Last Updated: Friday, August 23, 2013, 18:35
ज़ी मीडिया ब्यूरो फिल्म मद्रास कैफे बॉलीवुड के मायनों में काफी लीक से हटकर है। वैसे तो अभी तक पिछले कई सालों से हिंदी सिनेमा में प्यार, मोहब्बत, नाच गाना आदि से मनोरंजन किया जाता रहा है। हमेशा से मुख्यधारा की सिनेमा के प्रति दर्शकों का लगाव कम ही रहा है। एक सच्चाई यह भी है कि लीक से हटकर बनी मद्रास कैफे कई मायनों एक रोमांचक फिल्म है। समाज और सच्चाई को परोसने के लिहाज से शूजीत सरकार ने इस फिल्म में एक नया प्रयोग किया है।
इस फिल्म में सारे किरदारों को इस तरह पिरोया गया है कि यह एक-दूसरे से गुंथी हुई नजर आती है। ये फिल्म निश्चित ही आपको कहानी में डूबने पर मजबूर करेगी। इस राजनीतिक थ्रिलर फिल्म में नुक्स निकालने की गुंजाइश कम है।
मध्यस्थता और शांति के प्रयासों के विफल होने के बावजूद श्रीलंका के गृह युद्ध में भारत किसी न किसी शामिल रहा। इस फिल्म में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी भी एक कोण रहे हैं। `मद्रास कैफे` में उनसे जुड़ी घटनाओं को रचने की कोशिश की गई है। इस फिल्म में श्रीलंका सिविल वॉर के दौरान अंडरकवर रॉ एजेंट विक्रम सिंह (जॉन अब्राहम) को एक ऑपरेशन के लिए जाफना में भेजा जाता है। विक्रम का काम है जाफना के एलटीएफ (लिबरेशन ऑफ तमिल फ्रंट) से संबंध रखने वाले लीडर अन्ना को हिंसात्मक गतिविधियों से रोकना और शांति सेना को इलाके का कब्जा देने के लिए तैयार करना। लेकिन बाद में उसे पता चलता है कि यहां और भी बड़ी साजिश रची जा रही है।
‘मद्रास कैफे’ शुरुआत से ही बेहतर पकड़ बना लेती है। युद्ध के जबरदस्त सीन दिल दहला वाले हैं और फिल्म देखने के काफी देर बाद तक भी ये आपके दिमाग में घूमते रहेंगे। स्क्रिनप्ले से साफ हो जाता है कि फिल्म में बकवास चीजों से बचा गया है क्योंकि इसमें बेमतलब के गाने, लव स्टोरी और नाटकीयता नहीं ठूंसी गई है। एक दृश्य में जॉन के एक करीबी की मौत हो जाती है और बिना किसी अतिरेक के इस दृश्य का दर्द बेहद असली लगता है। अगर आप इस उम्मीद से फिल्म देखेंगे कि आपको फिल्म एक था टाइगर की तरह एक लार्जर देन लाइफ हीरो मिलेगा या रॉ एजेंट की अतिनाटकीय जिंदगी देखने मिलेगी तो शायद आपको निराशा हाथ लगे।
इसमें जॉन अब्राहम की अब तक की सबसे अच्छी परफॉर्मेंस कह सकते हैं। इस फिल्म में ये अपनी ईमानदारी से चौंकाते हैं। अपनी परफॉर्मेंस से सुजीत सरकार जैसा चाहते हैं उसे पर्दे पर उतारने में कामयाब होते हैं। यहां नरगिस फाकरी का उल्लेख करना भी जरुरी है। भारतीय मूल की ब्रिटिश पत्रकार जया साहनी के किरदार में नरगिस अच्छी पकफॉर्मेंस देती हैं। वहीं, सिद्धार्थ बसु ने अपनी पहली फिल्म में रॉ डायरेक्टर रॉबिन दत्त का किरदार भी बखूबी निभाया है। इंटेलीजेंस एजेंसी के हेड के किरदार में जंचे हैं।
वैसे तो फिल्म में हीरो-हीरोइन पर फिल्माया गया कोई भी गाना नहीं है, लेकिन बैकग्राउंड में बजता शांतनु मोइत्रा का म्यूजिक शानदार है और जो दृश्यों को और भी प्रभावशाली बनाता है। हल्की फुलकी खामी को छोड़ दिया जाए तो ‘मद्रास कैफे’ एक बेहतरीन फिल्म है। फिल्म एक सच्ची घटना से प्रेरित है और इसे सच्चाई से पर्दे पर पेश किया गया है।
इस फिल्म में प्रमुख कलाकार जॉन अब्राहम, नरगिस फाखरी और राशि खन्ना हैं। इसके निर्देशक शूजीत सरकार हैं। इसमें संगीत दिया है शांतनु मोइत्रा ने।
First Published: Friday, August 23, 2013, 15:26