भ्रष्‍टाचार एवं बेरोजगारी बना अहम मुद्दा

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 28 राज्य और सात केंद्र शासित प्रदेश हैं। इन प्रदेशों में भी प्रति पांच साल में जनता के द्वारा राज्य की शासन व्यवस्था सुचारू रुप से चलाने के लिए सरकार चुनी जाती है। इसी क्रम में चार नवंबर को हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। जनता को नेतृत्व प्रदान करने के लिए राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने उम्मीदवार विधानसभा क्षेत्रों में खड़ा करती हैं। राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवार अपनी जीत सुनिश्चत करने के लिए जनता से वोट मांगती है क्योंकि जनता ही अपने मत से उम्मीदवार को जीताती है।

उम्मीदवार जब जनता के पास वोट मांगने जाते हैं तो वादा करते हैं कि उनकी आधारभूत समस्याएं जैस
े बिजली, पानी, बेरोजगारी, सड़क-परिवहन, ईंधन आदि को दूर कर देंगे। देश के अन्य राज्यों की भांति हिमाचल प्रदेश के लोगों को भी अनेक समस्याओं से रोज रू-ब-रू होना पड़ता है।

भ्रष्टाचार इस विधान सभा चुनाव का प्रमुख मुद्दा है। भाजपा ने भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस पर हमला बोल दिया है। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों, 2जी घोटाला, कॉमनवेल्थ घोटाला, कोल घोटाला को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। धूमल का कहना है कि केंद्र सरकार के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण उसका असर प्रदेश के विकास पर पड़ रहा है। दूसरी ओर प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस मूलभूत समस्यों को उठा रही है। आम जनता चाहती है कि क्षेत्र और राज्य के साथ-साथ उसका भी विकास हो तथा शासन और प्रशासन भ्रष्टाचारमुक्त हों।

इस समय देश की जनता पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमत बढ़ने से परेशान है। इसकी कीमत बढ़ने से देश में खाने-पीने की चीजों के दाम भी आसमान छूने लगे। जिससे महंगाई बेताशा बढ़ी है। भाजपा महंगाई के लिए कांग्रेस की केंद्र सरकार को जिम्मेदार बता रही है। जबकि यूपीए-2 सरकार का कहना है कि सरकार की नई पॉलिसी से देश में बेरोजगारी दूर होगी।

हिमाचल प्रदेश की करीब आधी आबादी युवाओं की है। युवाओं के सामने अभी सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। प्रदेश में रोजगार सृजन की जो रफ्तार होनी चाहिए वह नहीं है। फलस्वरुप बड़ी संख्या में युवा बेरोजगार हैं। अपनी बेरोजगारी दूर करने के लिए उन्हें दूसरे राज्यों और शहरों का रुख करना पड़ता है। जिसकी वजह से कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

सब्सिडी वाले गैस सिलेंडरों में कटौती के बाद कांग्रेस की विरोधी पार्टियों को सबसे बड़ा मुद्दा मिल गया है। चूंकि यह मुद्दा सीधे तौर पर लोगों के घरेलू बजट से जुड़ा है। केंद्र सरकार के इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरने के बाद भाजपा अब इस आंदोलन को और तेज करने जा रही है। इसलिए भाजपा ने गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव में इसे बड़े मुद्दे के तौर पर उठाने का फैसला किया है।

शिक्षा की सुविधाएं अगर कहीं बहुत अच्छी हैं तो कहीं कमजोर। प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा की सुविधा बेहतर है परन्तु यहां पढ़ने के लिए मोटी फीस अदा करनी होती है। गरीबों के बच्चे इस स्कूलों कें दाखिला नहीं ले पाते हैं। प्रदेश भर में सरकारी स्कूलों की बिल्डिंग तो है परन्तु शिक्षकों की संख्या और समुचित व्यवस्था की भारी कमी है। जिससे गरीबों के बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं मिल पाती है।

हिमाचल के सुदूर क्षेत्रों के लिए यातायात 21वीं सदी में भी एक बड़ी समस्या है। रेल की पहुंच तो वहां नाममात्र की ही है, सुदूर क्षेत्रों तक सड़क मार्ग से भी पहुंचना मुश्किल है। जहां सड़कें हैं, वहां भी बसों का आवागमन बहुत कम है। यह लोगों के लिए बड़ी मुश्किल का कारण है।

ठीक इसी तरह पूरे राज्य में छोटे-बड़े चिकित्सा केंद्रों की तो लंबी कतार है, लेकिन अधिकतर केंद्रों पर न तो पर्याप्त चिकित्सकों की तैनाती हो सकी है और न ही वहां जांच की जरूरी सुविधाएं हैं। आपात स्थिति में अकसर लोगों को वहां से मरीज को लेकर चंडीगढ़, लुधियाना या जालंधर आना पड़ता है। इन समस्याओं का जिक्र तक कोई राजनीतिक दल पूरे चुनाव के दौरान नहीं करता।

इसके अलावा इस पहाड़ी राज्य की बहुत बड़ी समस्या आवारा पशुओं को लेकर है। मुख्य रूप से बंदर यहां हर साल करोड़ों की फसल बर्बाद कर देते हैं। कुछ जगहों पर तो किसानों ने इनके डर से फसलें उगानी ही छोड़ दी हैं। यह मुद्दा कई बार विधानसभा में भी उठाया जा चुका है, लेकिन इसका कोई सार्थक और प्रभावी समाधान आज तक नहीं हो सका।

उपर्युक्त तमाम समस्याएं हैं जिसका असर हिमाचल प्रदेश की जनता पर प्रत्यक्ष और परोक्ष रुप से पड़ता है। इस विधानसभा चुनाव में सभी उम्मीदवार अपने-अपने चुनाव क्षेत्र के मतदाताओं को रिझाने के लिए वादे कर रहे हैं।

First Published: Thursday, November 1, 2012, 17:14

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