रामानुज सिंह
देश भर में महंगाई और भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस और यूपीए सरकार के खिलाफ करीब दो साल से कई बड़े-बड़े आंदोलन हुए। पिछले साल 16 अगस्त को अन्ना के जन लोकपाल आंदोलन ने पूरे देश में भूचाल ला दिया था। देश के हर कोने में जनता सड़कों पर उतर आई थी लेकिन चुनावी राजनीति में इसका कहीं भी कोई असर नहीं देखा गया। इसी परिदृश्य के बीच गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए। उम्मीदों पर खड़े उतरते हुए नरेंद्र मोदी ने गुजरात में जीत की हैट्रिक बनाई और हिमाचल प्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोपी वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देकर सत्ता हथिया ली। गुजरात में नरेंद्र मोदी की जीत तो समझ में आती है लेकिन अगर देश में महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में गुस्सा होता तो हिमाचल में कांग्रेस सत्ता में नहीं आती।
गुजरात व हिमाचल प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में आज मतगणना के परिणाम आए। गुजरात में भाजपा को115 सीटें मिलीं, जो 2007 में उसे मिली 117 सीटों से दो कम है। कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। वह पिछली बार की 59 सीटों की तुलना में इस बार 61 सीटों पर कब्जा करने में सफलता हासिल की। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने 68 सदस्यीय विधानसभा में 36 सीटें जीतकर सामान्य बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है। यहां भाजपा को 2007 में यहां 41 सीटें मिली थीं, जो अब 26 पर सिमट गई हैं। इस चुनाव नतीजे के आंकड़े पर गौर करें तो साफ जाहिर होता है कि आम लोगों को भ्रष्टाचार और महंगाई से कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर फर्क पड़ता तो कांग्रेस का सफाया हो जाता, गुजरात में कांग्रेस ने अपनी सीटें बरकरार रखीं तो हिमाचल में भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दी।
वीरभद्र पर इस्पात मंत्री रहते हुए साल 2009-2010 में इस्पात कंपनी से करीब सवा दो करोड़ रुपए रिश्वत लेने के आरोप लगे थे। इतना ही नहीं बीजेपी ने वीरभद्र पर आयकर रिटर्न में संपत्ति का गलत ब्यौरा देने और बीमा पॉलिसी के जरिए करोडों रुपए की हेराफेरी के आरोप भी लगाए थे। इससे पहले पैसों के लेन-देन की एक सीडी को लेकर वो विवादों में रह चुके हैं। उधर गुजरात में चुनाव के दौरान कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि मोदी ने अपने करीबियों को केजी बेसिन में गैस ब्लॉक की हिस्सेदारी दी, जिससे गुजरात को 20 हजार करोड़ का नुकसान हुआ। मोदी कैबिनेट में मछली पालन मंत्री रहे पुरुषोत्तम सोलंकी पर बिना नीलामी के तालाबों के ठेके देने का आरोप लगे। इतना ही नहीं कृषि मंत्री दिलीप संघानी पर भी करोड़ों की जमीन हड़पने के आरोप भी लगाए गए थे। इसके अलावा रसोई गैस सिलेंडर में सब्सिडी की कटौती और पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि और बढ़ती महंगाई भी इस चुनाव का एजेंडा नहीं बन पाया।
इन दो प्रदेशों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने केंद्र की सत्तारूढ़ यूपीए सरकार को जरूर राहत दी होगी। क्योंकि पिछले दो साल से टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, कोयला आवंटन घोटाले के चलते केंद्र सरकार की किरकिरी हो रही थी। कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी पार्टियों केंद्र की यूपीए सरकार पर जोरदार हमला कर रहे थे। लेकिन इन चुनाव नतीजों ने विपक्ष के सारे दावे खारिज कर दिये कि जनता भ्रष्टाचार और महंगाई से परेशान है। अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जो मुहिम छेड़ी उससे अब केंद्र सरकार को 2014 लोकसभा चुनाव में कोई घाटा नहीं होने वाला है। अन्ना हजारे के पूर्व सहयोगी अरविंद केजरीवाल ने भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कई नेताओं के पोल खोलते हुए आम आदमी पार्टी बना ली। अरविंद केजरीवाल ने यहां तक कहा कि 2014 के आम चुनाव में जनता कांग्रेस और भाजपा को सत्ता से बेदखल कर देगी। परन्तु जनता के सिरमोर बने केजरीवाल सवा अरब की आबादी वाले देश की जनता को समझने और सझाने में विफल रहे हैं।
First Published: Saturday, February 9, 2013, 20:53
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