जलवायु वार्ता को बचाने का प्रयास, पर नहीं बन पाई सहमति

जलवायु वार्ता को बचाने का प्रयास, पर नहीं बन पाई सहमति

जलवायु वार्ता को बचाने का प्रयास, पर नहीं बन पाई सहमतिदोहा : कतर ने दोहा दौर की जलवायु वार्ता के विफल होने के आसार को देखते हुए इसे बचाने के लिए हताशापूर्ण उपाय करने शुरू कर दिये। उसने एक ऐसे समझौते की पेशकश की है जो कम महत्वाकांक्षी है लेकिन उसमें क्योतो प्रोटोकाल और आगे होने वाली बातचीत की संभावनाओं को बरकरार रखा गया है। दोहा दौर की वार्ता के पटरी से उतर जाने के बाद कतर के इस प्रयास को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह बैठक कल शाम को ही खत्म होनी थी लेकिन यह निर्धारित समय से आगे खिंच गयी। लेकिन आज शाम तक इसमें कोई सहमति नहीं बन पायी। यह घटनाक्रम वार्ताकारों द्वारा रात भर जटिल ब्यौरों और सभी को स्वीकार्य तथ्यों को लेकर किये गये विचार विमर्श के बात हुआ।

कांफ्रेस आफ पार्टीज के अध्यक्ष अब्दुल्ल बिन हमद अल अतिया ने कहा कि काफी लंबा समय लगा गया। वार्ता पर आज भी अनिश्चितता के बादल बरकरार रहे क्योंकि अमेरिका के नेतृत्व में धनी देशों ने गरीब देशों की इस मांग के आगे झुकने से इंकार कर दिया कि वे वैश्विक तापमान की समस्या से पृथ्वी ग्रह को बचाने के लिए ज्यादा जिम्मेदारी निभाये। विवाद के केन्द्र में गरीब देशों की मांग है जिसमें समस्याओं को कम करने और सुधारात्मक कदम उठाने के कदमों के वित्त पोषण तथा जलवायु के कारण होने वाले नुकसान की क्षतिपूर्ति का मुद्दा शामिल है।

तीन अलग मंचों पर चल रहे विचार विमर्श के विषयों पर पिछले कुछ दिनों में कई बार चर्चा और सलाह-मशविरा हो चुका है। लेकिन कल रात यह वार्ता पटरी से उतर गयी क्योंकि विकसित देश इस बात पर जोर दे रहे हैं कि दीर्घकालिक सहयोगात्मक कार्य मंच, जिसे एलसीए भी कहा जा रहा है, की कार्यवाही दोहा में बंद हो गई। इसमें विकासशील देशों की शिकायत है कि उनकी चिंताओं का निराकरण नहीं हो पाया। बातचीत का मसौदा तैयार करने में भी काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। बार बार संशोधनों के प्रस्ताव आने के बावजूद अमीर और गरीब देशों के बीच दीर्घकालिक सहयोगात्मक कारवाई ‘एलसीए’ पर सहमति नहीं बन पाई। दीर्घकालिक सहयोग के इस मुद्दे की बातचीत को दोहा में ही पूरा करने का कार्यक्रम था।

अमेरिका और यूरोपीय संघ जहां एलसीए मुद्दे को जल्द पूरा करने पर जोर दे रहे हैं वहीं भारत और चीन सहित विकासशील देशों का तर्क है कि इसमें वित्तीय तथा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सहित कई महत्वपूर्ण मुद्दों का समुचित हल नहीं हो पाया है।

भारत और अन्य विकासशील देशों का कहना है कि एलसीए ट्रैक को सफलतापूर्वक बंद करने के लिए उसके तहत आने वाले सभी मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र के ढांचे में एक अन्य प्रक्रिया के तहत लाए जाने की जरूरत है। भारत के एक वार्ताकार ने कल कहा, ‘‘भारत ने हमेशा एक व्यापक पैकेज की बात की है तथा एलसीए के तहत कोई भी मुद्दा बातचीत से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए।’’

पिछले कुछ दिनों से यह बात महसूस की जा रही थी कि विकसित देश किसी न किसी तरह से एलसीए ट्रैक को बंद करना चाहते हैं और ऐसे मुद्दों को हाशिये पर डालना चाहते हैं जो गरीब देशों के लिए महत्वपूर्ण है। रात भर वार्ताकारों के बीच चली बातचीत के बाद प्रगति के कोई संकेत नहीं होने के कारण अचानक शाम चार बजे अवगत कराया गया कि स्थानीय समयानुसार सुबह साढ़े सात बजे बातचीत के नतीजों का खुलासा किया जायेगा। पहले उम्मीद की जा रही थी कि यह बैठक कल रात होगी। अचानक की गयी घोषणा से यह स्पष्ट हो गया है कि वार्ता में मतभेद दूर नहीं हो पाये।

जानकार सूत्रों का कहना है कि अमेरिका इस मुद्दे पर तैयार किये जा रहे मसौदे से विकासशील देश की चिंताओं वाले कई क्षेत्रों को हटाने पर जोर दे रहा है जिससे कि यह समझौता होना नामुमकिन होता जा रहा है। वार्ता कल खत्म होने वाली थी लेकिन पूरी रात तथा तड़के तक खिंचती चली गई। इस साल की जलवायु वार्ता की एक और बड़ी बात यह रही कि गरीब देशों ने जलवायु परिवर्तन से प्रभावित गरीब देशों की मदद के लिए कोई वित्तीय प्रतिबद्धता नहीं जताई। खुद अमेरिका भी बातचीत में नुकसान और क्षति के मुद्दे के हल के लिए उत्सुक नहीं दिखा। (एजेंसी)

First Published: Sunday, December 9, 2012, 00:03

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