गुजरात अगले महीने विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है। राज्य के पहाड़ी और घने जंगलों वाले पूर्वी क्षेत्र में जनजाति मूल के लोगों की बहुलता है। इस क्षेत्र में जनजातियों के मत हासिल करने के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है।
गुजरात के जनजातीय हिस्से को पूर्वी पट्टी कहा जाता है। राज्य के 182 निर्वाचन क्षेत्रों में से 26 पूर्वी पट्टी में हैं। इस क्षेत्र में राज्य की कुल आबादी के 14 से 15 फीसदी (50 लाख) लोग रहते हैं जो जनजाति मूल के हैं। राज्य में 37 जनजातियां हैं, जिनमें सबसे अधिक संख्या भीलों की है जो वासावास और रथवास उपजातियों में विभक्त हैं। अन्य जनजातियां हैं ढोढिया, चौधरी, गामित और हालापति।
पिछले चुनाव में इस क्षेत्र के मत सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के बीच समान रूप से बंट गए थे। भाजपा ने फिर तीसरी बार सत्ता में आने की लिए अपनी ताकत झोंक दी है। विश्लेषकों का कहना है कि इस बार भी स्थिति पिछली बार से अलग रहने की संभावना नहीं है। सत्ताधारी भाजपा ने इस इलाके में पर्याप्त विकास के लिए काम नहीं किया और कांग्रेस सत्ताधारी दल की विफलता को भुनाने में सक्षम नहीं रही।
सूरत स्थित सामाजिक अध्ययन केंद्र (सीएसएस) से सम्बद्ध सत्यकाम जोशी ने कहा कि इस बार भी कांटे की टक्कर है। जोशी ने कहा कि गुजरात में जनजाति समुदाय के लोग नरेंद्र मोदी के दशकों के शासन से बहुत खुश नहीं है। असमानताएं काफी बढ़ गई हैं। लेकिन मतों का ध्रुवीकरण तय है। कांग्रेस के लिए भी अच्छे संकेत नहीं हैं। मैं इस क्षेत्र से भाजपा को 12 से 13 सीटें मिलने की भविष्यवाणी कर सकता हूं। बाकी इस पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस इस क्षेत्र में किस तरह के उम्मीदवार उतारती है।
उल्लेखनीय है कि राज्य में मतदान दो चरणों में होगा। पूर्वी पट्टी में भी दो चरणों में यानी 13 और 17 दिसम्बर को मतदान होगा। यह देखना रोचक होगा कि मतदाताओं का झुकाव संघ परिवार समर्थक उम्मीदवारों की ओर होता है या ईसाई मिशनरी समर्थकों की तरफा।
First Published: Thursday, November 22, 2012, 17:23
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