Last Updated: Sunday, August 18, 2013, 16:02
अतुल सिन्हा‘उम्र के खेल में इकतरफा है ये रस्साकशी
इक सिरा मुझको दिया होता तो इक बात भी थी’
(जन्मदिन पर गुलज़ार साहब का ट्वीट)
एक संवेदनशील शायर और आसपास की दुनिया को बेहद करीब से देखने वाले गुलज़ार साहब के लिए जन्मदिन का मायना भले ही ये हो सकता है लेकिन अपने बेहतरीन लफ्ज़ों की बदौलत उन्होंने साहित्य और संगीत को जो दिया है, वो एक बेमिसाल ख़ज़ाना है।
गुलज़ार यानी संपूर्ण सिंह कालरा को एक अलग पहचान बेशक फिल्म इंडस्ट्री से मिली हो लेकिन उनके भीतर का कवि और लेखक छोटी सी उम्र में ही आकार लेने लगा था। तब जब वो मुंबई के एक गैराज में मैकेनिक का काम करते थे। जिसने नन्हीं सी उम्र में आज़ादी के आंदोलन का दौर देखा हो और जिसने अपनी किशोरावस्था में विभाजन का दर्द महसूस किया हो और जिसने भरे पूरे परिवार में अकेलेपन का मर्म सहा हो। उसके हर लफ्ज़ में वो कशिश साफ़ झलकती है।
उनकी रचनाओं के चंद नमूने देखिएः-
वो जो शायर था, चुप सा रहता था..., ज़िन्दगी यूं ही बसर तन्हा..., आंखों में जल रहा है क्यूं बुझता नहीं धुआं..., हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं तोड़ा करते..., मौत तू एक कविता है और हिन्दुस्तान में दो हिन्दुस्तान दिखाई देते हैं..., इन शीर्षकों से ही आप गुलज़ार को समझ सकते हैं। उनके भीतर की गहराई को महसूस कर सकते हैं। फिल्मों में लिखे उनके गीतों में तो उनकी दुनिया साफ दिखती ही है।

रूपयों की चकाचौंध और बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड के दबदबे में बनने वाली फिल्मों से दूर क्या गुलज़ार को ऋषिकेश मुखर्जी, बासु चटर्जी, मृणाल सेन, सत्यजीत रे की कतार में शामिल कर सकते हैं? मेरा मानना है कि गुलज़ार इन सबसे कहीं ऊपर हैं। समकालीन सिनेमा और समाज के बेहद करीब और साहित्य से कहीं और गहरे जुड़े हुए। इसलिए भी कि वो महज़ फिल्मकार नहीं हैं। उनमें जितनी वैराइटी और वैरिएशन्स हैं वो फिलहाल तो किसी में नज़र नहीं आता– साहित्यकार, कहानीकार, कवि, शायर, गीतकार और तरक्कीपसंद सोच के साथ लगातार काम करने वाले एक बेहतरीन और सुलभ व्यक्तित्व। गुलज़ार हमेशा उम्मीदों से भरे हैं और उन्हें अकेलेपन भी एक पूरा हिन्दुस्तान नज़र आता है।
उनकी चंद लाइनें देखिएः-
हिंदुस्तान में दो-दो हिंदुस्तान दिखाई देते हैं
एक है जिसका सर नवें बादल में है
दूसरा जिसका सर अभी दलदल में है,
एक है जो सतरंगी थाम के उठता है
दूसरा पैर उठाता है तो रुकता है
फिरका-परस्ती तौहम परस्ती और गरीबी रेखा
एक है दौड़ लगाने को तय्यार खड़ा है
‘अग्नि’ पर रख पर पांव उड़ जाने को तय्यार खडा है
हिंदुस्तान उम्मीद से है!
और यही उम्मीद गुलज़ार को हिन्दुस्तान की सोंधी मिट्टी की खुशबू से जोड़ता है, एक आम आदमी से जोड़ता है, संवेदना और तरक्की की नई इबारत लिखता है और बेशक हम सबमें एक नई ऊर्जा भरता है। गुलज़ार साहब के जन्मदिन पर उनके जिस ट्वीट का ज़िक्र हमने सबसे पहले किया। उसके जवाब में यही कहना चाहूंगा
उम्र के हर पड़ाव पर नए मंज़र हैं,
उस मंज़र में ज़िंदगी के नए एहसास हैं।
जन्मदिन मुबारक गुलज़ार साहब...
(लेखक ज़ी मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़, राजस्थान के आउटपुट एडिटर हैं)
First Published: Sunday, August 18, 2013, 15:55