महंगाई पर बेनी के बयान की सार्थकता

महंगाई पर बेनी के बयान की सार्थकता

महंगाई पर बेनी के बयान की सार्थकतारामानुज सिंह

केंद्रीय इस्पात मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में कहा था कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ने से मैं खुश हूं क्योंकि इससे किसानों को फायदा होता है। उन्होंने कहा, दाल, आटा, चावल और सब्जियां महंगी हो गई हैं। जितनी अधिक कीमतें होंगी, उतना किसानों के लिए अच्छा होगा। पहली बार किसी केंद्रीय मंत्री ने किसानों के हितों के बारे बोला तो बवाल मचने लगा। मीडिया से लेकर राजनीतिक हलकों में बढ़ती महंगाई पर बेनी के बयान की थू-थू हो रही है। भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, जदयू समेत सभी विपक्षी पार्टियां बेनी के महंगाई पर दिये गए बयान को जनविरोधी बता रहे हैं। जबकि कांग्रेस के दूसरे नेता चुप्पी साधे हुए हैं। हां, बेनी ने महंगाई पर जो बयान दिया उसमें थोड़ी स्पष्टता की कमी है। उन्होंने कृषि उत्पादों की कीमत बढ़ने को तो सही ठहराया पर उन्होंने यह नहीं कहा कि कीमत कब बढ़नी चाहिए कब नहीं।

जरा सोचिए, सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश में करीब 65 फीसदी लोग कृषि कार्य से जुड़े हैं, यानी 80 करोड़ लोग कृषि पर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। उनके बच्चे का लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई, परिवार की हर जरूरत की चीजें फसल बेच कर मिले रुपयों से खरीदी जाती हैं। बाजार में साबुन, कपड़े, बाइक, कार, स्कूल-कॉलेज की फीस, कॉस्मेटिक्स, टीवी-फ्रीज, पेट्रोल, डीजल, गैस और खतों में उपयोग होने वाली रसायनिक खादों की कीमतें हर साल कुछ न कुछ बढ़ती ही रहती हैं। लेकिन उस अनुपात किसानों की फसलों के दाम नहीं बढ़ते है। ऐसे में बनी प्रसाद वर्मा द्वारा दिया गया बयान किसानों के लिए संजीवनी से कम नहीं है।

जो भी नेता बेनी के बयान का विरोध कर रहे हैं वे किसानों का हित कभी नहीं चाहते हैं। वो तो सिर्फ ये चाहते हैं किसान हमेशा गरीब बना रहे ताकि चुनाव के समय में उसके हित की बात करके सत्ता हथियाया जा सके। आजादी के बाद से ही किसानों की माली हालत पर देश के नेता सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाते रहे हैं। धरातल पर कुछ नहीं करते। जब भी कोई उसकी हित की बात करता है तो उसका मुंह बंद करा दिया जाता है। इन नेताओं का दोहरा चरित्र सामने आ गया है।

किसान जब फसल की बुआई करते हैं तो सरकार उसी समय फसलों का समर्थन मूल्य तय कर देती है। तैयार आनाज जब किसानों के पास से बाजार में व्यापारियों के पास आ जाता है तब उन आनाजों की कीमतें बढ़ने लगी हैं। जरा गौर कीजिये, किसानों से आनाज खरीदते वक्त खरीद मूल्य तय कर दिया गया था लेकिन आनाज किसानों के घर से व्यापारी के गोदाम आते-आते उसकी कीमत कई गुने बढ़ जाती है। फिर यही उत्पाद बाजार में आम लोगों को रुलाने लगता है। मिसाल के तौर पर इसी साल जनवरी में पंजाब-हरियाणा के किसान जब आलू बेच रहे थे तो व्यापारी आलू को दो से तीन रुपए प्रति किलो से भी कम में खरीद रहे थे जब यही आलू व्यापारी की दूकान में पहूंचने के बाद आज 20 रुपए प्रति किलो बेचा जा रहा है।

असली खेल यहीं हो रहा है। अगर समर्थन मूल्य तय होने के साथ बिक्री मूल्य भी तय कर दिया जाता तो महंगाई आम जनता की कमर नहीं तोड़ पाती। खाने-पीने चीजें इतनी महंगी नहीं होती। किसान भी खुशहाल होते! जो आलू दो रुपए प्रति किलो किसानों से खरीदा गया अगर वही आलू बाजार में परिवहन शुल्क और व्यापारियों के मुनासिब मुनाफे को जोड़कर खरीदते वक्त ही तय कर दिया जाता तो कीमतों में हमेशा एकरुपता बनीं रहती।

देश के तमाम नेता इस समस्या के निदान के बारे में नहीं सोचते हैं। अगर सही मायने में दिल्ली में बैठे ये नेता किसानों की तरक्की के बारे में सोचे तो आज बेनी प्रसाद वर्मा के बयान को गंभीरता से लेते नाकि उस पर राजनीति करते।

First Published: Tuesday, August 21, 2012, 17:12

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