Last Updated: Sunday, February 9, 2014, 16:24

नई दिल्ली : गृह मंत्रालय दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उस आग्रह पर विचार कर सकता है जिसमें उन्होंने 12 वर्ष पुराने आदेश को वापस लेने क आग्रह किया है जिसमें किसी भी विधेयक को दिल्ली विधानसभा में पेश किए जाने से पहले केंद्र की मंजूरी प्राप्त करना जरूरी बनाया गया है।
अधिकारियों ने कहा कि 2002 के आदेश को बिना कानूनी विचार-विमर्श को रद्द नहीं किया जा सकता है और गृह मंत्रालय इस मामले पर रुख जानने के लिए विधि मंत्रालय को भेज सकता है। उन्होंने कहा कि चूंकी आदेश वर्तमान सरकार ने पारित नहीं किया है, इस आदेश के संबंध में कोई भी निर्णय करने से पहले कानूनी पहलुओं की जांच परख की जानी चाहिए।
अधिकारी ने कहा, ‘दिल्ली के मुख्यमंत्री के आग्रह पर निश्चित तौर पर विचार किया जाएगा लेकिन उपयुक्त कानूनी सलाह और प्रक्रियाओं का पालन किया जाएगा।’ बहरहाल, महाराष्ट्र से दिल्ली लौटने के बाद गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे इस बारे में अंतिम निर्णय करेंगे।
शिंदे को लिखे पत्र में केजरीवाल ने कहा कि आदेश को वापस लिया जाना चाहिए क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है। शिंदे को लिखे पत्र में केजरीवाल ने कहा, ‘यह केवल एक आदेश है जो पूरी तरह से संविधान के खिलाफ हैं। गृह मंत्रालय के आदेश से दिल्ली विधानसभा के कानून बनाने के अधिकार में किस प्रकार से कटौती की जा सकती है। यह काफी गंभीर मुद्दा है।’
केजरीवाल ने शनिवार को कहा था, ‘मैंने संविधान की शपथ ली है और गृह मंत्रालय के आदेश की नहीं। मैं संविधान का पालन करूंगा।’ मुख्यमंत्री ने कहा था कि वह बिना गृह मंत्रालय की अनुमति प्राप्त किए ही दिल्ली विधानसभा में जन लोकपाल विधेयक पेश करेंगे, साथ ही इस निर्देश को असंवैधानिक करार दिया। दिल्ली की कैबिनेट ने विधेयक को मंजूरी देते हुए प्रस्ताव पारित किया कि केंद्र सरकार का आदेश असंवैधानिक है।
केजरीवाल ने कहा कि वह भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक को पारित कराने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस्तीफा देंगे, आम आदमी पार्टी के नेता ने इसका सकारात्मक उत्तर देते हुए कहा कि वह भ्रष्टाचार के बड़े मुद्दे पर किसी भी हद तक जा सकते हैं। (एजेंसी)
First Published: Sunday, February 9, 2014, 16:24