सपनों का खजाना: क्‍या बदलेगी देश की तकदीर? । Treasure of Dream: will it change the destiny of countrymen?

सपनों का खजाना: क्‍या बदलेगी देश की तकदीर?

सपनों का खजाना: क्‍या बदलेगी देश की तकदीर?बिमल कुमार

यूपी के उन्नाव जिले के संग्रामपुर गांव में सोने की खान होने की बात जबसे सुर्खियों में आई है, तब से इस बात पर मंथन शुरू हो गया कि वाकई यह सपनों का खजाना हकीकत में है या इसके पीछे की सच्‍चाई कुछ और है। यदि वास्‍तव में वहां सोने का खजाना मिल जाता है तो क्‍या इससे देश और आम नागरिकों की तकदीर बदल पाएगी। अनुमानित तौर पर सवाल आखिर 1000 टन सोने से जुड़ा है। अगर इतनी मात्रा में सोना यहां से निकल जाता है तो इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए। यह न भूलें कि भारत को किसी समय `सोने की चिडि़यां` ऐसे ही नहीं कहा जाता था।

जाहिर है इतनी बड़ी मात्रा में सोने का भंडार मिलता है तो यह सीधे सरकारी खजाने में पहुंच जाएगा। होना तो यह चाहिए कि जिस जगह से यह सोना मिलेगा, वहां के बुनियादी विकास की बातें सबसे पहले होनी चाहिए। वैसे भी सरकारी खजाने में जाने के बाद इस भंडार की सही दिशा में उपयोगिता पर संशय तो जरूर होगा। हालांकि इसका कोई पुख्‍ता आधार नहीं है पर आज जो देश के शासकों की दशा और दिशा है, उससे तो मन में संशय उठना कोई बड़ी बात नहीं है। ज्‍यादा दिन नहीं बीते हैं, जब देश भर में एक और सोने के भंडार (कोयले का भंडार) का किस तरह बंदरबांट किया गया। जिसका खामियाजा आज देश की जनता भुगत रही है। खैर आम जनता की कौन सुध लेता है, जहां हुक्‍मरानों को सिर्फ अपनी और चहेतों की ही फिक्र होती है।

देश भर में अभी कई मंदिर हैं, जिनके बारे में अपुष्‍ट तौर पर कहा जाता है कि यहां अकूत स्‍वर्ण भंडार है। आज यदि देश के बड़े स्वर्ण भंडार वाले मंदिर यदि अपने भंडार में मौजूद आधा सोना भी बाजार में ले आएं, तो देश को कम से कम चार-पांच महीने तक सोने का आयात नहीं करना पड़ेगा। कुछ ऐसा मानना है स्वर्ण कारोबार से जुड़े लोगों का। यदि मंदिर अपने स्वर्ण भंडार के कुछ हिस्से को बेच दें, तो देश को पांच से छह महीने तक सोने का आयात नहीं करना होगा।

मंदिर यदि अपने कुछ सोने को बाजार में आने दें तो इससे न सिर्फ विदेशी मुद्रा का विदेश की तरफ होने वाला प्रवाह रुकेगा, बल्कि निर्यात से आय भी हो सकती है। यदि मंदिर कुछ सोने को बाजार में आने दे, तो देश को अगले चार महीने तक सोने का आयात नहीं करना होगा। जाहिर है कि यह सरकार के लिए भी फायदेमंद होगा और मंदिर के लिए भी। वहीं, सरकार को विदेशी मुद्रा की बड़े पैमाने पर बचत होगी। बीते दिनों भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के कुछ प्रमुख मंदिरों को परिपत्र भेजकर उनके स्वर्ण भंडार के विवरण मांगे थे। सोने के आयात को धीमा करने के लिए सरकार ने हाल में सोने का आयात शुल्क भी बढ़ा दिया था। जुलाई के बाद से अब तक सोने का आयात नहीं हुआ है।

अब जबकि उन्‍नाव जिले में सपने के खजाने की सच्चाई को जानने के लिए पुरातत्व विभाग की टीम खुदाई की तैयारी में है। यदि मान लिया जाए कि इतनी भारी मात्रा में यह सोना निकल भी जाता है तो क्‍या देश की तकदीर बदलने में इसका समुचित उपयोग हो पाएगा। सुनने में एकबारगी तो जरूर यह किसी सपने से कम नहीं लगता है। यदि यह सपना हकीकत में तब्‍दील हो जाता है तो इसे जनहित में लाभकारी बनाने के लिए कदम जरूर उठाए जाने चाहिए।

वहीं, डौडिया खेड़ा के अमर शहीद राजा राव रामबख्श सिंह के किले में 1000 टन सोना दबे होने की खबर फैलने के बाद अब उसके कई दावेदार सामने आ गए हैं। हालांकि ये अलग मसला है कि इन दावेदारों की बातों में कितनी सत्‍यता है पर इसे खजाने को लेकर विवाद उठने लगा है। खजाने के दावेदार खुद को राजा का वंशज बता रहे हैं। सवाल यह उठता है कि यदि ये खुद को राजा का वंशज बता रहे हैं तो इसे कैसे परखा जाए कि सही में ये राजा के वंशज हैं ही। यह कोई नई बात नहीं है, जब भी कोई बड़ा खजाना सामने आता है तो दावेदारों की फेहरिस्‍त बढ़ती जाती है। हैदराबाद के निजाम के यहां अब तक का सबसे बड़ा खजाना होना ज्ञात है। विदित है कि अब तक इसके कई दावेदार सामने आ चुके हैं। खजाने के दावेदार खुद को राजा का वंशज बता रहे हैं।

किले में दबे खजाने के ये दावेदार संत शोभन सरकार के उस सपने के बाद सामने आए हैं, जिसमें संत ने किले के नीचे दबे 1000 टन सोने के खजाने को देखा।
जमीने के नीचे दबे इस खजाने में करीब 1000 टन सोना होने की बात कही जा रही है। जाहिर है कि इतने बड़े अपुष्‍ट खजाने को लेकर सुरक्षा तो बरती जाएगी ही। हुआ भी यही, किले में सुरक्षा बंदोबस्त कड़े कर दिए गए हैं। संत शोभन सरकार के शिष्य ओम जी के अनुसार यदि स्वर्ण भण्डार का एक हिस्सा उन्नाव के विकास में नहीं लगाया गया और उनकी मांगे नहीं मानी गईं तो चाहे जितनी खुदाई कर ले कहीं पर सोना नहीं निकलेगा।

गांव वालों की बातों पर यकीन करें तो राजा के किले के आस पास दर्जनों सुरंगे मौजूद थीं जो अब बंद हो चुकी हैं। किले में महिलाओ के लिए अलग किला बनाया गया था जिसके आस पास आज भी पुरानी दीवारे मौजूद हैं। किले का पूरा क्षेत्र 300-400 हेक्टयर में फैला हुआ है। इसमें 20-25 मंदिर मौजूद हैं।

उन्नाव के बीघापुर तहसील में बक्सर स्थित सिद्ध पीठ चंद्रिका देवी की छत्रछाया में स्थित डौडिया खेड़ा के किले में खजाने की बात संत शोभन सरकार ने कही है। बक्सर से एक किलोमीटर दूर आश्रम में उन्होंने तीन माह पूर्व सपना देखा था कि इस किले के नीचे खजाना छिपा है। जिसमें 1857 की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिलाने वाले डौडिया खेड़ा के राजा राव रामबक्स सिंह के किले में खजाना दबा होने की बात कही गई थी। इसके बाद यह खबर शासन-प्रशासन तक पहुंची, जिसे उनके शिष्य ओमजी ने दिया।

इसके बाद विटियन कोर्ट नाम से प्रसिद्ध इमारत का नजरी नक्शा निकलवाया गया। हलचल और तेज हो गई। फिर इसके बाद जियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया और पुरातत्व विभाग की टीम ने यहां आकर पड़ताल शुरू कर दी, जिस पर देश भर की निगाहें टिक गई हैं।

अनुमान लगाया जा रहा है कि किले में स्थित रामेश्वर मंदिर से किले की ओर पूरब से पश्चिम दिशा में खजाना होने का अनुमान है। संत शोभन सरकार से इस बाबत केंद्रीय मंत्री मिल लिए और उसके बाद खजाने के संकेत दिए। इसके बाद संत ने मंत्री से खजाने का कुछ हिस्सा इलाके के विकास में खर्च करने को लेकर आश्‍वासन भी मांगा। जिक्र योग्‍य है कि यह सोने का खजाना डौडिया खेडा स्टेट के पच्चीसवें शासक राजा राव राम बक्श सिंह के किले के अवशेष में गड़ा बताया जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि 1857 के दौरान ब्रिटिश शासनकाल के साथ लड़कर उसके छक्के छुड़ा दिए थे और बाद में उन्हें एक पेड से लटका कर फांसी दे दी गई थी।

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार राजा के महल के नक्शे में नारंगी के वृक्ष के नीचे खजाना होने की बात दर्शाई गई थी। अंग्रेजी जनरल होम ग्रांट ने 10 मई 1857 को राजा का डौडिया खेड़ा दुर्ग ध्वस्त कर दिया था। इसके बाद राजा साहब अपनी ससुराल काला काकड़ और फिर बनारस चले गए। यहां के नगवा गांव में किराए पर रह रहे राजा को जब गिरफ्तार किया गया, तो उनके पास बनारस के खजाने में चार हजार स्वर्ण मुद्राएं थीं। इतिहास में यहां का खजाना अंग्रेजों से बचाने के लिए छिपाने के तथ्य हैं। राजा के अभियोग से संबंधी पत्रावली में उनके घर के नक्शे में नारंगी के वृक्ष के नीचे कोष होने की बात दर्शाई गई है। पत्रावली के अनुसार राजा साहब के पूर्वज बसंत सिंह की यह बारादरी थी। अंग्रेजी जनरल होम ग्रांट द्वारा 10 मई, 1857 को डौडिया खेड़ा दुर्ग ध्वस्त करने के बाद रामबक्स सिंह इसी घर में रहते थे।

प्राचीन राजाओं और महाराजाओं ने मुगल आक्रांताओं और ब्रिटिश शासनाधिकारियों से अपने खजाने को बचाने के लिए ही इसे अज्ञात सुरक्षित स्‍थान पर गड़वा दिया था, जो इन रूपों में अब सामने आ रहा है। उन्‍नाव जिले में सपनों का यह खजाना उसी की एक कड़ी है। खुदाई में यदि यह भंडार निकला तो क्‍या हम उम्‍मीद करें कि इस सपने के खजाने के हकीकत में आने के बाद देशवासियों को इसका समुचित लाभ मिल पाएगा।

First Published: Friday, October 18, 2013, 01:01

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