गांधी का अहिंसा धर्म आज भी प्रासंगिक

गांधी का अहिंसा धर्म आज भी प्रासंगिक

गांधी का अहिंसा धर्म आज भी प्रासंगिकरामानुज सिंह

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पिछले महीने सांप्रदायिक सद्भाव खंड-खंड हो गया। समाज के दो कौम एक मामले को लेकर जिसे आसानी सुलझाया जा सकता था एक-दूसरे के रक्त पिपासु हो गए। इस नफरत की आग में कई दर्जन लोगों की जानें चली गईं। सैकड़ों लोग जख्मी होकर अस्पताल पहुंच गए। लाखों लोग अपने-अपने घर छोड़कर दूसरे गांवों और शहरों की ओर पलायन कर गए। दोस्त दुश्मन बन गए। बना बनाया रोजगार चौपट हो गया। जिंदगी पटरी से उतर गई। इस हिंसा ने समाज में सौहार्द बनाए रखने के लिए एक और गांधी की अवश्यकता महसूस कराई। आज हर तरफ अमन चैन चाहने वाला राष्ट्रपति महात्मा गांधी को याद करते हुए कहता है कि गांधी के तीन अमोध अस्त्र- सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह ही समाज और देश में एकता अखंडता को बचाए रखने का कारगर हथियार है।

सत्य और अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज 144वीं जयंती है। इस मौके पर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। दुनियाभर के लोग इस दिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रुप में मनाते हैं। गांधी ने आपसी भाईचारे को बरकरार रखने के लिए सत्य और अहिंसा पर जोर दिया था। उन्होंने कहा, सत्य और अहिंसा को केवल व्यक्तिगत व्यवहार का मामला नहीं, बल्कि समूहों, सामाजिक और राष्ट्रों के भी व्यवहार का अंग बनाना होगा। मेरा मानना है अहिंसा आत्मा का स्वभाव है, इसलिए हर किसी को जीवन के हर क्षेत्र में इसको व्यवहार में लाना चाहिए। अगर इसको यदि हर क्षेत्र में उपयोग में नहीं लाया गया तो इसका कोई व्यवहारिक मूल्य नहीं होगा। उनका विश्वास था कि भविष्य का विश्व एक अहिंसा पर आधारित समाज होगा। उन्होंने कहा, अहिंसा धर्म केवल ऋषियों और मुनियों के लिए ही नहीं है, यह जन सामान्य के लिए भी है। अहिंसा मानव जीवन की विधि संहिता है और हिंसा असभ्य जीवन का चलन है, हिंसक जीवन में आत्मा मर जाती है, उसे विवेक नहीं रहता। लेकिन प्रेम स्वयं को कर्म में अभिव्यक्त करता है और अहिंसा का प्रतिरूप बन जाता है। यह लोहे की तरह दृढ़ लचीला और कभी न टूटने वाला होता है।

गांधी का सपना एक सपना बनकर ही रह गया। आज देश ही नहीं विश्व के अधिकांश देशों में हिंसा तेजी से फैल गई है। कहीं धर्म के नाम पर, कहीं जाति के नाम पर, कही क्षेत्रवाद के नाम पर, कहीं आर्थिक, कहीं राजनीतिक हिंसा हो रही हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, मध्यपूर्व के देशों में हर दिन आतंकी हमले होते रहते हैं। तालिबान, अलकायदा जैसे संगठन धर्म के नाम पर कत्लेआम मचा रहे हैं। आदमी को आदमी नहीं समझा जा रहा है। समाजिकता और मानवता पर कट्टरपंथ हावी हो रहा है। प्रेम और सौहार्द बिल्कुल खत्म हो गया है।

सीमांत गांधी नाम से मशहूर खान अब्दुल गफ्फार खान ने गांधी की अहिंसा को व्यवहार में लाकर भारत के उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत में उग्र पठानों को अहिंसा के पुजारियों में बदल दिया था। बिनोवा भावे ने 1940 में एकल सत्याग्राही के रूप में आजादी का ध्वज उठाने और धनाढ़्यों के हृदयों को करुणा और ईश्वर भक्ति की और मोड़ने में अहिंसा का उपयोग किया था। अहिंसा के जरिये विनाबा भावे ने भूदान आंदोलन चलाकर लाखों भूपतियों से भूमि लेकर भूमिहीनों में बांटने में सफल रहे। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, मैं एक प्रभावशाली अहिंसक दृष्टिकोण में विश्वास करता हूं जिसमें मनुष्य हिंसा और धृणा के बिना सभी उपायों जैसे- धरने, प्रदर्शन, कानूनी प्रतिरोध, बहिष्कार, मत संग्रह आदि से अन्यायी तंत्र के विरूद्ध लड़ सकता है। अफ्रीका के गांधी नेल्सन मंडेला ने भी अहिंसात्मक तरीकों की सार्थकता और अमोघता को दर्शाया है। उन्होंने त्याग और बलिदान का प्रदर्शन किया और अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ 29 साल तक जेल में काटे ताकि जनता शांतिपूर्वक अपने अधिकार को हासिल कर सके। इस लिए शांति और अहिंसा का मार्ग ही सभी समस्यों का सही निदान है।

अहिंसा सभी धर्मों का सार है। महाभारत में लिखा है-
अहिंसा परमो धर्मः, अहिंसा परम तपः।
अहिंसा परम सत्य, यतो धर्मः प्रवर्त्तते।।
महाभारत की तरह ही अन्य ग्रन्थों में जैसे पतंजलि के महाभाष्य में आत्मशुद्धि के उपकरणों में अहिंसा को प्रथम स्थान दिया गया है। इसी प्रकार जैन, बौद्ध, ईसाई तथा मुस्लिम धार्मिक पुस्तकों और अन्य सभी पश्चिमी और पूर्वी विचारकों ने समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए अहिंसा पर बल दिया है।

First Published: Wednesday, October 2, 2013, 13:57

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