`आतंकी और जघन्य अपराधों के दोषियों को मौत की सजा उचित`

`आतंकी और जघन्य अपराधों के दोषियों को मौत की सजा उचित`

`आतंकी और जघन्य अपराधों के दोषियों को मौत की सजा उचित` नई दिल्ली : अधिक से अधिक देशों के मौत की सजा को खत्म करने के बावजूद उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को आतंकवादी गतिविधियों और जघन्य अपराधों यथा दहेज के लिए वधू को जलाने, बर्बर हत्या और निर्दोष लोगों की हत्या जैसे अपराधों के लिए दोषी व्यक्ति को मौत की सजा दिए जाने को उचित ठहराया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर हत्या बेहद बर्बर या कायरतापूर्ण तरीके से की जाती है जो समुदाय में बेहद रोष को जन्म देता है तो अदालत मौत की सजा देने में पूरी तरह न्यायोचित होगी। न्यायालय ने कहा कि अगर धन या अन्य तरह के लालच की पूर्ति के लिए वधू को जलाकर हत्या की गई हो तो मौत की सजा देने के लिए पर्याप्त औचित्य होगा। अगर अपराध की भयावहता इस प्रकार की है कि अकारण बड़ी संख्या में निर्दोष लोग मारे गए हों तो मौत की सजा देना उचित होगा।

हालांकि, न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की पीठ ने इस बात पर गौर किया कि तकरीबन 140 देशों ने इस सोच के साथ मौत की सजा समाप्त कर दी है कि मानव जीवन शायद प्रकृति, जिसे अनेक लोग सर्वशक्तिमान बताते हैं, का सर्वाधिक बेशकीमती तोहफा है। यही कारण है कि यह दलील दी जाती है कि अगर आप जीवन नहीं दे सकते तो आपको इसे लेने का कोई अधिकार नहीं है। और अपराध किस प्रकृति का था और वह कितना भी गंभीर था इसके बावजूद मौत की सजा नहीं दी जानी चाहिए। (एजेंसी)

First Published: Saturday, April 13, 2013, 00:16

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