ऐसा माना जा रहा है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव देश की राजनीतिक दिशा तय करेंगे। सबकी नजरें गुजरात चुनाव पर टिकी हैं यहां के चुनाव परिणाम नरेंद्र मोदी के राजनीतिक भविष्य की राह तय करेंगे, तो दूसरी तरफ यूपीए सरकार के सुधारवादी कार्यक्रमों का लिटमस टेस्ट होना भी तय है।
दरकते यूपीए और एनडीए गठबंधन में आगे चलकर कौन कितना प्रभावी होगा, यह भी इस चुनाव से तय होगा। साथ ही गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा दलों के राजनीतिक धुव्रीकरण की तस्वीर भी साफ होगी।
कांग्रेस हिमाचल में सत्ता हथियाना चाहती है तो गुजरात में उसकी धमाकेदार वापसी की भी हसरत है। बीजेपी को यह बात अच्छी तरह मालूम है कि यदि इन दोनों राज्यों में वह खास नहीं कर सकी तो सरकार विरोधी लहर को रोक नहीं सकेगी, जिसका सीधा असर वर्ष 2013 में होने वाले विधानसभा चुनावों और 2014 के आम चुनाव पर पड़ने से रोका नहीं जा सकेगा।
बीजेपी के लिए भी इन राज्यों में राजनीतिक चुनौती कम नहीं है। मोदी जैसा कद्दावर मुख्यमंत्री होने के बावजूद एंटी इनकंबेंसी का माहौल जरूर है किंतु उनके विकास के मॉडल ने राजनीति को नई परिभाषा दी है। इस बात से तनिक भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि गुजरात में कांग्रेस के पास मोदी जैसा नेता नहीं है, जो उन्हें सीधे चुनौती दे सके।
गुजरात चुनाव परिणाम के राजनीतिक मायने हैं। मोदी की चुनावी सफलता से उनकी राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका तय होनी है। यदि वह इस बार भी कांग्रेस को गुजरात में हाशिए पर रखने में सफल होते हैं तो उनके सियासी महत्व को बढ़ने से रोका नहीं जा सकेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उनके पीछे और मजबूती से खड़ा हो सकता है। वर्ष 2014 में पार्टी उन्हें आगे कर चुनाव लड़ सकती है लेकिन राजग गठबंधन के लिए यह फैसला मुश्किलों से भरा होगा। गठबंधन में दरार पड़ने से रोका नहीं जा सकेगा।
भाजपा अपनी कार्यसमिति की बैठक में मोदी को ज्यादा तरजीह देने से बचती दिखी है। इतना ही नहीं, पार्टी संघ की छत्रछाया से बाहर निकलने की कोशिश कर रही है। ऐसे में वर्तमान राजनीतिक समीकरण के बीच संघ का जो सुझाव उसे फिट बैठता नहीं दिख रहा है, वह उसे खारिज करने का साहस जुटाती भी दिख रही है। इसकी कमान पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संभाल रखी है। कुल मिलाकर यूपीए और एनडीए गठबंधन जनता की कसौटी पर हैं। चुनाव के परिणाम दोनों ही गठबंधनों के राजनीतिक भविष्य को तय करेंगे। इन चुनाव परिणामों के बाद ही गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा दलों के नए राजनीतिक गठजोड़ की नई तस्वीर उभरकर सामने आने की उम्मीद है। इसीलिए इन दोनों राज्यों के चुनावों का काफी राजनीतिक महत्व है।
2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी की पीएम पद की उम्मीदवारी को मुद्दे को बीजेपी से राज्यसभा सासंद और देश के जानेमाने वकील राम जेठमलानी ने भी हवा दी है। बीजेपी अध्यक्ष गडकरी और आडवाणी मोदी को पार्टी का पीएम पद के लिए दावेदार भले ही नहीं माने लेकिन संघ भी दबी जुबान से मोदी का प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए समर्थन करता रहा है। बीजेपी में एक धड़ा ऐसा भी है कि 2014 के आम चुनावों के लिए मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने की मांग कर रहा है। यह बात भी गौरतलब है कि बीजेपी अभी तक पीएम कैंडिडेट के नाम पर डंवाडोल है जिसका खुलासा करने से वह फिलहाल बचना चाहती है। लेकिन यह भी सच है कि इस मसले पर मोदी को नाम को दरकिनाकर करना इतना आसान भी नहीं होगा।
First Published: Friday, November 2, 2012, 10:43
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