Last Updated: Wednesday, November 21, 2012, 20:46

संजीव कुमार दुबे
पाकिस्तानी आतंकी और 26/11 हमले के गुनहगार कसाब को तो आखिरकार फांसी पर चढ़ा दिया गया। कसाब को 4 साल फांसी देने में लग गए लेकिन भारत में जो गुनाह करने के बाद दंड देने की प्रक्रिया है उसके मुताबिक यह जल्दी ही कहा जाएगा। कसाब को फांसी पर चढाकर लोगों के बीच एक अच्छा संदेश यह गया है कि सरकार किसी भी गुनहगार को बख्शेगी नहीं खासकर ऐसे गुनहगार को जिसपर कई बेगुनाहों के कत्ल का आरोप हो।
देखा जाए तो कसाब एक जिंदा पकड़ा गया आतंकी था जिसके खिलाफ तमाम सबूत थे और उसके लिए फांसी से कम तो कोई सजा हो ही नहीं सकती थी। इस फैसले से जो भी लोग जुड़े रहे वह यकीनन बधाई के पात्र थे।
आतंकी कसाब को फांसी दिए जाने के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाओं का दौर भी शुरू हो गया। कांग्रेस, बीजेपी के बड़े नेताओं सहित सभी ने कसाब को मिली फांसी पर संतुष्टि जताई। लेकिन सभी ने सवाल उठाया कि आखिर अफजल को फांसी कब दी जाएगी। कसाब का तो द एंड हो गया अब सबको अफजल गुरु के सूली पर चढ़ने का इंतजार है।
अफजल गुरु देश के संसद पर हमला करने का अभियुक्त है। उसे फांसी की सजा सुनाए 6 साल हो गए, लेकिन अब तक फांसी नहीं दी गई। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे सियासतदान यह सवाल उठाते रहे हैं कि संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरू पर फैसला कब होगा। उसने तो कसाब से भी कई साल पहले गुनाह किया था। कसाब की फांसी के बाद मोदी सहित कई सियासतदानों ने उसके फांसी के मुद्दे को हवा दी है।
भारत सरकार को अब मुंबई हमले के असली जिम्मेदार लोगों को सौंपे जाने के मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करनी चाहिए। साथ ही अफजल गुरू का मामला भी शुरू होना चाहिए।
बीजेपी ने कसाब की फांसी के बाद कहा कि कसाब को फांसी मिले ऐसा पूरा देश चाहता था। देरी से ही सही ये अच्छी खबर है। लेकिन संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी क्यों नहीं दी जा रही है। सरकार कहती रही है कि वो कतार में है। कसाब को फांसी के बाद अब तो साफ हो गया है कोई कतार नहीं होती है। अफजल के मामले में सरकार को जवाब देना होगा।
अब सबलोग यह मांग कर रहे हैं कि जब कसाब को सजा मिल गई तो अफजल गुरु को क्यों नहीं। अफजल गुरु संसद पर हमले का दोषी है जो 13 दिसंबर, 2005 में हुआ था। बुधवार को एक और अच्छी बात कही जा सकती है कि सत्ता और विपक्ष के कई नेताओं ने सियासत भूलकर अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की मांग की है।
इस बीच एक घटनाक्रम में बुधवार को ही राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरू समेत सात दोषियों की दया याचिकाओं को केंद्रीय गृह मंत्रालय के विचारार्थ लौटा दिया है। सुशील कुमार शिंदे ने एक अगस्त को गृहमंत्री के तौर पर कामकाज संभाला था , उसके बाद से गुरू की दया याचिका समेत सात दया याचिकाओं को विचारार्थ शिंदे को भेजा गया। सभी सात दया याचिकाओं को पहले राष्ट्रपति को अंतिम निपटारे के लिए भेजा गया था जिसके साथ संबंधित राज्य सरकार की राय और गृह मंत्रालय की सिफारिश थी।
हमें एक बात समझनी होगी कि फंदे के मामले में सियासत से पहले यह सोचना चाहिए कि कितने बेगुनाह लोगों का खून ये दहशतगर्द बहाते है। फिर भी इनको सजा देने की न्यायिक प्रक्रिया में बड़ा ही लंबा वक्त लग जाता है। यह बात पीड़ितों को कितनी अखड़ती होगी इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। कसाब को फांसी देने में चार साल लगे लेकिन अपने पीड़ितों को खोने का गम उनके परिजनों को हमेशा सालता रहेगा।
कुछ लोग अफजल गुरु की फांसी का विरोध भी कर रहे हैं लेकिन उन्हें इस बात को सोचना चाहिए कि अफजल गुरु की वजह से कितने बेगुनाहों ने अपनी जिंदगी खोई है। अफजल गुरु जैसे बाकी गुनहगारों को भी सरकार को जल्द-से-जल्द फांसी पर चढ़ाना चाहिए ताकि पीड़ितों के परिजनों को इंसाफ मिल सकें और इससे गुनहगार गुनाह करने से पहले सौ बार सोचेंगे।
First Published: Wednesday, November 21, 2012, 20:04