कुडनकुलम संयंत्र में सुरक्षा से समझौता नहीं : SC

कुडनकुलम संयंत्र में सुरक्षा से समझौता नहीं : SC

कुडनकुलम संयंत्र में सुरक्षा से समझौता नहीं : SCनई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि यदि कुडनकुलम परमाणु उर्जा संयंत्र में सुरक्षा के अनिवार्य उपाय नहीं किये गये तो इस संयंत्र को चालू करने से रोका जा सकता है।

न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि संयंत्र और इसके आसपास रहने वाले लोगों की सुरक्षा के प्रति उनकी सर्वाधिक चिंता है।

न्यायाधीशों ने इसके साथ ही इस विवादास्पद परियोजना को पर्यावरण मंजूरी को चुनौती देने वाली याचिका पर केन्द्र सरकार और तमिलनाडु राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नोटिस जारी किया है। इस मामले में अब चार अक्तूबर को आगे सुनवाई होगी।

न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यदि हमें यह पता चला कि परियोजना स्थल पर सुरक्षा के अनिवार्य उपाय नहीं किये गये हैं तो हम इस संयंत्र को चालू होने से रोकने में जरा भी संकोच नहीं करेंगे।’’

न्यायालय में मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता जी सुन्दरराजन की याचिका पर सुनवाई हो रही थी। उच्च न्यायालय ने इस संयंत्र पर किसी प्रकार की पाबंदी लगाने से इंकार कर दिया था। इससे पहले, न्यायालय ने परमाणु उर्जा संयंत्र में ईंधन भरने की प्रक्रिया पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था लेकिन वह सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर विचार करने पर सहमत हो गया था।

याचिकाकर्ता का दावा है कि जापान के फुकुशीमा में पिछले साल हुए परमाणु हादसे के बाद परमाणु उर्जा नियामक बोर्ड ने कुडनकुलम परमाणु उर्जा संयंत्र में सुरक्षा के लिए 17 सिफारिशें की थीं लेकिन अभी तक इन पर अमल नहीं किया गया है।

याचिका में कहा गया था कि सरकार ने अभी तक सुरक्षा के छह उपायों पर ही अमल किया है और शेष सिफारिशें लागू करने में सरकार को दो साल तक का समय लग सकता है।

सुन्दरराजन ने इस परियोजना को पर्यावरण मंजूरी देने की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए दावा किया है कि 1989 के बाद से पर्यावरण मानदंडों में व्यापक बदलाव हुआ है। इस परियोजना को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 1989 में ही हरी झण्डी दी थी।

याचिका में कहा गया है, ‘‘ इस परियोजना को मंजूरी दिये जाने के वक्त न तो 1991 की तटीय नियामक क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना थी और न ही 1994 की अनिवार्य जन सुनवाई की अधिसूचना और पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट थी।’’ याचिका में कहा गया है कि इस परियोजना की 1988 की मूल योजना में भी अनेक बदलाव हो चुके हैं जिसका पर्यावरण के संदर्भ में व्यापक महत्व है। याचिका के अनुसार 1989 में एक औपचारिकता के रूप में पर्यावरण मंजूरी दी गयी थी और ऐसा करते समय ठीक से विचार नहीं किया गया था। (एजेंसी)

First Published: Thursday, September 27, 2012, 19:08

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