उत्‍तराखंड त्रासदी: पहाड़ से लौट रही आपदा, भयावहता व धैर्य की दास्‍तां

उत्‍तराखंड त्रासदी: पहाड़ से लौट रही आपदा, भयावहता व धैर्य की दास्‍तां

उत्‍तराखंड त्रासदी: पहाड़ से लौट रही आपदा, भयावहता व धैर्य की दास्‍तां ज़ी मीडिया ब्‍यूरो/एजेंसी

नई दिल्ली/देहरादून : कई दिनों तक भूखे-प्यासे छोटे से पहाड़ी रास्ते के सहारे आपदाग्रस्त इलाके से शुक्रवार को सुरक्षित निकल आए राजस्थान के एक व्यापारी उत्तराखंड में मौत और विध्वंस मचाने वाली प्राकृतिक आपदा में मानवीय साहस की जीती जागती कहानी का प्रतीक हैं। पहाड़ी राज्य में जिस तरह की तबाही मची उसका ब्‍यौरा दिल दहलाने वाला है।

विनोद शर्मा (36) ने जो कुछ बताया उसकी पुष्टि हिंदू कार्यकर्ता ने भी की। उन्होंने बताया कि पिछले सप्ताह अप्रत्याशित वर्षा और बादल फटने के तुरंत बाद यदि यही राहत अभियान शुरू कर दिया गया होता तो कई जानें बचाई जा सकती थी। राजस्थान निवासी शर्मा केदारनाथ का दर्शन करने के बाद रामबाड़ा में रुके हुए थे कि तभी जोरों की बारिश शुरू हुई जिसमें लोग-बाग से लेकर सबकुछ बहने लगा। पानी का बहाव इतना तेज था कि घर, होटल, दुकानें और पहाड़ी रास्ता तक बह गया। जिस सरकारी होटल में वे छिपे थे वह पलक झपकते ही ध्वस्त हो गया।

अपने सहज ज्ञान से निर्देशित शर्मा और उनके परिवार के लोगों ने सड़क के उसी छोटे से हिस्से पर आश्रय लिया जहां पहले से ही करीब 150 लोग रुके हुए थे। राहत मिलने की उम्मीद में सभी बारिश में पूरी रात तर ब तर होते रहे। देहरादून पहुंचने के तुरंत बाद शर्मा ने बताया कि कुछ देर बाद हम में से अधिकांश ने पहाड़ में बच गई दो छोटी सी झोपड़ी में आश्रय ले लिया। वहां हमने एक रात गुजारी। अगले दिन अचानक पहाड़ों से चट्टानें खिसकनी शुरू हो गई जिसकी चपेट में आकर दो लोगों की मौत हो गई। जान बचाने के लिए हम वहां से भाग खड़े हुए। अब हम खुले में आ गए थे और यही प्रार्थना कर रहे थे कि अब और कोई मुसीबत नहीं आए। हमारे पास खाने को कुछ भी नहीं था। पशुओं के चारे के लिए रखे गए दाने को पकाने के लिए हम आग जलाने में कामयाब रहे। तीसरे दिन हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था।

शर्मा ने कहा कि विश्वास कीजिए जहां हम आश्रय लिए हुए थे वहां चारों तरफ शव ही शव बिखरे पड़े थे। शव सड़ने लगे थे जिसके दरुगध को सहना असंभव था। शर्मा और अन्य ने रामबाड़ा के ऊपर से हेलीकाप्टर गुजरते देखा और उन्हें हैरत हुई कि मदद की आशा में उन लोगों के कपड़े लहराने के बाद भी कोई उन्हें बचाने क्यों नहीं आ रहा है। उस समय उन्हें यह नहीं पता था कि हेलीकाप्टर बुरी तरह तबाह हो चुके केदारनाथ की तरफ जा रहे थे। विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की देहरादून इकाई के अध्यक्ष चंद्रगुप्त विक्रम ने बताया कि महज 15 मिनट के भीतर केदारनाथ में जिंदगियां खत्म हो गईं। शर्मा और अन्य ने बताया कि आपदा में मारे गए लोगों की संख्या आधिकारिक संख्या 200 से कहीं ज्यादा है।

उनलोगों के मुताबिक जिस समय आपदा आई उस समय केदारनाथ में स्थानीय लोगों, तीर्थयात्रियों व अन्य समेत कम से कम 15000 लोग मौजूद थे। शर्मा ने कहा कि कुछ लोगों को छोड़ मनुष्यों और पशुओं का कहीं कोई निशान नहीं बचा। फिलहाल कोई भी मरने वाले और लापता लोगों की सही संख्या नहीं बता सकता। यह असंभव है।

उत्तराखंड में सिख तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब के आसपास बाढ़ से तहस नहस हो चुके क्षेत्र से राज्य परिवहन की दो बसों से यहां पहुंचे 100 से अधिक तीर्थयात्री भयावह अनुभव से अभी भी उबर नहीं पाए हैं। तीर्थयात्रियों में शामिल मोगा निवासी 14 वर्षीय जितेंद्र सिंह ने कहा कि मुझे केवल इतना ही याद है कि हेमकुंड साहिब के आसपास के क्षेत्रों में पानी मिनटों में बढ़ने लगा था। किशोर ने कहा कि मैंने वाहनों को पानी की तेज धारा में बहते देखा। उन वाहनों में तीर्थयात्री भरे हुए थे। तीर्थयात्रियों ने सैन्यकर्मियों के राहत एवं बचाव कार्य की प्रशंसा की।

सुनाम के गुरपाल सिंह ने कहा कि जब हमें ठंड लग रही थी तब जवानों ने हमें अपनी वर्दी भी दे दी। जब पानी बढ़ने लगा, मैं और कुछ अन्य लोग एक पहाड़ी के ऊंचाई वाले स्थान पर चढ़ गए। एक अन्य तीर्थयात्री जसवंत सिंह ने कहा कि वहां रात के समय पूरा अंधेरा था क्योंकि जनरेटरों में तेल खत्म हो गया।

भूस्खलन और प्रलंयकारी बाढ़ से बचने के लिए होटल से सेना के शिविरों के बीच भागती दीक्षा के लिए इस पहाड़ी सुनामी से बच जाना किसी चमत्कार से कम नहीं था, जो चार दिन तक एक वक्त खाकर जिंदगी के लिए संघर्ष करती रही।

तकरीबन 30 साल की दीक्षा ने इस अनुभव को खौफनाक करार देते हुए कहा कि उसके परिवार को उसकी खर खबर अब तक नहीं मालूम। वह बताती हैं कि हमें चार दिन में सिर्फ एक वक्त खाना मिला। भूस्खलन हो रहा था, हम होटल से सेना के शिविरों की तरफ दौड़े। यह खौफनाक था, मेरे परिवार को पता तक नहीं था कि मैं कहां हूं। मुंबई के रहने वाले स्वपन मजूमदार आध्यात्मिक संतोष के लिए धार्मिक यात्रा पर निकले थे, लेकिन उन्हें इस दौरान जो कुछ देखने को मिला उसे वह जीवनभर नहीं भूल पाएंगे।

स्वपन कहते हैं कि मैं तीर्थ यात्रा करने के लिए मुंबई से आया था, लेकिन यहां गंगोत्री में फंस गया और मुझे नहीं पता कि मैं घर वापस कैसे जा पाऊंगा। एक अन्य व्यक्ति ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि उसने इस आपदा में अपने परिवार के सब सदस्य खो दिए हैं। उस व्यक्ति की बेबसी और पीड़ा हर सांत्वना से परे थी। वह फफक फफककर रो रहा था और देहरादून ले जाए जाने की गुहार लगा रहा था।

First Published: Friday, June 21, 2013, 23:04

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