चुनावी गणित पर प्रभाव डाल सकते हैं अन्य दल

चुनावी गणित पर प्रभाव डाल सकते हैं अन्य दलदिसंबर के अंत तक यह तय हो जाएगा कि गुजरात की सत्तां में किस राजनीतिक दल का कब्जा। होगा लेकिन इस विधानसभा चुनाव में कुछ ऐसे मुद्दे और समीकरण हैं जो खासा प्रभाव डाल सकते हैं। हालांकि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में नरेंद्र मोदी की सत्ताल को ज्यांदा चुनौती मिलती नहीं दिख रही है, फिर भी यह देखना दिलचस्पप होगा कि भ्रष्टारचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि मुद्दों से प्रभावित जनता जनार्दन का रुख क्या होता है।

विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के वोट बंटने का फायदा उन दूसरे दलों को होगा, जिनका रु
झान धर्मनिरपेक्षता और हिन्दुत्व की ओर है। आठ से अधिक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल गुजरात विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाने के लिए मैदान में हैं। इससे कांग्रेस और भाजपा के चुनाव प्रबंधक काफी सतर्क होकर रणनीति बनाने लगे क्योंकि अन्य दल उनका चुनावी गणित कुछ हद तक बिगाड़ सकते हैं।

चुनाव मैदान में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, जदयू, राकांपा, रामविलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी और वामदलों के होने से कांग्रेस के धर्मनिरपेक्ष वोटों को नुकसान हो सकता है। इनमें से कुछ दलों ने पिछली बार भी चुनाव लड़ा था।

राज्य में पहली बार भाजपा के लिए ऐसी स्थिति है जब उससे मिलतीजुलती विचारधारा वाली पार्टियां भी चुनाव लड़ेगी। इनमें एक गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) भी है जो बागी नेता केशुभाई पटेल की है। शिवसेना भी चुनाव में उतरेगी। वहीं, चुनावों पर एक बड़े कारक परिसीमन का भी असर पड़ेगा। राज्य की कुल 182 विधानसभा सीटों में से 60 से अधिक की सीमाएं परिसीमन से पुन: तय की गई हैं। परिसीमन नवीनतम जनगणना के आधार पर, प्रति विधानसभा सीट पर समान आबादी तथा अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए सीटों की पहचान के मद्देनजर किया गया। 2002 के परिसीमन आयोग की सिफारिशों को राष्ट्रपति ने वर्ष 2008 में मंजूरी दे दी थी।

दोनों ही मुख्य राजनीतिक दल इस बारे में सुनिश्चित नहीं हैं कि उन सीटों पर चुनावों के नतीजे क्या होंगे जिनका जनसांख्यिकी के आधार पर परिसीमन किया गया और वहां के मतदाताओं के ब्यौरे जाति तथा धर्म के आधार पर बदल चुके हैं। वर्ष 2007 के चुनावों में, 20 से अधिक सीटों पर हार जीत का फैसला 5,000 से भी कम वोटों से हुआ था। अगर सपा, लोजपा, जदयू जैसे दल खुद को सच्चा साबित करने के लिए धर्मनिरपेक्ष बताते हैं तो उन्हें ऐसा कुछ भी करने से बचना चाहिए जिससे धर्मनिरपेक्ष ताकतों को नुकसान पहुंच सकता है। हालांकि गुजरात के मतदाताओं ने हमेशा ही दो पार्टी व्यवस्था को पसंद किया है। भाजपा के प्रवक्ता जगदीश भावसर ने भी विश्वास व्यक्त किया कि उनकी पार्टी को जीपीपी और शिवसेना के कारण कोई समस्या नहीं होगी।

गुजरात में विधानसभा की 182 सीटों में से 60 की सीमाएं फिर से तय किए जाने की वजह से राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बड़े पैमाने पर प्रभावित होने की संभावना है। परिसीमन की इस प्रक्रिया से जातिगत और राजनीतिक समीकरणों में बदलाव आने का भी अंदेशा है।

परिसीमन आयोग की ओर से राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने के बाद से पहली दफा राज्य में विधानसभा चुनाव कराए जाने वाले हैं। परिसीमन के कारण सीटों की सीमा में हुए बदलाव के कारण विधायकों को अब नए सिरे से मतदाताओं तक अपनी पहुंच कायम करनी होगी। अनुसूचित जाति एवं अनुसचित जनजाति के लिए आरक्षित रही कई सीटों को अब सामान्य सीटों में तब्दील कर दिया गया है और ऐसी कई सीटें जो पहले सामान्य श्रेणी के तहत आती थीं आरक्षित श्रेणी में डाल दी गई हैं।

नवीनतम जनगणना के आधार पर परिसीमन की प्रक्रिया पूरी की गई, जिसका मकसद प्रति विधानसभा सीटों में आबादी एकसमान रखना और अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की पहचान करना है। गौर हो कि परिसीमन आयोग की ओर से साल 2002 में की गई सिफारिशें साल 2008 में राष्ट्रपति की ओर से स्वीकार की गई। कांग्रेस और भाजपा उन सीटों के चुनावी नतीजों के बारे में अभी ज्यारदा ठोस कयास नहीं लगा पा रहे हैं, जिनकी सीमाएं बदली गई हैं। पिछले चुनावों में विजयी एवं पराजित उम्मीदवारों को मिले मत का अंतर मामूली होने के कारण आगामी चुनावों में परिसीमन एक अहम भूमिका निभाएगा। बहरहाल, सभी राजनीतिक पार्टियां परिसीमन के बाद इस पहले विधानसभा चुनावों के लिए कमर कस चुकी है और इंतजार रहेगा परिणामों का।

First Published: Friday, November 2, 2012, 17:12

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