लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती : राष्ट्रपति|Pranab Mukherjee

लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती : राष्ट्रपति

लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती : राष्ट्रपतिनई दिल्ली : दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा हाल ही में दिए गए धरने पर परोक्ष रूप से प्रहार करते हुए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है और लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती।

आम आदमी पार्टी या उसके नेता केजरीवाल का उल्लेख किए बिना राष्ट्रपति ने कहा, ‘सार्वजनिक जीवन में पाखंड का बढ़ना भी खतरनाक है। चुनाव किसी व्यक्ति को भ्रांतिपूर्ण अवधारणाओं को आजमाने की अनुमति नहीं देते।’ 65वें गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में मुखर्जी ने कहा, ‘सरकार कोई परोपकारी निकाय नहीं है। लोकलुभावन अराजकता शासन का विकल्प नहीं हो सकती। झूठे वायदों की परिणति मोहभंग में होती है, जिससे क्रोध भड़कता है तथा इस क्रोध का एक ही स्वाभाविक निशाना होता है -सत्ताधारी वर्ग।’

साथ ही उन्होंने कहा, ‘यह क्रोध केवल तभी शांत होगा, जब सरकारें वह परिणाम देंगी जिनके लिए उन्हें चुना गया था।’ मुखर्जी ने खबरदार किया, ‘ये महत्वाकांक्षी भारतीय युवा उसके भविष्य से विश्वासघात को क्षमा नहीं करेंगे। जो लोग सत्ता में हैं, उन्हें अपने और लोगों के बीच भरोसे में कमी को दूर करना होगा। जो लोग राजनीति में हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि हरेक चुनाव के साथ एक चेतावनी जुड़ी होती है-परिणाम दो अथवा बाहर हो जाओ।’

राष्ट्रपति ने कहा कि वह निराशावादी नहीं हैं क्योंकि वह जानते हैं कि लोकतंत्र में खुद में सुधार करने की विलक्षण योग्यता है। लोकतंत्र ऐसा चिकित्सक है जो खुद के घावों को भर सकता है और पिछले कुछ वर्षों की खंडित तथा विवादास्पद राजनीति के बाद 2014 को घावों के भरने का वर्ष होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए लोकतंत्र कोई उपहार नहीं है बल्कि हरेक नागरिक का मौलिक अधिकार है, जो सत्ताधारी हैं उनके लिए लोकतंत्र एक पवित्र भरोसा है। जो इस भरोसे को तोड़ते हैं, वे राष्ट्र का अनादर करते हैं।’ अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मुखर्जी ने कहा कि हमारे लोकतंत्र में यदि कहीं कोई खामियां नजर आती हैं तो यह उनके कारनामे हैं जिन्होंने सत्ता को लालच की पूर्ति का मार्ग बना लिया है।

उन्होंने कहा, ‘जब हम देखते हैं कि हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं को आत्मतुष्टि और अयोग्यता द्वारा कमजोर किया जा रहा है, तब हमें गुस्सा आता है, और यह स्वाभाविक है।’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘यदि हमें कभी सड़क से हताशा के स्वर सुनाई देते हैं तो इसका कारण यह है कि पवित्र भरोसे को तोड़ा जा रहा है।’(एजेंसी)

First Published: Saturday, January 25, 2014, 19:58

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