EU ने अल्फांसो आम, सब्जियों को प्रतिबंधित किया

EU ने अल्फांसो आम, सब्जियों को प्रतिबंधित किया

EU ने अल्फांसो आम, सब्जियों को प्रतिबंधित कियालंदन : यूरोपीय संघ ने भारत से तात्कालिक रूप से अल्फांसो आम और चार सब्जियों को 1 मई से प्रतिबंधित कर दिया है जिसके कारण भारतीय समुदाय के लोगों, कानून निर्माताओं और व्यापारियों का विरोध प्रदर्शन हुआ है।

पौध स्वास्थ्य पर यूरोपीय संघ की स्थायी समिति के हाल का यह फैसला यूरोपीय संघ में वर्ष 2013 में आयात किये गये भारतीय फलों और सब्जियों के 207 खेपों को फलों पर लगने वाली मक्खियों जैसे कीटों और अन्य संगरोधी कीटों से संदूषित पाया गया।

यूरोपीय संघ ने जिन वस्तुओं के आयात पर तात्कालिक प्रतिबंध लगाया है उनमें आम, बैंगन, अरबी, करेला और चिचिण्डा शामिल हैं।

समिति ने कहा कि हालांकि प्रतिबंधित जिंस यूरोप में भारत से आयात किये गये कुल ताजा फलों और सब्जियों के आयात के 5 प्रतिशत से भी कम जिंसों का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन नये कीटों के संभावित प्रवेश यूरोपीय संघ की कृषि एवं उत्पादन के लिए एक खतरा बन सकते हैं।

ब्रिटेन का पर्यावरण, खाद्य एवं ग्रामीण मामलों का विभाग (डेफ्रा) इन प्रतिबंधों का समर्थन करता है। उसने कहा कि कीटों के कारण यह प्रतिबंध जरूरी था जो देश के 32.1 करोड़ पौंड के टमाटर और ककड़ी के सलाद फसल उद्योग के लिए खतरा बन सकता है।

ब्रिटेन भारत से करीब 1.6 करोड़ आम का आयात करता है और फलों का बाजार करीब 60 लाख पौंड प्रतिवर्ष का है। प्रतिबंध पर पुनर्विचार 31 दिसंबर 2015 से पहले किया जायेगा।

व्यवसायियों ने दावा किया है कि प्रतिबंध के कारण वे सैकड़े हजार पौंड का नुकसान झेलेंगे। भारतीय बाहुल्य वाले क्षेत्र में थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं ने प्रतिबंध का विरोध किया है जो 1 मई को प्रभावी होगा। उनका कहना है कि यह (प्रतिबंध) उन्हें गंभीरता से प्रभावित करेगा।

भारतीय मूल के सांसद केथ वाज ने कहा कि यह बेतुका और नौकरशाही का पागलपन है। भारतीय आम शताब्दियों से ब्रिटेन में आयात किया जाता रहा है। मैं प्रतिबंध से प्रभावित होने वालों के साथ परामर्श की कमी को लेकर क्षुब्ध हूं।

वाज ने कहा कि उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यह पता लगाने के लिये पत्र लिखा है कि क्या भारत सरकार से मामले में संपर्क किया गया था। (एजेंसी)

First Published: Monday, April 28, 2014, 18:28

comments powered by Disqus