Last Updated: Wednesday, October 3, 2012, 10:36
हालांकि, राजशाही बीते दौर की बात है, पर देश के राजनेता आज अपनी ‘राजशाही’ पर कई गुना व्यय कर रहे हैं। यह व्यय कुछ ऐसा है, जिस पर मन-मंथन करने के बाद कलेजा मुंह को आ जाता है। आम जनता की गाढ़ी कमाई पर राजशाही का सुख भोग रहे माननीयों को इस बात की तनिक भी परवाह नहीं है कि उनके कारनामों से खजाने का समीकरण बिगड़ रहा है। राजशाही सरीखे शौक होंगे तो शाहखर्ची होना लाजिमी ही है। इस पर लगाम लगाए तो कौन?