स्थानीय मुद्दों पर हावी आरोप-प्रत्यारोप

हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव-प्रचार जोरों पर है। राज्य की दोनों ही प्रमुख पार्टियां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए कमर कस चुकी हैं। दोनों ही दल अपने चुनावी घोषणापत्र में कई लोक-लुभावन वादे किए हैं लेकिन चुनावी महासमर के इस दौर में असली मुद्दे गौण होते दिख रहे हैं जबकि व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप हावी हो गए हैं।

विधानसभा चुनाव में इस बार भी कई प्रमुख स्थानीय मुद्दे हैं जिन पर जनता का ध्यान है। बेरोजगा
री, विकास, नए जिलों का निर्माण, रेल लाइनों का विस्तार, कूल्लू में सड़क निर्माण, उद्योग नीति, अवैध भवनों के नियमितिकरण सहित कई स्थानीय मुद्दे हैं जिन पर जनता राजनीतिक पार्टियों की स्पष्ट राय और समस्याओं का समाधान चाहती है।
लेकिन इस बार के चुनाव में सियासी पार्टियां अपने फायदे के मुद्दों को ही प्रमुखता देते दिख रही हैं। जनता के स्थानीय मुद्दों पर महंगाई और भ्रष्टाचार ज्यादा हावी होते नजर आ रहे हैं। चूंकि, महंगाई और भ्रष्टाचार के मसले पर केंद्र की यूपीए-2सरकार एवं कांग्रेस पार्टी घेरे में है। इसलिए राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा कांग्रेस और यूपीए पर जमकर हमला कर रही है।

राज्य में बेरोजगारी एक अहम मुद्दा है और भाजपा इसे लेकर बैकफुट पर है। कांग्रेस बेरोजगारी और विकास को मुद्दा बनाकर भाजपा पर हमले कर रही है तो दूसरी ओर महंगाई और भ्रष्टाचार के मसले पर वह रक्षात्मक है। जबकि भाजपा इन दोनों मुद्दों पर ही कांग्रेस पर हमले कर रही है।

नए जिले के निर्माण को लेकर जनता कितनी सजग है, इसे ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कुछ दिनों पहले कहा कि यदि लोग मांग करते हैं तभी नए जिले बनाए जाएंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि अवैध भवनों के नियमितिकरण के मसले को देखते हुए नीति में सुधार किया जाएगा।

दोनों पार्टियों ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कल्याणकारी योजनाएं शुरू करने के साथ ही बेरोजगारी दूर करने की बात कही है लेकिन जनता के मुद्दे और चुनावी बहस घोषणापत्र में नजर नहीं आ रहे हैं।

भ्रष्टाचार, जालसाजी और आय कर के मामलों को लेकर भाजपा ने कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष वीरभद्र सिंह पर हमला बोला है और हाल के ‘वीबीएस’ प्रकरण ने भी प्रदेश के चुनावी माहौल में एक नया रंग दे दिया है। वीरभद्र के इस्पात मामले ने भाजपा को बैठे-बिठाए मुद्दा दे दिया।

भाजपा ने अपने पांच वर्षों की उपलब्धियां गिनाते हुए चुनाव प्रचार में अपना सारा ध्यान वीरभद्र सिंह पर केंद्रित कर दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय और प्रदेश दोनों स्तर के नेताओं ने वीरभद्र को ही निशाने पर लिया है।

भाजपा की ओर से होने वाले हमलों और आरोपों को वीरभद्र सिंह ने खारिज कर दिया है। उन्होंने भाजपा नेताओं पर आरोप लगाया कि वे उनके चरित्र की हत्या करने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा के आरोपों से तिलमिलाए वीरभद्र सिंह ने कहा कि वह इस मामले में कानूनी कार्रवाई करेंगे।

चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि दोनों ही पार्टियां व्यक्तिगत हमलों का सहारा लेकर आम मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना चाहती हैं। चुनाव प्रचार के समय में लोग यह जानना चाहते हैं कि दोनों प्रमुख पार्टियां का भविष्य का एजेंडा क्या है। हिमाचल कांग्रेस के केंद्रीय प्रभारी बीरेंद्र सिंह ने कहा है कि देश में आसमान छू रही महंगाई और भ्रष्टाचार का विधानसभा चुाव पर कोई असर नहीं होगा। उन्होंने दावा किया कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों और धूमल सरकार की पांच वर्ष की कारगुजारियों को लेकर लड़े जा रहे हैं। बीरेंद्र सिंह ने एफडीआई का भी समर्थन किया और कहा कि इसका सबसे अधिक फायदा हिमाचल के किसानों तथा बागवानों को होगा।

दोनों ही पार्टियां भले ही एक दूसरे में व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप लगाकर अपना रजनीतिक हित साधने में जुटी हों लेकिन जनता जानना चाहती है कि राजनीतिक दल उनके स्थानीय मुद्दों का समाधान किस तरीके से करना चाहते हैं।
राजनतिक दलों को भी बात का पता है कि जनता में मत के अधिकार के प्रति चौकसी बढ़ रही है। मतदान प्रतिशत के आंकड़े लुढ़कने के बजाय बढ़ते दिख रहे हैं और मुद्दों के मर्म को समझ कर मतदाता मूल तक पहुंचने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में कुछ बातें ऐसी भी होनी चाहिए कि मुद्दों पर दलों की राय क्या है।

जनता जानना चाहती है कि रेल बजटों से हिमाचल प्रदेश क्यों नदारद रहता आया है? लेह तक रेल मार्ग क्यों नहीं स्वीकारा गया? जितने राष्ट्रीय संस्थान हिमाचल प्रदेश में खुले उनमें क्या काम पूरी तरह शुरू हो गया है? सौ सवा सौ वर्ष पूरे कर चुके जर्जर पुल रणनीतिक महत्व के होते हुए भी कांपने की स्थिति में आकर अनुमानों पर मुहर लगने की प्रतीक्षा क्यों कर रहे हैं? कुछ परियोजनाओं की समयावधि कितनी बार बढ़ाई जाती रहेगी? जनता को बेरोजगारी भत्ते और नौकरियों से संबल मिलना स्वाभाविक है। इस मुद्दों पर पार्टियां क्या रुख अपना रही हैं, इसे मतदाता देख रहा है और खामोश है। मतदाता को चार नवंबर को बोलना है और इस दिन वह अपनी मंशा जाहिर कर देगा।

First Published: Thursday, November 1, 2012, 17:32

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