जा क्षेत्र में किए गए कार्यों को लेकर धूमल की काफी प्रशंसा हुई। सूबे में सड़कों की हालत में सुधार आया और शिक्षा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण बदलाव आए।
धूमल के मौजूदा शासनकाल में कई नई स्कूलें और अन्य शिक्षण संस्थानें स्थापित हुईं। जिसमें हिमाचल प्रदेश टेक्निलक यूनिवर्सिटी और फूड क्राफ्ट इंस्टीट्यूट प्रमुख हैं। धूमल को ऐसे नेता के तौर पर जाता है, जिन्होंने रेल और सड़क यातायात, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास में खासा ध्यान केंद्रित किया। राज्य स्तर पर भाजपा का संगठन मजबूत समझा जाता है और मतदाताओं के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने के लिए पार्टी स्तर पर विशेष सुधार किए गए हैं। जिनके बदौलत धूमल के लिए मौजूदा चुनाव में मदद मिलने के आसार हैं।
धूमल इस बार हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। धूमल ने इस बार हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र से अपना नामांकन भरा है। हलफनामे में धूमल और उनकी पत्नी के पास 1.5 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति होने की जानकारी दी गई है। पहले वह बमसन सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। इस बार उनके खिलाफ कांग्रेस के नरेंद्र ठाकुर मैदान में खड़े हैं। भाजपा ने मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर प्रेम कुमार धूमल के नाम की घोषणा पहले ही कर रखी है।
वीरभद्र सिंह
वीरभद्र सिंह कांग्रेस के यूं तो दिग्गज नेता है लेकिन इन दिनों उनके सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि हिमाचल की सियासत में कांग्रेस की बात करें तो वीरभद्र सिंह खुद को शीर्ष पर ला खड़ा करते हैं। लेकिन ताबड़तोड़ भ्रष्टाचार के मामलों ने उनकी सियासी नैया डगमगा दी है।
26 जून को भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह अपना इस्तीफा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपा था। वे यूपीए सरकार में लघु उद्योग मंत्री थे। हिमाचल प्रदेश की एक अदालत में उनके खिलाफ 23 साल पुराने मामले में सोमवार को भ्रष्टाचार से जुड़े आरोप तय किए गए थे। वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 28 मई, 2009 को इस्पात मंत्री बनाए गए थे।
अभी हाल ही में वीरभद्र सिंह पर एक और आरोप लगा जिससे उनकी साख धूमिल हुई है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस के लिए एक नई समस्या खड़ी हो गई है।
हाल ही में एक टीवी चैनल की रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि इस्पात इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने स्टील ऐंड कोल इंडस्ट्रीज़ के अधिकारियों को साल 2009-10 के दौरान को कुछ पेमेंट्स की थीं। चैनल ने यह आरोप इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के डॉक्युमेंट्स के हवाले से लगाए गए हैं। इन डॉक्युमेंट्स में अक्टूबर 2009 से अक्टूबर 2010 तक किसी वीबीएस को 2.28 करोड़ रुपये देने का जिक्र किया गया है। माना जा रहा है कि यह वीबीएस पूर्व इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह को दिया शॉर्ट नेम है।
लघु उद्योग मंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह के खिलाफ एक 23 साल पुराने मामले में आपराधिक षडयंत्र रचने और रिश्वतखोरी से संबंधित आरोप तय किए गए थे।
वीरभद्र सिंह 1983 से 1990 तक, 1993 से 1998तक और 2003 से 2007 तक हिमाचल प्रदेश राज्य के भी तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मंडी लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा सांसद वीरभद्र सिंह 15वीं लोकसभा में सबसे वरिष्ठ सांसद हैं. वे सात बार विधायक, पांच बार प्रदेश के मुख्यमंत्री और पांचवीं बार लोकसभा में बतौर सांसद हैं और पिछले आधे दशक में वे कोई चुनाव नहीं हारे। वरिष्ठता के हिसाब से उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली। 15वीं लोकसभा में वरिष्ठता के क्रम में हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का नाम सबसे ऊपर है क्योंकि वे 1962 से लेकर 2009 तक यानी पिछले 47 वर्षों में वे एक भी चुनाव नहीं हारे। इस दौरान उन्होंने लोकसभा के पांच चुनाव लड़े और सात विधानसभा चुनाव लड़े।
वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1972, 1980 और वर्तमान लोकसभा 2009 में लोकसभा सांसद हैं. इसके अलावा वे 1983, 1985, 1990, 1993, 1998 और 2003 तथा 2007 में विधायक रहे। इतना ही नहीं 1983,1985, 1993, 1998 और 2003 में उन्होंने बतौर मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। अपने 47 वर्षों के राजनैतिक सफ़र के दौरान उन्होंने 13 चुनाव लड़े और सभी जीते। वरिष्ठता के क्रम और हिमाचल प्रदेश के अकेले सांसद होने के कारण 22 मई को मनमोहन सिंह के नेतृत्व में बनने वाली केंद्र सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया था।
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