गुजरात में विकास का मुद्दा अहम होगा

गुजरात में विकास का मुद्दा अहम होगा चाहे वह विधानसभा चुनाव हो या फिर आम चुनाव। सत्ता पर काबिज पार्टी यह दावा ठोंकती है कि उसने पांच साल के दौरान खूब विकास कार्य किए हैं इसलिए उसे वोट मिले। दूसरी तरफ सत्ता में दोबारा वापसी के लिए कुलबुलाती विपक्षी पार्टी सत्ताधारी पार्टी के दावे को झुठलाती है और विकास के नए एजेंडों के साथ नया घोषणा पत्र जारी करती है जिसमें सत्ता में वापसी की दिशा में किये जानेवाले विकास कार्यों की लंबी फेहरिस्त होती है। यह सिलसिला चलता रहता है। विपक्ष हमेशा कहता है कि हमने विकास किया है इसलिए वोट हमें दो जबकि विपक्षी पार्टी विकास के दावे को झुठलाती है और विकास के लिए वोटरों से विकल्प के रुप में खुद को चुनने की मांक करती है।


गुजरात चुनाव में आर्थिक ग्रोथ यानी विकास ही मुख्य मुद्दा रहेगा। मौजूदा परिस्थितियों म
ें गुजरात के चुनाव नतीजे तय करेंगे कि आने वाले समय में राजनीतिक समीकरण क्या होंगे।

सबसे अहम बात है कि गुजरात के आर्थिक विकास को लेकर दो प्रमुख पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने हैं। दोनों यह दावा कर रही हैं कि राज्य के विकास में उनका योगदान ज्यादा है। राज्य के चुनाव से पहले जिस तरह से गुजरात में राजनीति का केंद्र बिंदु आर्थिक विकास बन गया है, उससे यह बात साफ हो गई है कि राजनीतिक पार्टियों को यह बात मालूम हो गई है कि विकास को छोड़कर अन्य बातों से वोटरों को लुभाया नहीं जा सकता है। इसका असर अन्य राज्यों के साथ लोकसभा चुनावों पर भी नजर आएगा।

गुजरात के चुनाव से पहले से राजनीतिक पार्टियां नौकरियां देने, गरीबों को मकान सस्ते ब्याज दरों पर देने और बुनियादी सुविधाएं बढ़ाने का दावा कर रही हैं। यानी अब वोटरों को लुभाने के लिए आर्थिक मुद्दों पर चिंतन करने और आम आदमी की आर्थिक उन्नति के दावे किए जा रहे हैं। यह राजनीति में बदलते ट्रेंड का सबूत है। कुछ साल पहले यह हालात नहीं थे। मगर गुजरात के विकास के आंकड़ों ने यह बात साबित कर दिया है कि लोग अब देश, प्रदेश के साथ अपना विकास चाहते हैं। उन्हें अब दूसरी बातों से बरगलाया नहीं जा सकता।

गुजरात में आर्थिक विकास के दावों पर मैदान जीतने की जुगत में लगी राजनीति पार्टियों को अपना उम्मीदवार संभलकर उतारना होगा। निश्चित तौर पर उम्मीदवारों का आकलन आम आदमी विकास के पैमाने पर करेगा। अब बड़े नाम से ज्यादा बड़े काम कराने वालों के नाम चलेंगे। ऐसे में कोई भी ऐसी पार्टी ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारने का रिस्क नहीं लेंगी, जिसका आर्थिक विकास का रिकॉर्ड ठीक नहीं हो।आर्थिक मुद्दों पर खुलकर राजनीति शुरू हो गई है और राजनीति में आर्थिक विकास का मुद्दा अहम बन गया है।


First Published: Friday, November 2, 2012, 10:49

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