Last Updated: Sunday, April 13, 2014, 19:05
लोकतन्त्र में सत्ता सामूहिक हिस्सेदारी से मिलती जरूर है, लेकिन सत्ता का संचालन हमेशा से ही केन्द्रीकृत रहा है। हिन्दुस्तान के लोकतांत्रिक ढांचे की ये ऐसी अघोषित परिभाषा रही है जिसे सभी ने माना है। लेकिन पिछला एक दशक इस मायने में अलग रहा है। इस दौर में सत्ता सात रेसकोर्स रोड और दस जनपथ के बीच के चौराहों पर कहीं भटक सी गई लगती है।