Last Updated: Thursday, November 14, 2013, 16:05
लखनऊ: गुजरात के मुख्यमंत्री व भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की 21 नवंबर को आगरा में प्रस्तावित रैली जहां मुलायम सिंह के लिए चुनौतीपूर्ण है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिगड़े सांप्रदायिक माहौल में जाटों पर चढ़े `भगवा रंग` के पुख्ता होने की आशंका के बीच राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के सामने भी अपना वजूद बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है।
मोदी की अब तक तीन रैलियां प्रदेश में हो चुकी हैं। कानपुर, झांसी और बहराइच के बाद अब चौथी रैली आगरा में होने वाली है। मोदी के रैली स्थल से थोड़ी ही दूरी पर उसी दिन बरेली में मुलायम की भी रैली प्रस्तावित है।
मुलायम की आजमगढ़ और मैनपुरी में हुई दोनों रैलियों में भारी भीड़ देखने को मिली थी। मोदी और मुलायम की एक ही दिन होने वाली रैली से अब दोनों पार्टियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती भीड़ इक्कट्ठा करने की है। दोनों ही पार्टियां अपनी-अपनी रैलियों में भीड़ एकत्र करने में जुटी हुई हैं।
मोदी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आहट से रालोद खेमे में भी बेचैनी साफ तौर पर देखी जा रही है। रालोद के पांच में से दो सांसद इसी क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं और आठ में से पांच विधायक भी यहीं से हैं।
गत लोकसभा चुनाव में रालोद को भाजपा का सहारा जरूर मिला था मगर 2012 के विधानसभा चुनाव में इसे कांग्रेस से गठबंधन कर लेने का अधिक लाभ नहीं मिल सका। मोदी की आगरा रैली रालोद प्रभाव वाले क्षेत्र में पहली होगी और इस पर सबकी निगाहें हैं।
भाजपा भी जहां रालोद के जाट वोट बैंक पर नजर लगाए है वहीं रालोद को अति पिछड़े वोट भी हाथ से खिसकने का खौफ भी सता रहा है। वोटों के समीकरण में पिछड़ने का डर पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी के बाद से दोगुनी हो गई है।
रालोद के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान हालांकि, इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते की पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद के लिए मुश्किल हालात हैं। वह कहते हैं कि मोदी का असर कहीं नहीं है, यह सिर्फ मीडिया में दिखाई देता है। मोदी के नाम के आगे भाजपा का कोई नाम लेने वाला नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद हमेशा ही मजबूत रहा है और रहेगा। मोदी हमारे लिए चुनौती नहीं हैं। (एजेंसी)
First Published: Thursday, November 14, 2013, 16:05