कर्नाटक विधानसभा की बदलेगी तस्वीर |
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प्रवीण कुमार
कर्नाटक के मुख्यमंत्री और भाजपा नेता जगदीश शेट्टार का कहना है कि प्रदेश अब पूरी तरह से भ्रष्टाचार से मुक्त है। सभी भ्रष्टाचारियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। पलटवार करते हुए कांग्रेस से संभावित मुख्यमंत्री सिद्धरमैया कहते हैं कि एक-दो नेताओं पर कार्रवाई कर देने से चेहरे पर लगी कालिख घुलने वाली नहीं है। चार साल येदियुरप्पा और रेड्डी बंधुओं ने ही राज किया है। इन दोनों बयानों पर गौर करेंगे तो इससे यही मालूम पड़ता है कि आगामी 5 मई को होने वाले कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार एक अहम मद्दा है, लेकिन सूबे का सियासी माहौल एक अलग ही तस्वीर पेश करता है जिसमें भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं है और न ही इस चुनाव में कोई लहर है। पूरा का पूरा चुनाव एक अंकगणित और एक समीकरण के तहत होगा जिसमें जातिवाद, स्थानीय मुद्दे और भाजपा की कमजोर नेतृत्व क्षमता का मुद्दा अपनी अहम भूमिका निभाएगा। लेकिन इतना तय है कि चुनाव नतीजों के बाद सत्ता की चाबी कर्नाटक जनता पार्टी के बीएस येदियुरप्पा और जनता दल (एस) के नेता एचडी कुमारस्वामी के हाथ ही होगी।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में किसी भी पार्टी के पक्ष में कहीं कोई लहर नहीं दिखाई दे रही। ऐसे में अंकगणित को लेकर कांग्रेस का नजरिया यथार्थवादी है। राज्य में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का शासनकाल भ्रष्टाचार, अंतर्कलह का पर्याय बना रहा और चार वर्षों के भीतर ही पार्टी को तीन मुख्यमंत्रियों को बदलना पड़ा। कांग्रेस को सात वर्षों के बाद सत्ता मिलने की उम्मीद है, लेकिन राज्य में पार्टी के पक्ष में कोई लहर नहीं दिख रही है और 225 सदस्यों वाली विधानसभा में उसे कितनी सीटें मिलेंगी इसे लेकर वह यथार्थवादी दृष्टिकोण रख रही है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जी. परमेश्वर का कहना है कि पार्टी को 125 से 130 सीटों पर जीत हासिल होगी। विधानसभा में 224 चुने हुए और एक मनोनीत सदस्यों में यह संख्या जादुई आंकड़े 113 से महज 12 से 13 सीट ज्यादा होंगे। विधानसभा में एक सदस्य एंग्लो-इंडियन समुदाय से मनोनीत किया जाता है। सीएनएन-आईबीएन के मत सर्वेक्षण में कांग्रेस को 117 से 129 सीट और भाजपा के 39 से 49 सीट हासिल करने का अनुमान जाहिर किया गया है। एके एंटनी जो चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी की समन्वय समिति के प्रमुख हैं ने बेंगलुरु में कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र जारी करते हुए कहा, `हमारा फीडबैक यही है कि हम राज्य में सरकार बना सकते हैं।`
भाजपा के आंतरिक सर्वे में कांग्रेस को 80 और भाजपा को 70 सीटों पर मजबूत बताया गया है। इस लिहाज से भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले 40 सीटों का नुकसान हो रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की पार्टी कर्नाटक जनता पार्टी के खाते में 35 तथा जनता दल (एस) को 25 सीटों पर मजबूत बताया गया है। बी. श्रीरामालू की पार्टी को 6 सीटों पर मजबूत बताया गया है। 8 सीटों पर निर्दलीय को मजबूत बताया गया है। पिछले चुनाव में भाजपा को 110, कांग्रेस को 80, जेडीएस को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। 6 सीट निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीते थे। भाजपा के सर्वे के लिहाज से बीएस येदियुरप्पा अगली सरकार बनाने में निर्णायक होंगे। इस बात की संभावना प्रबल है कि चुनाव बाद येदियुरप्पा कांग्रेस के साथ हो जाएं। येदियुरप्पा ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि चुनाव बाद किसी भी सूरत में केजीपी भाजपा के साथ नहीं जाएगी। वह जेडीएस के साथ भी किसी तरह का गठबंधन नहीं करेगी। जाहिर है इसके बाद कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को समर्थन देना एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन देखना यह होगा कि येदियुरप्पा सीटों के उस जादुई आंकड़े को छू पाते हैं कि नहीं जिससे वह कांग्रेस से मोलभाव करने की स्थिति में हों।
एक और सर्वे बताता है कि कर्नाटक के मतदाता एक बार फिर से सरकार बदलने की तैयारी में हैं, लेकिन रेस में आगे कही जा रही कांग्रेस की मुश्किलें कम नहीं होने वाली है। क्षेत्र और समुदाय में बंटा कर्नाटक एक बार फिर त्रिशंकु विधानसभा की तरफ बढ़ सकता है। भाजपा की स्थित बेहद खराब नजर आ रही है। ऐसे में, जेडीएस और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और उनके बेटे पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की चुनौती मजबूत दिख रही है। भले ही जेडीएस का असर 100 सीटों से ज्यादा पर न हो लेकिन जातीय समीकरण उनके पक्ष में जा रहा है। देवगौड़ा वोकालिग्गा समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं और पुराने मैसूर इलाके में इनकी जबरदस्त पकड़ है। भाजपा को छोड़ चुके वोकालिग्गा समुदाय का लगभग 62 फीसदी वोट जेडीएस की तरफ जा सकता है। भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बीच मुख्यमंत्री का पद छोड़ने वाले येदियुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी 212 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। येदियुरप्पा कर्नाटक के सबसे बड़े वोट बैंक यानी लिंगायत समुदाय के मजबूत नेता हैं और जानकारों के मुताबिक भाजपा से अलग होने के बाद भी एक तिहाई से ज्यादा लिंगायत मतदाता उनके पक्ष में हैं। ऐसे में शिमोगा जिले और उत्तरी कर्नाटक में अगर येदियुरप्पा अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस को भी नुकसान पहुंच सकता है। येदियुरप्पा के लिए अपनी जीत से ज्यादा भाजपा की हार अहम है लेकिन राजनीतिक गुना भाग के बीच वह हाशिये पर जाने का भी बड़ा खतरा मोल ले रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी कर्नाटक में एक दशक से सत्ता से दूर है। एसएम कृष्णा के नेतृत्व में 2004 तक कांग्रेस का वहां विशुद्ध शासन था। उसके बाद राजनीतिक अस्थिरता एवं गठबंधनों के बीच धर्म सिंह, एचडी कुमारस्वामी और फिर 2007 में बीएस. येदियुरप्पा, फिर डीएस सदानंद गौडा और अंत में जगदीश शेट्टर मुख्यमंत्री बने, लेकिन कांग्रेस के लिए विशुद्ध सत्ता का इंतजार लम्बा होता चला गया। कर्नाटक के ये हालात कांग्रेस और भाजपा दोनों दी दलों के लिए अच्छे नहीं हैं। येदियुरप्पा जहां भाजपा को नुकसान पहुंचा चुके हैं और विधानसभा चुनाव में नुकसान पहुंचाने में अपनी पूरी ताकत झोकेंगे। कांग्रेस आलाकमान ने कर्नाटक के नेताओं से साफ कहा है कि यह चुनाव पार्टी के लिए बहुत अहम है। इसलिए चुनाव जीतने के लिए पार्टी को सभी ऐसे फार्मूलों की तलाश करनी चाहिए जो विपक्ष की रणनीतिक काट बन सके। विपक्षी खेमे की रणनीति को ध्यान में रखकर ही पार्टी ने सूबे में जाति समीकरण पर खास फोकस किया है। भाजपा से अलग होकर पार्टी बनाने वाले लिंगायत नेता व पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की रणनीति और भाजपा के लिंगायत प्रेम को ध्यान में रखकर कांग्रेस भी चुनाव में सबसे ज्यादा दांव इसी समुदाय पर लगाने की तैयारी की है। दूसरे प्रभावी समुदाय वोक्कालिगा की भागीदारी को भी कम करके नहीं आंका गया है। कांग्रेस ने प्रदेश में भाजपा सरकार के कथित कुशासन समेत स्थानीय मुद्दों पर फोकस तो किया है, लेकिन उसकी रणनीति बहुत हद तक प्रदेश के जाति समीकरण पर टिकी है। कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में 43 उम्मीदवार लिंगायत समुदाय से उतारे थे, इनमें से 16 चुनाव जीते थे। जबकि वोक्कालिगा समुदाय से 40 को टिकट मिले थे, इनमें से 20 को जीत मिली थी। मुस्लिम समुदाय से 16 उम्मीदवार उतारे गए, जिनमें 7 जीते। जबकि 5 ब्राह्मण उम्मीदवारों में से एक को जीत मिली। ओबीसी के 56 उम्मीदवारों में से 15 जीतकर आए। दलित भी 16 में से 7, जबकि आदिवासी 17 उम्मीदवारों में से 8 जीतकर आए थे। कांग्रेस पार्टी इस बार के फैसले में पिछले चुनाव के नतीजों को भी ध्यान में रखकर चल रही है। कर्नाटक चुनाव की जीत-हार का असर बाद में होने वाले राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों के चुनाव पर हो सकता है। कांग्रेस मान रही है कि पार्टी अगर जीती तो पूरे देश में मैसेज जाएगा कि कांग्रेस विरोधी माहौल की बातों में दम नहीं है। विपक्षी खेमा हतोत्साहित होगा। केंद्र में कांग्रेस के खिलाफ राजनीतिक खेमेबंदी की कोशिशों को झटका लगेगा। कांग्रेस के कार्यकर्ता पूरे देश में उत्साहित होंगे।
बहरहाल, अगले महीने 8 मई को चुनाव नतीजे कुछ भी आएं, लेकिन एक बात तय है कि भाजपा के लिए जिस राज्य ने दक्षिण भारत का द्वार खोला था वह द्वार बंद होने जा रहा है। हालांकि इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि कांग्रेस की ही ताजपेशी होगी। क्योंकि जीत का जो एक आत्मविश्वास होता है वह ना तो कांग्रेस में है और ना ही भाजपा में। ऐसे में भाजपा, येदियुरप्पा की केजीपी, कांग्रेस और देवगौड़ा की जेडीएस, चारों धड़े एक दूसरे की राह में रोड़े अटकाने से बाज नहीं आएंगे। भाजपा की बदहाली से कांग्रेस में उत्साह लाजिमी है। लेकिन पार्टी असमंजस में है और किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। सिद्धरमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जी. परमेश्वर दोनों खुद को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर रहे हैं। कहने का मतलब यह कि 5 मई को होने वाले चुनाव और 8 मई को आने वाले चुनाव नतीजों के बाद इतना तय है कि नई विधानसभा की तस्वीर बदलेगी।
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First Published: Thursday, May 2, 2013, 18:24
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