Last Updated: Saturday, February 9, 2013, 21:02

रामानुज सिंह
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच एक बार फिर वाकयुद्ध छिड़ गया है। राज ठाकरे ने कहा, बिहारियों को महाराष्ट्र से खदेड़ देंगे तो इस पर नीतीश ने कहा कि ऐसी बंदर-घुड़की से कोई डरने वाला नहीं है, जहां कहीं भी बिहार के लोग हैं वे अपने को सुरक्षित महसूस करें। इस बयानबाजी के चलते एक राज्य छोड़कर दूसरे राज्य में नौकरी-पेशा करने वालों के बीच भय का माहौल बन जाता है। कई बार तो नेताओं की इस तरह की बयानबाजी हिंसा का रुप ले लेती है। ऐसा ही कुछ साल पहले भी राज ठाकरे ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ बयान दिया था जिससे महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के साथ हिंसक घटना हुई थी।
इस बार मनसे प्रमुख राज ठाकरे का आगबबूला होने का कारण यह है कि मुंबई पुलिस द्वारा मुंबई हिंसा के मामले में बिहार से एक व्यक्ति को बिहार सरकार के बिना किसी सूचना के गिरफ्तार करने पर बिहार के मुख्य सचिव नवीन कुमार ने कड़ी आपत्ति जताई थी। इस पर राज ठाकरे ने कहा, बिहार सरकार मुंबई पुलिस के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई करेगी तो हम बिहारियों को महाराष्ट्र से खदेड़ देंगे।
उसके बाद बयानबाजी का दौर शुरू हो गया है। कांग्रेस ने इसे संवैधानिक ढांचे पर हमला बताया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि कानून तोड़ने वाले पर कार्रवाई होगी। लोकजनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान ने कहा, एक और भिंडरवाला पैदा हो गया। जद यू अध्यक्ष शरद यादव ने आरोप लगाया कि मनसे प्रमुख राज ठाकरे कांग्रेस की कठपुतली हैं जिसका इस्तेमाल वह राज्य में चुनावी फायदे के लिए शिवसेना-भाजपा गठबंधन का खिलाफ कर रही है। राजद के महासचिव रामकृपाल यादव ने मनसे नेता के बयान की निंदा की है जबकि भाजपा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने भी मनसे प्रमुख के बयान को खारिज करते हुए कहा कि राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में काम करते समय टकराव से बचने की जरूरत होती है। इस तरह बिहार की राजनीति से जुड़ी सभी प्रमुख पार्टियों ने राज ठाकरे के बयान की जमकर निंदा की।
इसके बाद बौखलाए राज ठाकरे ने हिंदी न्यूज चैनलों को निशाना साधते हुए कहा कि यदि चैनलों ने उन्हें गलत तरीके से पेश करना जारी रखा तो वे महाराष्ट्र में हिंदी समाचार चैनलों को चलने नहीं देंगे। इस पर टीवी समाचार चैनलों के संपादकों की प्रमुख संस्था ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन (बीईए) ने हिन्दी समाचार चैनलों के खिलाफ मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के बयान पर कड़ा एतराज जताया और इसे लोकतंत्र पर हमला करार दिया।
राजनीति में माहिर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहां पीछे रहने वाले थे उसने मौके के नजाकत को भांपा और जमकर भड़ास निकाली। उन्होंने कहा, राज ठाकरे सिरफिरा व्यक्ति है जो खबरों में बने रहने के लिए इस तरह का बयान देता है, इतनी हैसियत किसी की नहीं है जो हमारी अस्मिता को चुनौती दे।
आपने पढ़ा एक बयान के बाद दूसरा बयान। यह सिलसिला जारी है और आगे भी जारी रहेगा। क्योंकि अपने-अपने क्षेत्र के हिसाब से इन सभी नेताओं को राजनीति करनी है। जिन नेताओं का संबंध महाराष्ट्र और बिहार से नहीं है उन्होंने कोई बयान नहीं दिया। राज ठाकरे को महाराष्ट्र में राजनीति करनी है तो नीतीश कुमार को बिहार में। दोनों की पार्टी क्षेत्रीय पार्टी है इस लिए क्षेत्रीय राजनीति को ही ध्यान में रखा जाता है। भाजपा बिहार में नीतीश कुमार के साथ सरकार में है तो महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ, इसलिए नपेतुले शब्दों में अपने बयान को रख रही है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार, ये दोनों पार्टी राज ठाकरे पर कार्रवाई न कर इसलिए बढ़ावा देती है कि मनसे की शक्ति बढ़ने से शिवसेना को घाटा होगा जिससे हमारी शक्ति बरकरार रहेगी। फिलहाल कांग्रेस और एनसीपी का बिहार में जनाधार ना के बराबर है।
अपने-अपने फायदे के हिसाब से सभी राजनीति कर रहे हैं। इस राजनीति के चक्कर में सबसे ज्यादा कोई पिस रहा है तो वह है आम जनता। रोजी रोटी की तलाश में महानगरों में जाकर लोग विभिन्न तरह के रोजगार करते हैं। रिक्शा चलना, ऑटो चलना, पानी बेचना, सब्जी बेचना, मजदूरी करना, फैक्ट्री में काम करना, तमाम प्राइवेट सेक्टर से लेकर सरकारी दफ्तर तक में काम करते हैं, जो अलग-अलग राज्यों से होते हैं। लेकिन वहां रह रहे मूल निवासियों की संख्या ज्यादा होती है। ऐसे में जब राजनेता किसी क्षेत्र विशेष के लोगों के खिलाफ नफरत भरा बयान देते हैं तो नफरत का माहौल पैदा होता है जिसका खामियाजा गरीब तबकों को सबसे ज्यादा उठाना पड़ता है। उसकी जान पर आ पड़ती है। इन राजनेताओं के बयान के बहकावे में आकर स्थानीय सिरफिरे लोग उनके साथ पिटाई और बदसलूकी करते हैं। जिससे तंग होकर उन्हें अपना कारोबार छोड़कर गृह राज्य लौटना पड़ता है या तो अपने बचाव के लिए उन सिरफिरों से लोहा लेना पड़ता है। जिससे हिंसा बढ़ना लाजमी है। ऐसा सिर्फ महाराष्ट्र में ही नहीं होता है, कई राज्यों में इस तरह की घटना देखने को मिलती है। कई बार असम में दूसरे राज्य के लोगों के खिलाफ हिंसा हो चुकी है।
कहने का तात्पर्य यह है बयानबाजी से किसी का फायदा नहीं होने वाला है जब भारत के लोग विदेशों में जाकर रोजगार कर सकते है और वहां का निवासी बन सकते हैं तो फिर भारत तो हर भारतवासियों को घर है। भारत का संविधान देशवासियों को देश के किसी भी राज्य में बसने और नौकरी-पेशा करने का अधिकार देता है। देश के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि देश की एकता और अखंडता को बनाए रखे। इस तरह देश में धर्म, जाति और क्षेत्रवाद के नाम पर हिंसा या नफरत का पैदा करने वालों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
जन-जन में जो नफरत बोए राजनेता नहीं, देशद्रोही है
First Published: Monday, September 3, 2012, 15:39