चुनौतियों के बीच संसद का शीत सत्र - Zee News हिंदी

चुनौतियों के बीच संसद का शीत सत्र

प्रवीण कुमार
पूरे देश की निगाहें संसद में 21 दिन तक चलने वाले शीतकालीन सत्र पर टिकी हैं। संसद का शीत सत्र तो हर साल आता है, लेकिन इस बार का शीत सत्र कई मायनों में खास है। क्योंकि इस शीत सत्र में एक आम आदमी के भूख, उसकी बेबसी और लाचारी को लेकर फैसला जो होना है। खाद्य सुरक्षा, लोकपाल और कालाधन को लेकर संसद के इस सत्र में सरकार कुछ महत्वपूर्ण फैसले ले सकती है। इसमें से खाद्य सुरक्षा और कालाधन दो ऐसे मुद्दे हैं जिनपर संसद का मौन टूट सकता है। साथ ही कैश फॉर वोट, 2जी स्पेक्ट्रम और महंगाई तीन ऐसे मुद्दे है जिसपर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तकरार होना तय है।

 

अक्सर जब हम संसद और आम आदमी की बात करते हैं तो जनकवि धूमिल का याद आ जाती है। साठ के दशक में जब जनकवि धूमिल अपने गृहस्थ जीवन में थे तभी एक आम आदमी की भूख, बेबसी और लाचारी मानो उनके नेत्रों के आगे खुलकर सामने आ गई थी। अनाज की जमाखोरी के पीछे की राजनीति उनकी पैनी दृष्टि से बच नहीं पायी। धूमिल का मानना था कि अनाज की कमी वास्तविक नहीं, बल्कि स्वार्थ की राजनीति से प्रेरित है। जमाखोरी को सरकारी नीति से बढ़ावा मिलता है। उस जमाखोरी से बचने का देश में कोई प्रयास न होता देख धूमिल ने जन भावनाओं की करुण गाथा को 'संसद और रोटी' शीर्षक से कविता के रूप में कागज पर उकेरा-

 

'एक आदमी रोटी बेलता है,
एक आदमी रोटी खाता है,
एक तीसरा आदमी भी है,
जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है,
वह सिर्फ रोटी से खेलता है,
मैं पूछता हूं यह तीसरा आदमी कौन है?
मेरे देश की संसद मौन है।'

 

रोटी से खेलने वाले तीसरे आदमी को लेकर आजाद भारत की संसद वाकई मौन रही है। अगर संसद मौन नहीं रहती तो खाद्य सुरक्षा का बिल लाने में छह दशक का समय नहीं लगता। जब संसद को लगा कि जनता सब कुछ जान चुकी है तो आनन-फानन में खाद्य सुरक्षा बिल को तैयार किया गया और अब उसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश करने की बात कही जा रही है। हालांकि दावे के साथ हम यह नहीं कह सकते कि सबको भोजन देने की गारंटी वाला यह बिल संसद में पारित हो जाएगा, लेकिन इस बिल को लेकर चूंकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का अपना गणित है, सो उम्मीद जताई जा रही है कि लोकपाल बिल या महिला आरक्षण बिल जैसा हश्र इस बिल का नहीं होगा।

 

दरअसल कांग्रेस देश की जनता को यह संदेश देना चाहती है कि सबको सूचना का हक और शिक्षा का हक देने वाली कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार ही सबको भोजन का अधिकार दे सकती है। निश्चित रूप से सरकार और कांग्रेस की यह मंशा काबिलेतारीफ है, लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि रोटी जैसी बुनियादी समस्या को सुलझाने में देश की सरकारों खासकर कांग्रेस नीत सरकारों को इतना वक्त क्यों लगा? इसका जवाब हमारी संसद के पास भी नहीं है। इससे ज्यादा शर्मनाक इस देश के लिए और कुछ नहीं हो सकता है कि आजादी के छह दशकों में भूख से मौत या सबको भरपेट खाना मिल रहा है या नहीं, देश की संसद के लिए राष्ट्रीय बहस का मुद्दा नहीं बन पाया।

 

हम आगे बढ़ते हैं। विदेशी बैंकों में जमा देश के कालेधन को लेकर भी संसद अब तक मौन रही है। अब जब कि जनता जान चुकी है कि यदि यह कालाधन देश में वापस आ जाए तो हर आदमी लखपति हो सकता है, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी जनचेतना यात्रा को कालेधन पर फोकस कर दिया। देखना है इस मुद्दे पर संसद क्या रूख अपनाता है। इस संबंध में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी का बयान गौर करने लायक है, 'सरकार हर मुद्दे पर संसद में चर्चा कराती है, लेकिन कालेधन के मुद्दे पर अब तक चर्चा नहीं हुई है। ऐसा क्यों नहीं हुआ है इसका उत्तर सरकार को देना होगा। अब यह बात भी सामने आ गई है कि तीन सांसदों के खाते भी विदेशी बैंकों में हैं। मुझे नहीं पता कि ये कौन सांसद हैं, लेकिन सरकार को इसका खुलासा करना चाहिए। मेरी जनचेतना यात्रा समाप्त हो चुकी है। 22 नवंबर से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। इस मुद्दे पर हम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को कटघरे में खड़ा करेंगे। कालेधन के मुद्दे पर उन्हें जवाब देना होगा।'

 

42 साल से लोकपाल बिल को लेकर भी संसद किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे की पहल पर देश जागा और जन आक्रोश की तपिश से जब यूपीए सरकार को झुलसने का खतरा दिखा तो आनन-फानन में शीतकालीन सत्र में लोकपाल बिल लाने पर तैयार हुई। लोकपाल को लेकर सुप्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और गांधीवादी अन्ना हजारे अभी भी सरकार को संदेह की नजरों से देख रहे हैं। शायद इसीलिए अपना मौन व्रत तोड़ने से पहले उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी, 'आपकी पार्टी और सरकार के कई लोग उलट-पलट बातें कर संदेह पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। अगर शीतकालीन सत्र में जन लोकपाल पास नहीं हुआ तो सत्र के आखिरी दिन से अनशन को दोबारा शुरू कर दिया जाएगा और टीम अन्ना भी कई राज्यों में दौरे पर निकल जाएगी जो पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में लोगों से अपील करेगी कि वे अपना वोट सदाचारी व्यक्ति को ही दें, भ्रष्ट और गुंड़ों को वोट न दें।'

 

अन्ना की चिट्ठी पर सरकार के कई मंत्री आक्रामक हो गए। वह ऐसे बोलने लगे जैसे कांग्रेस के प्रवक्ता हों। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने बयान जारी करते हुए कहा, 'अगले चुनाव में क्या होगा इस बारे में किसी की राय पर हम कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने नहीं जा रहे हैं। यह उनका निर्णय है। हर नागरिक किसी को वोट देने के लिए स्वतंत्र है। कांग्रेस सिर्फ अपना काम करेगी, अपने कर्तव्य का निर्वाह करेगी और जब कर्तव्य पूरा हो जाएगा तो कांग्रेस फिर जनता के बीच जाएगी। फैसला जनता करेगी। हमने कहा है कि अगले सत्र में हम न सिर्फ एक विधेयक (लोकपाल) ला रहे हैं बल्कि कई और विधेयक भी लाने वाले हैं।'

 

केंद्रीय कार्मिक मामलों के राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा, 'स्थायी समिति ने लोकपाल विधेयक के प्रारूपों को परखने का कार्य पूरा कर लिया है। सिफारिशें तैयार करने का कार्य अंतिम चरण में है। इस विधेयक को संसद के शीतकालीन सत्र में लाना हमारी प्रतिबद्धता है। इस विधेयक के लिए हम सभी राजनीतिक दलों और सांसदों का हम समर्थन चाहते हैं।'

 

इन मंत्रियों के बयान से इतर देखें तो माजरा कुछ और ही लगता है। लोकपाल विधेयक पर गौर कर रही संसद की स्थायी समिति के कार्यकाल को एक महीने यानी 7 दिसंबर तक के लिए विस्तार दे दिया गया है। ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि 21 दिसंबर तक चलने वाले सत्र में क्या लोकपाल बिल पास हो पाएगा। सरकार भी संसद में इस विधेयक को तभी पेश कर सकती है जब स्थायी समिति अपनी सिफारिशें पेश करेगी। अगर समिति 7 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट पेश करती है तो संसद के शीतकालीन सत्र के बाकी बचे दो हफ्ते में यह बिल संसद में पेश होकर पास हो पाएगा, यह बड़ा सवाल है।

 

नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज अलग ही राग अलाप रही हैं। माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट ट्विटर पर सुषमा ने लिखा, 'संसद का शीतकालीन सत्र 22 नवंबर को शुरू होने जा रहा है। मैंने तेलंगाना और बढ़ती मंहगाई पर चर्चा के लिए नोटिस दिया है। लोकसभा में मेरी पार्टी के साथी भ्रष्टाचार, कालाधन, मणिपुर में चल रही नाकेबंदी, केंद्र-राज्य संबंध, कश्मीर, भारत-पाक संबंधों और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर नोटिस दाखिल कर रहे हैं। सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) को लेकर उठे विवाद पर अलग से चर्चा कराने की मांग भाजपा करेगी।' भाजपा के एजेंडे में लोकपाल शब्द नहीं है, न ही खाद्य सुरक्षा बिल और महिला आरक्षण बिल को लेकर पार्टी की ओर से कोई गारंटी दी है।

 

22 नवम्बर से शुरू हो रहा संसद का यह शीतकालीन सत्र 21 दिसम्बर तक चलेगा। महीने भर चलने वाले इस सत्र के दौरान कुल 21 बैठकें होंगी। वामदल और भाजपा संसद में एक बार फिर 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले को उठाने का प्रयास करेंगे। इस मामले में गृह मंत्री पी. चिदंबरम के इस्तीफे की मांग की जा रही है। कैश फॉर वोट पर भी भाजपा यूपीए सरकार को घेरने का भरपूर प्रयास करेगी। कालाधन के मुद्दे पर आडवाणी अपना तेवर सत्र के शुरू होने से पहले जनचेतना यात्रा के समापन समारोह के दौरान रामलीला मैदान में दिखा चुके हैं। कहने का मतलब यह कि संसद का शीतकालीन सत्र-2011 भी हंगामे की भेंट चढ़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो फिर संसदीय कार्य मंत्री पवन कुमार बंसल सत्र के दौरान जिन 31 विधेयकों पर चर्चा कराकर उसे पारित कराने की बात कह रहे हैं कैसे संभव हो पाएगा। जबकि इन विधेयकों में कुछ अति महत्वपूर्ण न्यायिक जवाबदेही बिल, महिला आरक्षण बिल, व्हिसल ब्लोअर बिल, पेशन कोष नियामक बिल, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा बिल और उपभोक्ता संरक्षण संशोधन बिल शामिल हैं।

 

बहरहाल, देश की जनता भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण चाहती है। जनता चाहती है कि संसद इस दिशा में अपनी भूमिका निभाए। सरकारी प्रयासों से लोगों का भरोसा उठ चुका है और इसीलिए वह अन्ना हजारे के जनलोकपाल में आस्था जता रही है। लेकिन सरकार की आस्था जनलोकपाल बिल में नहीं है। सो इसकी उम्मीद कम ही दिखती है कि जो लोकपाल कानून सरकार लाएगी वह भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण कर पाएगी। चूंकि भ्रष्टाचार तमाम समस्याओं की जड़ है, इसलिए संसद को हर हाल में सूरत ऐसी बनानी ही होगी जिसमें एक आम आदमी गुजारा कर सके। अगर ऐसा नहीं हो सका तो आम आदमी संसद की सूरत बदलने को बाध्य होगा।

First Published: Tuesday, November 22, 2011, 10:22

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